नरेन्द्र मोदी: सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बनाम : सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी की हत्या

नरेन्द्र मोदी शासन: जहाँ आम आदमी की जिंदगी अब मोदी-रहमोकरम पर.......

सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी की हत्या की तर्ज पर ही इशरत जहाँ और उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। नरेन्द्र मोदी शासन सुराग तक ढूंढने में नाकाम। गुजरात में फर्जी मुठभेड़ का तो जैसे पिटारा ही खुल गया है। खाकी वर्दी में साम्प्रदायिक हिंसकों का जैसे एक नया वर्ग पनप रहा है। -अमित सेन गुप्ता

जहाँ साम्प्रदायिक नफरत इस कदर पनप रही है कि हिंसको का यह वर्ग शासन पर भी भारी पड़ रहा हो, तो उसके बारे में आप क्या कहेंगे, क्या किसी से न्याय की उम्मीद की जा सकती है? आतंकवादी तो रोज रहस्यमय परिस्थितियों में मारे जाते हैं लेकिन सोहराबुद्दीन शेख और बाद में उसकी पत्नी और एकमात्र चश्मदीद गवाह तुलसीराम प्रजापति जैसे निर्दोष लोगों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने के लिये न तो राजनीति के ठेकेदारों की कोई जवाबदेही है, न ही पुलिस प्रशासन की।

गोधरा में एस-6 या 2006 के गुजरात दंगों में हुई हत्याओं के लिये कैसे न्याय किया जाना चाहिए?

गुजरात पुलिस के डायरेक्टर जनरल पी सी पांडे के नापाक करियर पर तो जरा गौर कीजिये जिनके सरपरस्त मोदी जी खुद हैं, यह जानते हुए भी कि उनका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। उस दौरान शहर के पुलिस चीफ रहे पांडे ने अहमदाबाद को मौत की आग में झोंक दिया। गोधरा रेल हत्याकांड के बाद विश्व हिंदू परिषद् और बजरंग दल ने न केवल पुरुषों और बच्चों की निर्मम हत्याएं की बल्कि स्त्रियों के साथ बलात्कार किए, घरों और दुकानों में लूटपाट की। मिली खबरों और मीडिया ने गृहमंत्री गोरधन जडाफिया, नरेंद्र मोदी, पांडे और उसके पुलिस बल की पोल खोलकर रख दी कि यह हत्याकांड पूर्व नियोजित तरीके से राज्य और सत्ता के ठेकेदारों के संरक्षण में किया गया है। भाजपा-विहिप नेताओं की पुलिस कंट्रोल रूम से सेलफोन पर बातचीत के रिकॉर्ड मौजूद हैं, यहाँ तक कि जडाफिया भी इसमे सीधे तौर पर शामिल थे। खबरों के हिसाब से तो पांडे पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी से मिले और उन्हें पुलिस सुरक्षा का विश्वास भी दिलाया, लेकिन दंगइयों ने अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में बीसियों लोगों को जिंदा जला दिया। जाफरी की पत्नी ने अपने पति और निर्दोष लोगों की बेरहमी से की गई हत्या को अपनी आंखों से देखा और पांडे जी की पुलिस का तो अता-पता भी नहीं था।

दंगों के शिकार लोगों ने नरौडा़ पटिया में भाजपा-विहिप नेताओं मायाबेन कोडनानी, बाबू बजरंगी और जयदीप पटेल पर खुले तौर पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया। अहमदाबाद में युवकों और किशोरियों खासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाकर बजरंगी ने अकेले ही फिल्म परजन्या को रोक दिया जबकि गुजरात पुलिस ने अलग रास्ता अख्तियार किया। भाजपा सांसद बाबूभाई कटारा हाल ही में मानव व्यापार के दोषी पाए गए, इतना ही नहीं उनके बेटे का गुजरात दंगों में हाथ होने का भी सबूत मिला है, तो ऐसे में आरएसएस और भाजपा सत्ता की ठेकेदार कैसे बन सकती है? कैसे गुजरात पुलिस इस रैकेट का भंडाफोड़ करने में नाकाम रही? क्यों पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा?

ऐसे में जहां मोदी की सरपरस्ती में फर्जी मुठभेड़ राज्य का चरित्र बन गया हो वहां सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी जैसे निर्दोष लोग फर्जी मुठभेड़ में मार दिए जायें तो इसमें हैरानी ही क्या है? जहां-जहां मोदी और उसके चेलों ने ‘मुसलमानों पाकिस्तान लौटो’ का नारा बुलंद किया वहीं अनेक मुसलमानों को आतंकवादी करार देकर फर्जी मुठभेड़ में मौत के घाट उतार दिया गया।

नफरत को एक खूबसूरत जामा पहनाया गया है ठीक वैसे ही जैसे एक आर्किटेक्ट एक शहर का डिजाईन बनाता है, जिसमें खुद ही राज्य की छत्रछाया में दंगे कराओ जेल में मुसलमानों को डाल दो, वो भी पोटा के तहत, हत्यारे और बलात्कारी आजाद हवा में सांस लें, महज इसलिए कि वें आपके संघ परिवार के लंगोटिए हैं। उस साम्प्रदायिक पुलिस का क्या? उसे भी आप कोई दंड नहीं देते, हजारों लोगों को आप मजबूर कर देते हैं शऱणार्थियों की तरह खुले आसमान के नीचे तम्बुओं में रहने के लिए, इस तरह लाचार लोगों को अपनी ही जमीन से बेघर करके खुद ही आप तानाशाह बन जाते हैं, न्यायालय के दरवाजे बंद कर देते हैं, उन गरीबों, बेघरों की रोजी तक छीनकर, उन्हें समाज से भी अलग-थलग कर देते हैं या फिर ‘जाहिरा शेख केस’ की तरह रिश्वत देकर शिकायत वापिस लेने की धमकी देते हैं और जर्मन के फासीवादी और इसराइल के यहूदीवादियों की तरह भारतीय मुसलमानों के दिल में एक ऐसा खौफ भऱ रहे हें कि उन्हें लोकतंत्र, न्याय तो दूर मदद की एक उम्मीद तक आपसे नहीं है। अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रह गए हैं।

इतना ही नहीं खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए भी मोदी के गैर- संवैधानिक तरीकों के खिलाफ़ गूंगी और बहरी बन गई है। मोदी खुद को विकास पुरुष कहते हैं दरअसल उनकी आँखें केंद्र पर टिकी हैं, वे तो खुद को भावी प्रधानमंत्री समझते हैं। धर्म निरपेक्षता के नाम पर आप सब कुछ कर सकते हैं – दंगे, फसाद और हिंसा, लेकिन बस विकास का पल्ला पकडे़ रहिए।

जहाँ राजनीति के ठेकेदार खुद ही धर्मनिर्पेक्षता और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दें, पुलिस नौकरशाही और कानून, सब साम्प्रदायिक हो गए हों ऐसे में गुजरात सरकार “एंटी- टेरारिस्ट स्क्वाड’ के आत्मसमर्पण में इतनी नैतिक कैसे हो गई?

“एंटी-टेरारिस्ट स्क्वाड’ के हैड डी.जी. वन्जारा, एस. पी. इंटेलिजेंस राजकुमार पंडियान और एम. एन. दिनेश कुमार एस. पी. अलवर राजस्थान को 26 नवम्बर 2005 को हुई सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ में की गई हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है तीन अन्यों को भी गिरफ़्तार किया गया है जिसमें एक व्यक्त्ति वह है जिसने जांच अधिकारी गीता चौधरी को ग्राफ़िक डिटेल दिए थे। वन्जारा को मोदी का आदमी बताया गया था। खैर इस सबसे यह तो साफ़ है कि इन दंगों के पीछे मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का हाथ है। भाजपा विरोधी नलिन भट्ट ने भी वन्जारा द्वारा अंजाम दी गई दस रहस्यमय मुठभेड़ों की सी.बी.आई. जाँच की माँग की है। सब इस बात को जानते हैं कि वन्जारा तो मात्र एक कठपुतली था। इशरत जहां, समीर पठान और अन्य लोगों की हत्या के मामले एक बार फ़िर उठाए जा रहे हैं, अगर इस बार गुजरात पुलिस मोदी को हत्यारा साबित करने में नाकाम रहती हैं तो मोदी और उसकी राजनीतिक ठेकेदार और पुलिस को कुछ भी कर के साफ़ बच निकलने का आसान रास्ता मिल जाएगा।

सी.आई.डी.(क्राइम) आईजी. गीता चौधरी की रिपोर्ट कि सोहराबुद्दीन शेख की हत्या का मामला फ़र्जी मुठभेड़ का मामला है, के बाद गिरफ़्तारी का निर्णय लिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उन्होने जाँच की और दिसंबर 2006 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी तो फ़िर राज्य सरकार इतने समय तक चुप क्यों रही? क्यों और कैसे इस जाँच को गीता चौधरी के हाथ से लेकर किसी दूसरे अफसर को दे दिया गया? सच तो यह है कि गुजरात पुलिस में आज ईमानदार पुलिस अफसर का गला घोंटा जा रहा है, उनके लिए वहां कोई जगह नहीं है। 2002 के दंगों में कुछ पुलिस अफ़सर और प्रशासनिक अधिकारी, हिंदुत्ववादियों को दंगा भड़काने से रोकना चाहते थे, लेकिन मोदी ने इस पर गौर नहीं किया। दंगों के बाद श्रीकुमार ने मोदी के खिलाफ़ आवाज उठाई लेकिन उसे और उसके जैसे अनेक अफ़सरों को दंगों के दौरान और बाद में भाजपा सरकार और हिंदुत्ववादी झंडेबरदारों का कोपभाजक बनना पड़ा।

मुख्यमंत्री और गृहमंत्री का फ़र्जी मुठभेड़ में हाथ होने की पोल खुलने के डर से गुजरात पुलिस सी.बी.आई. जाँच का विरोध कर रही है।

इस बात के पुख्ता सबूत मिल रहे हैं कि शेख की पत्नी कौसर बी के साथ बलात्कार करके हत्या की गई। उसे गाँधीनगर के पास एक फार्म हाउस पर ले जाया गया और 26 नवम्बर 2006 शेख की हत्या करने के बाद 28 नवंबर को मार दिया गया। उसकी लाश को वन्जारा के गांव इलोल, हिम्मतनगर लाने के बाद जला दिया गया। एक सिपाही ने यह सब अपनी आँखों से देखा और बताया कि कैसे बलात्कार के बाद वह बीमार हो गई इसलिए उसे जला दिया गया, यहाँ तक कि चश्मदीद सिपाही की भी हत्या कर दी गई।

अपहरण, हत्या बलात्कार के इस दहलाने वाले मंजर को पुलिस के आला अफ़सरों, सिपाहियों ने मिलकर अंजाम दिया। कितने दिन और रात गैर- कानूनी साधन जुटाए, वाहन किराय के लिए गए और फ़ार्म हाउस एक भाजपा नेता का था और ऐसे में मजेदार बात तो यह है कि मोदी शासन, उसकी पुलिस और नौकरशाही के हाथ कोई सुराग तक नहीं है?

शेख के बारे में भी कुछ अफ़वाहें सुनने में आ रही हैं कि उसे इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह उनके अंदर के बहुत से राज जानता था, वह खुद भी सीडी साजिश में शामिल था और उसके परिवार के राजस्थान में भाजपा से सम्बंद्ध थे, उसकी माँ गाँव की सरपंच थी और परिवार मारबल का व्यापार करता था लेकिन व्यापार छिन जाने के बाद वह संकट में आ गया वगैरह....... लेकिन इन सब कहानियों को सच नहीं माना जा सकता। सी. आई. ड़ी. गीता चौधरी की रिपोर्ट और गुजरात पुलिस व सरकार के हस्तक्षेप के बिना उचित सी. बी. आई. जाँच के बाद निश्चित रूप से इन रहस्यमयी हत्याओं का पर्दाफ़ाश होगा। इतना ही नहीं और भी बहुत सी फ़र्जी हत्याओं के रहस्य से पर्दा उठेगा।
जरा मुम्बरा की इशरत जहां और अहमदाबाद में तीन फिदायीन आतंकवादियों की जून 15, 2004 को हुई निर्मम हत्या को याद कीजिए। जिसके बारे में कहा गया कि वें मोदी की हत्या के मिशन पर आए थे। ‘नेशनल सिविल लिबर्टीज’ की टीम में अपने अध्ययन में पाया कि पुलिस के बयान के मुताबिक केवल एक आतंकवादी भागा था, उन चारों के पास से केवल एक एके-56 और दो पिस्तौलें बरामद हुई, 20 पुलिस कर्मियों के दो दल, जो एके-47 और रिवॉल्वरों से लैस थे, कार को घेरने के बावजूद भी विपक्षी दल पर कमजोर पड़ गई। इस बात से पुलिस की नीयत पर सीधा शक जाता है कि वे उनकी हत्या के इरादतन वहाँ गई थी.........

“अगर पुलिस की इस बात को माने कि आतंकवादियों ने बयालिस बार गोली चलाई तो एक भी पुलिस कर्मी के बदन पर गोली का निशान तक क्यों नहीं पाया गया ? इस बात का सबूत न होने से उनके इस झूठ को सच नहीं माना जा सकता कि उन्होंने अपने बचाव में गोलियां चलाईं थीं.....”

सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी की हत्या की तर्ज पर ही इशरत जहाँ और उसके साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। क्या और लोग भी इसी तरह अतिरिक्त न्यायिक कार्यवाही के नाम पर मौत के घाट उतार दिए जाएँगे? क्यों आतंकवादी हमेशा मार दिए जाते हैं? पकड़े क्यों नहीं जाते? जिससे उनके सरपरस्तों का भंडाफोड़ कर औरों को बचाया जा सके। सिपाहियों को गम्भीर चोटें क्यों नहीं लगती? ऐसा क्यों होता है कि उनमें से ज्यादातर या तो मोदी की हत्या के लिए मिशन पर होते हैं या पाकिस्तानी इस्लामी ग्रुप से जुड़े होते हैं? एक ही तरह के मुठभेड़ में हर बार वही सिपाही क्यों शामिल होता है ? क्या ऐसी मुठभेड़ों के तरीके एकतरफा नहीं हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि मुख्य मंत्री से लेकर गृहमंत्री आदि इंटेलिजेंस, पुलिस और प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं है? क्या कभी सच बाहर आएगा? क्या न्याय की जीत होगी? या फिर वंजारा के गांव में जलाई गई कौसरबी की लाश की राख में सबूतों की तरह यह भी भारतीय लोकतंत्र के प्यासे कुंए में दफ़न हो जाएगा?” प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोडा़

2 टिप्‍पणियां:

हरिमोहन सिंह ने कहा…

भईया ऑंतकवादियों को हर हाल में मारा ही जाना चाहिये चाहे कैसे भी । जब देश की राजनीति और कानून आतंकवादियो का सामना नहीं कर पा रहे है तो बेहतर होगा कि कुछ ना होने से नरेन्‍द्र मोदी का कुछ करना ठीक है ।

MANISH P@NDIT ने कहा…

आप कुछ ज्यादा ही 'धर्मनिरपेक्षता' दिखा रहीं है.
आप जैसे लोग ही वास्तविक आतंकवादी हैं.

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