'वर्दी में और उसी असेंबली से चुनाव लड़ना' ही मुशर्रफ की प्राथमिकता : सफदर बलोच/इस्लामाबाद/ समकाल हिन्दी पाक्षिक

जनरल परवेज मुशर्रफ के समर्थक चंपुओं ने पिछले आठ साल से राजनीति और राजनीतिज्ञों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ रखी है। इस मुहिम का मुख्य संदेश यही है कि जनप्रतिनिधि पूरी तरह से भ्रष्ट तो हैं ही अक्षम भी हैं और इसी आधार पर यह तर्क दिया जा रहा है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तभी बच सकती है जब देश में लोकतंत्र कायम होने से रोका जाए, क्योंकि लोकतंत्र चरित्र से ही 'विनाशक' है। बजाए इसके तानाशाही ही ठीक है।

उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक बेनजीर और मुशर्रफ द्विपक्षीय समझौते का मतलब है कि जनरल मुशर्रफ को आने वाले पांच साल के लिए फिर से राष्ट्रपति चुना जाएगा और भुट्टो को कुछ रियायतें दी जाएंगी। इन रियायतों में भुट्टो के खिलाफ लगाए गए भ्रष्ट्राचार के सभी आरोपों को वापस लिया जाएगा और उन सभी मुकद्मों को भी जल्द ही खत्म कर दिया जाएगा। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की राह में आने वाली उन सभी बाधाओं को दूर कर दिया जाएगा, जिनके कारण वे आगामी चुनाव के लिए अयोग्य घोषित की गईं थीं। जैसा कि उन पर पब्लिक आफिसिस आर्डर 2002 के तहत प्रतिबंध लगाया गया था। मुशर्रफ ने उस समय यह आदेश इसलिए लागू किया था ताकि 'कोई भी भ्रष्ट राजनेता देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश न करे'।

समझौते के मुताबिक केंद्र में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के साथ और सिंध में मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। पंजाब में योग्यता के आधार पर तय किया जाएगा, यानी चुनाव में मिलने वाले वोट यह तय करेंगे कि सरकार किसकी होगी। एनडब्ल्यूएफपी या तो गठबंधन सरकार के लिए या फिर गठबंधन विपक्ष के लिए दावा रखेगा। यह इस बात पर तय करेगा कि धार्मिक संगठन एमएमए साथ रहेगा या अलग हो जाएगा। बलूचिस्तान में पीपुल्स पार्टी विपक्ष में बैठेगी। सरल शब्दों में कहें तो जनरल मुशर्रफ राष्ट्रपति बनकर देश पर शासन करेंगे और बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनकर उनका सहयोग करेंगी। लेकिन समझौते की इन शर्तों को लागू होने पर भी लोग तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं।

राष्ट्रपति के सहायक ने बताया कि 'भुट्टो को सभी आरोपों से बरी करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू की जा चुकी है और राष्ट्रपति चुनाव के समय तक पूरी हो जाएगी। उन्हें विश्वास दिलाने के लिए तब तक कुछ रियायतें भी दे दी जाएंगीं'। इतना ही नहीं सूत्रों के मुताबिक भुट्टों को भी ऐसा लगता है कि जिस राजनीतिक जीवन का अंत हो गया था, उसे दोबारा जीवित करने का अवसर मिलने वाला है। राष्ट्रपति की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताया कि 'भुट्टो की बातचीत हमेशा व्यक्तिगत स्थिति को उभारने पर ही केंद्रित होती है, वह न केवल अपनी राजनैतिक स्थिति को सम्मानजनक बनाना चाहती हैं, बल्कि राजनीतिक भविष्य को भी सुरक्षित करना चाहती हैं। इसीलिए उनकी बातचीत में यह मुद्दा केंद्र में रहता है।'

लेकिन सच तो यह भी है कि भुट्टो का आंतरिक दायरा अब भी इस बात से आश्वस्त नहीं है कि पार्टी जनरल मुशर्रफ को सैनिक वर्दी के साथ दूसरी बार चुनाव लड़ने के लिए समर्थन देगी। लंदन और इस्लामाबाद घूम चुके एक सूत्र ने इन आंतरिक चिंताओं का खुलासा किया कि 'जनरल मुशर्रफ को समर्थन की वजह से आने वाले खतरों से भुट्टो अनजान नहीं हैं। यह बात कोई मायने नहीं रखती कि इससे उसे और उसकी पार्टी को कितना लाभ होगा, इससे उनकी पार्टी की प्रतिष्ठा भी खत्म हो सकती है।' यह सब चिंताएं निराधार नहीं हैं, क्योंकि जनरल मुशर्रफ और उनके सत्तारूढ़ दल को लोकप्रियता हासिल नहीं है। इंटरनेशनल रिपलब्लिकन इंस्टीटयूट द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के अनुसार मुशर्रफ की लोकप्रियता पिछले वर्ष के 64 फीसदी से गिरकर जून 2007 में मात्र 34 फीसदी रह गई है। हालांकि यह 34 फीसदी भी अविश्वसनीय ही प्रतीत होता है, क्योंकि एक लोकप्रिय आलोचना में इस अध्ययन की प्रामाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा गया है कि इसमें जमीनी सच्चाई नहीं दिखाई गई है। हालांकि यह आलोचना बहुत तीखी है, लेकिन सबूतों के आधार पर ऐसा कहा गया है। क्योंकि इस अध्ययन में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की वापसी के लिए लोगों की संवेदनाओं का उभार शामिल नहीं हैं। लाल मस्जिद में जिस तरह सैनिक कार्यवाही की गई थी, उसके खिलाफ लोगों का गुस्सा भी इस रिपोर्ट में शामिल नहीं हैं। इन दोनों घटनाओं के कारण जनरल मुशर्रफ की तस्वीर जनता के विभिन्न वर्गों के बीच और बिगड़ी है।

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक नेता ने बताया कि उनकी पार्टी के लिए यही अच्छा होगा कि वह मुशर्रफ को सेना की वर्दी के बिना चुनाव में खड़े होने के लिए समर्थन दे। चुनाव के दिन भी अगर वह अपनी वर्दी में रहते हैं तो यह हमारी पार्टी के लिए बड़ी समस्या बन सकती है। हालांकि जनरल मुशर्रफ कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते। वह अपने इस द्विपक्षीय रिश्ते को अगले सत्र के लिए एक गारंटर की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। राष्ट्रपति सूत्रों के मुताबिक 'वर्दी में और उसी असेंबली से चुनाव लड़ना' ही मुशर्रफ की प्राथमिकता है।
साभार-समकाल हिन्दी पाक्षिक

वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है कि शायद ही मुशर्रफ वर्दी छोड़ें। मुशर्रफ वादा तो कर रहे हैं कि वादा निभाउंगा, पर विश्वास कौन करे, अमेरिका मुशर्रफ को राष्ट्रपति देखना चाहता है, जो अब होने जा रहा है। अगर विपक्षी पार्टियां इस्तिफा देती हैं तो शायद एक नया नजारा मिले.................

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