मुम्बई के पानी का निजीकरण करने का विश्वबैंक का प्रयास हुआ पानी-पानी - अफसर जाफरी

नागरिकों ने नकारी रिपोर्ट
3 जून 2007 को ग्रेटर मुम्बई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ने सभी भागीदारों की एक बैठक बुलाई, जिसमें (विश्वबैंक और पब्लिक प्राइवेट इन्फ्रास्ट्रक्वर एडवाइजरी फेसिलिटी) द्वारा मुम्बई के 'के-ईस्ट' वार्ड का अध्ययन करने के लिए नियुक्त न्यूजीलैण्ड के सलाहकार ग्रुप 'कास्टेलिया' ने एक साल के अध्ययन के बाद 'वाटर डिस्ट्रीब्यूशन इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम' पर निष्कर्ष और सुझाव प्रस्तुत किए। बैठक में एमसीजीएम की लेबर यूनियन, के-ईस्ट वार्ड के स्थानीय निवासियों, आन्दोलनकारियों, जल-प्रबन्धन के विशेषज्ञ और कुछ चुने हुए प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विश्वबैंक के श्यामल सरकार और पीपीआईएएफ की भावना भाटिया को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। स्थानीय नागरिकों, श्रमिक संघों और आन्दोलनकारियों की उपस्थिति कास्टेलिया और विश्वबैंक के लिए खतरनाक साबित हुई, क्योंकि इनकी उपस्थिति से दोनों संस्थाओं की पानी के निजीकरण के लिए प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की सच्चाई सबके सामने आ गई।
2004 के मध्य में पीपीआईएएफ (एक समूह जिसमें विश्वबैंक शामिल है) ने 6,92.500 अमरीकी डालर की सहायता देना स्वीकार किया, यह धन जलापूर्ति सेवाओं में भागीदारी के लिए निजी क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय अनुभव वाले सलाहकार की प्राप्ति के लिए मुम्बई की सहायता के लिए था, खासतौर पर यह मुम्बई के के-ईस्ट वार्ड (अंधेरी, जोगेश्वरी और विले पार्ले) में प्रबन्धन समझौते के कार्यान्वयन के लिए, नीलामी के प्रपत्र और बोली दाताओं के लिए पूर्व और पश्चात् की योग्यताएं निर्धारित करने के लिए था। पीपीआईएएफ ने सहायता के लिए विश्वबैंक को कार्यकारी एजेंसी नियुक्त किया। एमसीजीएम के लिए के-ईस्ट वार्ड सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाला इलाका है, जहां पानी की लागत 65 मिलियन रुपए है, जबकि इससे 400.43 मिलियन रुपए प्रति वार्षिक की आय होती है। इसलिए रणनीति के तहत इस क्षेत्र का चुनाव किया गया है, क्योंकि यहां प्रबन्धन समझौते को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा सकता है।

विश्वबैंक और पीपीआईएएफ ने के-ईस्ट डब्ल्यूडीआईपी के अध्ययन के लिए कास्टेलिया को नियुक्त किया अैर समझौते उसकी शर्तों पर हस्ताक्षर किए गए। कास्टेलिया एक फ्रांसीसी कंसलटेंसी है जिसके कार्यालय न्यूजीलैण्ड और अमरीका में हैं। इसे मुख्य रूप से पानी की लीकेज, चोरी और प्रदूषण की रोकथाम के लिए मॉडल का अध्ययन और स्वरूप तैयार करना था और निजी बहुराष्ट्रीय कंपनी की सेवाओं द्वारा 24 ग 7 जलापूर्ति करानी थी। यदि यह योजना के-ईस्ट वार्ड में सफल रही तो जल्दी ही इसे पूरे मुम्बई में लागू किया जाना था।

वर्कशॉप में क्या हुआ?
- एडिशनल कमिश्नर (प्रोजेक्ट, एमसीजीएम) मनु कुमार श्रीवास्तव ने स्पष्ट तौर पर कहा कि ''के-ईस्ट में जलापूर्ति में सुधर के लिए उन्होंने प्रबन्धन तरीके पर पहले से कुछ भी नहीं सोचा है।'' उनका यह वक्तव्य 'पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मैनेजमेंट मॉडल' के लिए किए गए 'समझौते' और प्रस्तावित 'शर्तों' के विपरीत था। कास्टेलिया की प्रस्तुति और सिफारिशों से भी यह साफ साबित हो गया क्योंकि कास्टेलिया की निजीकरण का समर्थन करने वाली रिपोर्ट अधूरे शोध, अविश्वसनीय तकनीकी, अनिश्चित पध्दति और दिखावटी तर्कों पर आधारित थी जिसे एमसीजीएम ने भी अस्वीकृत कर दिया था। श्रीवास्तव ने भी यह स्वीकार किया कि चूंकि कास्टेलिया की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं है तो इस पर विचार-विमर्श के लिए कुछ समय बाद फिर से बैठक होगी, किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए एमसीजीएम का निर्णय अन्तिम होगा। एमसीजीएम के पूर्व चीफ हाईड्रोलिक इन्जीनियर, जो अब विशेष डयूटी पर हैं, ने भी यह स्वीकार किया कि एमसीजीएम द्वारा अस्वीकृत कास्टेलिया की रिपोर्ट में सभी आंकड़े सच्चाई से परे, स्वप्नलोक के धरातल पर बनाए गए हैं। गौरतलब यह है कि शाह के अनुसार हाइड्रोलिक विभाग के इन्जीनियर जलापूर्ति को सुधारने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं और 24 ग 7 जलापूर्ति करा सकते हैं लेकिन कुछ विभागीय सीमाओं के कारण वे ऐसा कर सकने में अयोग्य साबित हो रहे हैं। (इन्जीनियर 250 रुपए का साधन नहीं खरीद सकते।)


कास्टेलिया के सुझाव
-कास्टेलिया के मैनेजिंग डायरेक्टर डेविड इर्हाड्र्ट ने निजी एजेंसी के साथ मिलकर किए गए अध्ययन के आधार पर कुछ सुझाव प्रस्तुत किए। कास्टेलिया के अनुसार के-ईस्ट को प्रतिदिन 540 मिलियन लीटर परनी मिलता है जिसमें से 252 मि. ली. प्रतिदिन तीन वार्डों - के-वेस्ट, एच-ईस्ट, एच-वेस्ट में उपलब्ध कराया जाता है। के-ईस्ट से अकेले के-वेस्ट को ही 113 मि. ली. प्रतिदिन पानी मिलता है।
इसलिए के-ईस्ट वार्ड में पानी की लीकेज 21 प्रतिशत है (540 मि. ली. दै. में से 114 मि.ली. दै., जबकि मुम्बई में कुल लीकेज 3250 मि.ली. दै. में से 550 मि.ली. दै. है) जल-संतुलन की बात करते हुए एमसीजीएम के आंकड़ों पर आते हैं जिनसे यह ज्ञात होता है कि के-वेस्ट को जितना पानी मिल रहा था उससे ज्यादा तो यह उत्पादन कर रहा था, क्योंकि एमसीजीम की ओर से इसे 170 मि.ली. दै. जलापूर्ति कर्राई जा रही थी, इसका मतलब यहां लीकेज बिल्कुल नहीं थी।

रोचक तथ्य तो यह है कि लीकेज के सारे आंकड़े देने के बावजूद भी कास्टेलिया यह बताने में असफल रही कि लीकेज किन-किन स्थानों पर है। न ही उन्हें एक भी ऐसा मामला मिला जिसमें पानी का गैरकानूनी तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। डायरेक्टर डेविड से भी जब यह पूछा गया कि पानी की लीकेज मुख्य पाइपलाइन में है या निकासी लाइनों में, तो यह सुनकर वह एकदम घबरा गए। लीकेज के आंकड़े इतने ऊंचे होते हुए भी, उन्हें प्रदूषण तक का एक भी मामला नहीं मिला जबकि लीकेज जितनी ज्यादा होती है, प्रदूषण उतना ही ज्यादा होता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अध्ययन के अनुसार झुग्गियों में जलापूर्ति 134 ली. प्रति व्यक्ति, दैनिक है जबकि मुम्बई में झुग्गियों में 90 ली. प्रति व्यक्ति दैनिक की है खपत है। इस तरह यह अध्ययन जलापूर्ति में सुधार की आवश्यकता निश्चित करने में असफल रहा।
इससे भी महत्तवपूर्ण तथ्य तो यह है कि जब जनता ने डेविड से अध्ययन के लिए अपनाए गए साधनों और पध्दति के बारे में पूछा तो उसने कहा कि कोई विकल्प न होने की वजह से अनुचित पध्दति और पुराने मीटर प्रयोग किए, ये मीटर दुनिया में अब कहीं भी प्र्रचलित नहीं हैं। उन्होंने खुद यह भी स्वीकार किया कि इन मीटरों में गलती की संभावना भी ज्यादा है। इस तरह 24ग7 जलापूर्ति की आवश्यकता को लीकेज बताकर और जल-वितरण को निजी कंपनी को सौंपने के लिए डेविड ने गलत तथ्यों और तर्कों का सहारा लिया। कास्टेलिया की प्रस्तुति में अनियमितताओं पर एमसीजीएम के एडिशनल कमिश्नर और विश्वबैंक के प्रतिनिधि चुप्पी साधे रहे।

निजीकरण का एजेण्डा
- कास्टेलिया ने कहा कि एमसीजीएम करे -ईस्ट में जल-वितरण की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी को सौंप दे। उसने दो भागों में पांच भिन्न गैरविभागीय प्रबन्धन विकल्प सुझाए- 'आउटसोर्सिंग' और 'पब्लिक-प्र्राइवेट-पार्टनरशिप' (पीपीपी)

आउटसोर्सिंग में 'इंटेग्रेटिड वाटर लोस रिडक्शन प्रोग्राम' के तहत 1-2 सालों के लिए विभिन्न कांट्रेक्ट देना, (जिसमें लीकेज की खोज और मरम्मत, गैरकानूनी प्र्रयोग रोकना, मीटर लगाना आदि शामिल है) और झुग्गियों में भी नेटवर्क फैलाना।

जबकि बिल इकट्ठे करना, कार्य और वार्ड का प्रबन्धन, ग्राहक सेवा और पूंजी फंड एमसीजीएम के पास रहे। दूसरा, 6 सालों के लिए सिंगल मीडियम टर्म पर्फोमैंस कॉण्ट्रेक्ट, जिसमें ग्राहक सेवा और आईडब्ल्यूआरपी और झुग्गियों की नेटवर्किंग किसी एक फर्म को दे दी जाए, शेष विभाग के पास रहे।

पीपीपी विकल्प के तहत उन्होंने सुझाया 4-6 साला मैनेजमेंट कॉण्ट्रेक्ट, जिसमें एक निजी फर्म वार्ड का प्रबन्धन करेगी जबकि शेष विभाग के हाथ में रहेगा, 10-15 साल के लिए लीज, जिसमें पूंजी फंड विभाग के हाथ में होगा और शेष लीज कॉण्टे्रक्टर के हाथ में, अन्तिम विकल्प एक कन्सेशन मॉडल है जो 15-30 सालों के लिए होगा जिसमें एक प्राइवेट फर्म वितरित जल के पूर्व निर्धारित प्रति लीटर शुल्क के आधर पर पूंजीलागत, रखरखाव और क्रियान्वयन संभालेगी।

कास्टेलिया ने एमसीजीएम के हाइड्रोलिक विभाग के वर्तमान ढांचे में सुधार के विकल्प को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर दिया यद्यपि उनके अध्ययन में यह साफ-साफ कहा गया है कि मुम्बई में जलापूर्ति व्यवस्था दक्षिण एशिया में सबसे बेहतर है और के-ईस्ट वार्ड की तुलना तो लंदन और जर्मनी से की गई है। और इसी अध्ययन के अनुसार के-ईस्ट के गैर-झुग्गी इलाके में पानी की खपत औसतन 250 ली. प्रति व्यक्ति दैनिक है, जो शंघाई के बराबर है, जबकि झुग्गी बस्ती में यह 134 ली. प्रति व्यक्ति दैनिक है, जो कि जर्मनी (129 एलपीसीडी) और लंदन (150 एलपीसीडी) जैसे विकसित यूरोपियन शहरों के बराबर है। जब एडिशनल कमिश्नर से पानी सुधार संबंधी आन्तरिक कार्यांवयन ढांचे में सुधार के लिए पूछा गया तो वे के-ईस्ट में जलापूर्ति सुधार संबंधी हाइड्रोलिक विभाग के दृष्टिकोण से प्रस्तावित प्रपत्र पर विचार करने के लिए सहमत हो गए।

विश्व बैंक को एक ऐसे प्रोजेक्ट के साथ सम्बध्द देखकर हैरानी होती है, जिसमें न कोई पारदर्शिता है, न ही वेबसाइट पर सूचना और अन्त तक भी समझौते की शर्तों में बदलाव तक नहीं किया गया। हालांकि विश्वबैंक के श्यामल सरकार ने वादा किया था कि शर्तों में सुधार के साथ कास्टेलिया की अन्तिम रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।

लक्ष्य-
मुम्बई पानी नेटवर्क मुम्बई के पानी का निजीकरण करने के विश्वबैंक के आने वाले एजेण्डा के प्रति आशंकित है। इसलिए इसने के-ईस्ट के स्थानीय निवासियों को, कास्टेलिया रिपोर्ट, एमसीजीएम अधिकारियों द्वारा निजीकरण्ा की प्रक्रिया का परोक्ष रूप से समर्थन करना और विश्वबैंक/पीपीआईएफ के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप एजेण्डा के बारे में जागरूक करना शुरू किया है। इसने सभ्य समाज के सभी संगठनों के साथ मिलकर एमसीजीएम के स्थानीय प्रतिनिधियों पर कास्टेलिया रिपोर्ट को अस्वीकार करने और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकता से विश्वबैंक और पीपीआईएएफ जैसी संस्थाओं को हटाने के लिए दबाव डालने के लिए आंदोलन शुरू किया है। मुम्बई पानी स्थानीय निवासियों के साथ सभाएं करेगा, ताकि पानी की वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिए एमसीजीएम के हाइड्रोलिक इंजीनियरों के साथ पब्लिक-पब्लिक पार्टनरशिप की प्रक्रिया को बढ़ावा मिले। प्रस्तुति- मीनाक्षी अरोरा

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