गरीबी हटाने और आर्थिक विकास के लिए विश्वबैंक विकासशील देशों को प्रतिवर्ष 18-20 बिलियन अमरीकी डॉलर कर्ज और सहायता के रूप में देता है। बैंक अपनी एजेंसी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के साथ मिलकर उन देशों में भी काम कर रहा है जो अब कोष के कर्जदार नहीं हैं। बैंक की सारी आर्थिक सहायता सरकारों को नहीं मिलती, बल्कि ज्यादातर हिस्सा प्राइवेट सेक्टर खासतौर पर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जाता है, जो कर्ज, तकनीकी सहायता और निवेश के खतरों को कम करने के रूप में होती हैं।
अमीरों का समर्थन- पिछले 60 सालों में बैंक 'इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट' (आईबीआरडी) नाम की एक संस्था के स्वरूप से उठकर पांच संस्थाओं में विस्तृत हो गया है, ये पांचों संस्थाएं विशिष्ट कार्यक्षेत्र से संबंधित हैं। इनमें आर्थिक सहायता के अतिरिक्त, राहत और पुनर्वास, विद्युत, परिवहन, दूर संचार आदि क्षेत्रों में संस्थात्मक व संरचनात्मक ढांचे और स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, खेती आदि को निजी क्षेत्र में लाने और बाजारीकरण करने के लिए पुनर्निर्माण के लिए सहायता देना शामिल है। इनमें निजी क्षेत्र का विकास और निवेश संबंधी बाधाओं को निजी कंपनियों के लिए कम करना भी शामिल है। हाल के अनैतिक आचरणों के बावजूद भी बैंक एक शक्तिशाली संस्था है। इसके सदस्य देशों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विकास के लिए आर्थिक सहायता और निजी निवेश के लिए पूंजी का एकमात्र रास्ता है। बैंक की शक्ति और नीतिगत एजेंडा सबसे अमीर देशों की सरकारों के हाथ में है, जो जी-72 में शामिल हैं और विकासशील देशों में काम कर रही अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापार और निवेश को सुनिश्चित करने के लिए बैंक का इस्तेमाल करते हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव बैंक के अंदर और बाहर कई रूपों में नजर आता है। बैंक की तीन विशिष्ट संस्थाएं हैं- इंटरनेशल फिनांस कॉरपोरेशन (आईएफसी) मल्टीलेटरल इंवेस्टमेंट गारंटी एजेंसी (एमआईजीए) और इंटनरेशनल सेंटर फॉर द सैटलमेंट ऑव इंवेस्टमेंट डिस्प्यूट्स (आईसीएसआईडी) निजी क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पूरी सहायता देती हैं।
आईएफसी बैंक की निजी क्षेत्र की भुजा है। यह विकासशील देशों की प्राइवेट कंपनियों को लोन और इक्विटी जुटाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी स्रोत है। यह विकासशील देशों की निजी कंपनियाें को प्रत्यक्ष समर्थन देकर और खुले प्रतियोगितापूर्ण और कुशल बाजारों का निर्माण करके आर्थिक विकास, रोजगार और गरीबी कम करने का दावा करती है। इसकी एक 'साइबर सर्विस' है जिसे 'विकासीय सोच के लिए बाजार तक पहुंच' कह जाता है। यह बाजारोन्मुखी और कारपोरेटोन्मुखी विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम करती है।
आईएफसी के कार्यों पर अगर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि इसकी ज्यादातर सहायता छोटी और स्थानीय फर्मों को नहीं बल्कि बड़ी, संपन्न कंपनियों को जाती है। आईएफसी के जरिए ही कंपनियां, बड़ी सरकारी सेवा प्राप्त परियोजनाओं और बिना जोखिम वाले निवेश अवसरों को बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेती हैं, जबकि स्थानीय समुदायों की आवाज दबकर रह जाती है और उन्हें इन निवेशों से कोई मुनाफा तक नहीं मिलता, क्योंकि ज्यादा मुनाफे के लालच में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां सामाजिक और पर्यावरणीय रक्षा उपायों को नजरअंदाज कर देती हैं।
एमआईजीए ऊंचे जोखिम, कम आमद और संघर्ष प्रभावित देशों में निजी निवेश की राजनीतिक बाधाओं को दूर करके, निजी कंपनियों को महत्वपूर्ण सेवा उपलब्ध कराता है। मीगा की विशिष्टता राजनीतिक और संप्रभुता संबंधी खतरों को कम करना है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफों को खतरा बनने वाले राजनीतिक कार्य शामिल हैं। मीगा आतंकवाद, क्रांति, विद्रोह, युध्द या घरेलू अशांति, करार भंग होने या सरकार द्वारा संपत्ति जब्त कर लेने जैसी अवस्थाओं में कंपनी निवेशकों को खतरे से सुरक्षा की गारंटी देता है। मीगा राजनीतिक खतरा बीमा उद्योग का नेतृत्व करता है और निजी क्षेत्र के बीमा धारकों को लेन-देन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए निजी और सरकारी बीमाधारकों के साथ सहयोग करता है। मीगा खासतौर से पानी, ऊर्जा, तेल और गैस, दूर संचार, ऑटोमोबाइल्स, व्यावसायिक कृषि आदि क्षेत्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाता है। 'विवाद के समय बीच-बचाव' की सेवा भी यह उपलब्ध कराता है। इसक कार्य में आईसीएसआईडी इसकी सहायता करता है, आईसीएसआईडी राज्य और प्राइवेट निवेशकों के बीच विवादों का निपटारा करने वाला एक निजी और गुप्त न्यायालय है। यह न्यायालय उस समय सार्वजनिक रूप से प्रकाश में आया जब हाल में बैशल और अगुआस डेल तुनारी ने कोचाबाम्बा के बोलिविया के एक शहर में पानी के निजीकरण के करार को खारिज करने के कारण, बोलीविया सरकार के खिलाफ 50 मिलियन अमरीकी डॉलर का मुकद्मा कर दिया था।
30 सेंट लेकर मुकदमें का निपटारा करने के लिए, बड़े अंतरराष्ट्रीय अभियान द्वारा बैशल पर दबाव डाला गया। लेकिन इस मामले से दुनिया के सामने बैंक व्यवस्था की सारी पोल खुल गई कि इसने व्यापारिक न्यायालयों के दरवाजे बंद कर रखे हैं, ये न्यायालय केवल उन कंपनी निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं जो संवेदनशील जनहित क्षेत्रों- पानी, बिजली, दूरसंचार, तेल, प्राकृतिक गैस और खनन आदि में काम कर रही हैं।
विकास के नाम पर कंपनियां का पोषण-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नीतियों का पोषण करने वाली बैंक की वित्तीय व्यवस्था, तथाकथित विकास के लिए, आईबीआरडी और इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) के माध्यम से योजनाएं और कार्यक्रम प्रायोजित करती है।
हालांकि जिन आर्थिक-सुधारों के लिए बैंक वित्तीय सहायता देता है, उनके लिए यह छोटी, कुशल और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पोषण करने वाली सरकारों की तलाश करते हैं जो कंपनियों की पोषण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर शासन करती हैं। इन्हें पहले ढांचागत समायोजन कार्यक्रम कहा जाता था और फिर 'गरीबी घटाने की रणनीति' का नाम दिया गया। ये सुधार कार्यक्रम कर्जदार देशों द्वारा विदेशी निवेशकों के लिए बाजार अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए बनाए गए हैं, इसके लिए उन्हें व्यापार और निवेश का उदारीकरण, सार्वजनिक सुविधाओं का निजीकरण, राज्य- विपणन बोर्ड (मार्केटिंग) और राज्य इंटरप्राइज और आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना होगा।
सुधारों की यह भी मांग है कि गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी, श्रमिकों, घरेलू उत्पादकों और कंपनियों को दी जाने वाली सुरक्षा में कमी करनी होगी। इसके अलावा सार्वजनिक वित्तीय सहायता प्राप्त सामाजिक कार्यक्रमों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और सफाई आदि में भी भारी कटौती की जाए।
हालांकि बैंक के 'विकास के लिए धन' का मुख्य उद्देश्य गरीबी को कम करना, रोजगार में वृध्दि और आर्थिक वृध्दि की दर बढ़ाकर जीवन-स्तर ऊपर उठाना है, जबकि बैंक की योजनाएं और कार्यक्रम गरीबों के बजाय निजी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकार फर्मों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं। घरेलू उत्पादकों और उद्योगों से सरकारी समर्थन समाप्त करके, व्यापारिक उदारीकरण को लादकर बैंक विदेशी कंपनियों के लिए विकासशील देशों के कृषि, सेवाएं और उद्योग आदि क्षेत्रों के बाजार में निर्वाध घुसपैठ के लिए रास्ता बना रहा है।
कर्जदार देश श्रम और पर्यावरणीय नियमों को कम करने और कंपनियों की सहायता के लिए कर और संपत्ति क्षेत्र बनाने पर मजबूर हो जाते हैं, इस तरह बैंक स्थानीय समुदायों, श्रमिकों और पर्यावरण की कीमत पर निजी निवेशकों के लाभ के लिए धरातल तैयार करता है।
व्यापारीकरण और निजीकरण में बैंक के विश्वास ने कंपनियों का पोषण किया है। पानी, बिजली, कृषि- विपणन, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि क्षेत्रों की समस्याओं की परवाह किये बिना बैंक यह मांग करता है कि सरकार को बाहर करके बाजार व्यवस्था को लागू होना चाहिए।
निजीकरण के तहत सार्वजनिक उद्योग में निर्बाध कार्रवाई और फिर सार्वजनिक उद्योग को पूर्ण या आंशिक रूप से बिक्री के लिए ठेका देना है। इन समझौतों में उच्च लक्ष्य पाने के लिए 'तकनीकी सहायता' और सहायक वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धि और करार लागू करने वाली एजेंसी (साधारणत: सरकारी विभाग) की जिम्मेदारी है। निजीकृत संपत्तियां और निर्माण, सलाहकार संस्था और सौदों के ठेके आमतौर पर बड़ी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकार फर्मों को जाते हैं, जिनमें बोली और सौदों के लिए बैंक के नियम लागू होते हैं।
बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गठजोड़ बायोटेक्नालॉजी और एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। बैंक की कृषि नीतियां व्यावहारिक रूप से मोनसेंटो, नोवार्टिस और डॉव जैसी कंपनियों द्वारा तैयार की गई हैं। 1990 के दशक में जब बैंक ने पर्यावरणीयता का भ्रामक प्रचार किया तब इसकी योजनाएं किसानों को ज्यादा रसायनों और जीएम, जैनेटिकली मोडिफाइड बीजों का इस्तेमाल करने की वकालत कर रही थीं।
इसी दौरान बैंक ने सभी प्रमुख पेस्टीसाइड और बायोटेक्नालॉजी कंपनियों के साथ व्यवसायिक हिस्सेदारी कर ली, इसके लिए 'स्टाफ एक्सचेंज प्रोग्राम' अपनाया गया जिसमें 189 कंपनियों, सरकारों, विश्वविद्यालयों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को शामिल किया गया। अवेन्टिस (वर्तमान बॉयर क्रॉप साइंस) ने खेती में बायो टेक्नोलॉजी में आईबीआरडी की स्थिति को मजबूत करने के लिए और आईएफसी द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए आईबीआरडी में लगभग चार साल लगा दिए।
नोवार्टिस (वर्तमान सिनजेंटा) के सार्वजनिक कार्यों के अध्यक्ष ने बैंक की ग्रामीण विकास इकाई की रणनीतियों को दूर तक पहुंचाने के लिए एक वर्ष तक काम किया। नोवार्टिस और रोनपॉलेंक एग्रो (वर्तमान बायर का हिस्सा) नियुक्त बैंक के अधिकारियों ने 90 के दशक के अंत में उनकी बायोटेक्नालॉजी नियमन मुद्दों और ग्रामीण विकास पार्टनरशिप में सहायता की। इस तरह बैंक ने बड़ी बायोटेक्नालॉजी और एग्रोकेमिकल कंपनियों को खुश करने के लिए अपनी कृषि संबंधी रणनीति तैयार की, परिणामस्वरूप इनके लिए विकासशील देशों में सार्वजनिक नीति निर्माण में घुसपैठ करने का रास्ता साफ हो गया।
बैंक में कंपनियों का पोषण करने वाली सोच पनप रही है। बैंक के बहुत से अध्यक्ष और वरिष्ठ कर्मचारी कंपनी क्षेत्र से ही आते हैं और जो किसी भी चुनौती- 'वनों का कटाव, ग्लोबल वार्मिंग और अन्न व जल की कमी' आदि के लिए बैंक की रणनीति में एक ही उपाय सुझाते हैं, वह है- 'बाजार समाधान' बैंक की विकासात्मक विचारधारा पूंजीवादी है, जिसमें सरकारों की भूमिका निजी क्षेत्र की कंपनियों के विकास और बाजार में घुसपैठ और वितरण के लिए उचित वातावरण का निर्माण करने तक ही सीमित होकर रह गई है।
उदाहरण के तौर पर विशाल पन-बिजली योजनाओं ने बैंक मेजबान सरकारों और निजी ठेकेदारों की योजना तैयार करने और वित्तीय सहायता जुटाने में नियमित सहायता करता है योजना का प्रारूप तैयार करने, प्रबंधों को अमल में लाने और आईएफसी द्वारा वित्तीय सहायता जुटाने के लिए यह सरकारी विभागों के साथ काम करने के लिए प्राइवेट सलाहकार फर्मों को भी हायर करता है और मीगा या अन्य जोखिम गारंटर एजेंसी के माध्यम से कर्ज के जोखिम की सुरक्षा भी करवाता है। सामाजिक और पर्यावरणीय लागतों को कम करने की जिम्मेदारी सरकार और समाज पर छोड़ दी जाती है, जबकि योजना की वित्तीय सहायता और गारंटी की शर्तें सार्वजनिक हित की बजाय निजी कंपनियां मुनाफे के लिए होती हैं।
मीगा की बेवसाइट से यह बात स्पष्ट होती है कि बैंक को बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निजी निवेशकों को सहायता देने में बहुत गर्व है : निवेश में हमारी उपस्थिति 'नो गो' को 'गो' में बदल सकती है। हम सरकारी क्रियाकलापों में एक रुकावट की तरह काम करते हैं। जिसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अगर कुछ विवाद उभरते भी हैं तो मेजबान देशों के साथ हमारे संबंध सारे मतभेदों को मिटाकर हमें सभी पक्षों को परस्पर खुश रखने में सहायता करते हैं।
पिछले कुछ दशकों में बैंक कंपनियों के हितों का पोषण करने के लिए ही विकास और गरीबी घटाने जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है। इसने विकासशील देशों में निजी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकारों को संरचनात्मक जरूरतों और विकासशील देशों की समस्याओं से मुनाफा कमाने के लिए अवसर तैयार करने के लिए साहूकार और सहायता समन्वयक की स्थिति कायम कर ली है। स्पष्ट है कि अपनी सार्वजनिक वस्तुओं, सेवाओं और संपत्तियों से कारपोरेटी शक्तियों के कब्जे को हटाने का मतलब होगा- विश्व बैंक की सत्ता को नकारना। - प्रस्तुति मीनाक्षी अरोड़ा
अमीरों का समर्थन- पिछले 60 सालों में बैंक 'इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट' (आईबीआरडी) नाम की एक संस्था के स्वरूप से उठकर पांच संस्थाओं में विस्तृत हो गया है, ये पांचों संस्थाएं विशिष्ट कार्यक्षेत्र से संबंधित हैं। इनमें आर्थिक सहायता के अतिरिक्त, राहत और पुनर्वास, विद्युत, परिवहन, दूर संचार आदि क्षेत्रों में संस्थात्मक व संरचनात्मक ढांचे और स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, खेती आदि को निजी क्षेत्र में लाने और बाजारीकरण करने के लिए पुनर्निर्माण के लिए सहायता देना शामिल है। इनमें निजी क्षेत्र का विकास और निवेश संबंधी बाधाओं को निजी कंपनियों के लिए कम करना भी शामिल है। हाल के अनैतिक आचरणों के बावजूद भी बैंक एक शक्तिशाली संस्था है। इसके सदस्य देशों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विकास के लिए आर्थिक सहायता और निजी निवेश के लिए पूंजी का एकमात्र रास्ता है। बैंक की शक्ति और नीतिगत एजेंडा सबसे अमीर देशों की सरकारों के हाथ में है, जो जी-72 में शामिल हैं और विकासशील देशों में काम कर रही अपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यापार और निवेश को सुनिश्चित करने के लिए बैंक का इस्तेमाल करते हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव बैंक के अंदर और बाहर कई रूपों में नजर आता है। बैंक की तीन विशिष्ट संस्थाएं हैं- इंटरनेशल फिनांस कॉरपोरेशन (आईएफसी) मल्टीलेटरल इंवेस्टमेंट गारंटी एजेंसी (एमआईजीए) और इंटनरेशनल सेंटर फॉर द सैटलमेंट ऑव इंवेस्टमेंट डिस्प्यूट्स (आईसीएसआईडी) निजी क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पूरी सहायता देती हैं।
आईएफसी बैंक की निजी क्षेत्र की भुजा है। यह विकासशील देशों की प्राइवेट कंपनियों को लोन और इक्विटी जुटाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी स्रोत है। यह विकासशील देशों की निजी कंपनियाें को प्रत्यक्ष समर्थन देकर और खुले प्रतियोगितापूर्ण और कुशल बाजारों का निर्माण करके आर्थिक विकास, रोजगार और गरीबी कम करने का दावा करती है। इसकी एक 'साइबर सर्विस' है जिसे 'विकासीय सोच के लिए बाजार तक पहुंच' कह जाता है। यह बाजारोन्मुखी और कारपोरेटोन्मुखी विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम करती है।
आईएफसी के कार्यों पर अगर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि इसकी ज्यादातर सहायता छोटी और स्थानीय फर्मों को नहीं बल्कि बड़ी, संपन्न कंपनियों को जाती है। आईएफसी के जरिए ही कंपनियां, बड़ी सरकारी सेवा प्राप्त परियोजनाओं और बिना जोखिम वाले निवेश अवसरों को बड़ी सरलता से प्राप्त कर लेती हैं, जबकि स्थानीय समुदायों की आवाज दबकर रह जाती है और उन्हें इन निवेशों से कोई मुनाफा तक नहीं मिलता, क्योंकि ज्यादा मुनाफे के लालच में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां सामाजिक और पर्यावरणीय रक्षा उपायों को नजरअंदाज कर देती हैं।
एमआईजीए ऊंचे जोखिम, कम आमद और संघर्ष प्रभावित देशों में निजी निवेश की राजनीतिक बाधाओं को दूर करके, निजी कंपनियों को महत्वपूर्ण सेवा उपलब्ध कराता है। मीगा की विशिष्टता राजनीतिक और संप्रभुता संबंधी खतरों को कम करना है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मुनाफों को खतरा बनने वाले राजनीतिक कार्य शामिल हैं। मीगा आतंकवाद, क्रांति, विद्रोह, युध्द या घरेलू अशांति, करार भंग होने या सरकार द्वारा संपत्ति जब्त कर लेने जैसी अवस्थाओं में कंपनी निवेशकों को खतरे से सुरक्षा की गारंटी देता है। मीगा राजनीतिक खतरा बीमा उद्योग का नेतृत्व करता है और निजी क्षेत्र के बीमा धारकों को लेन-देन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए निजी और सरकारी बीमाधारकों के साथ सहयोग करता है। मीगा खासतौर से पानी, ऊर्जा, तेल और गैस, दूर संचार, ऑटोमोबाइल्स, व्यावसायिक कृषि आदि क्षेत्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाता है। 'विवाद के समय बीच-बचाव' की सेवा भी यह उपलब्ध कराता है। इसक कार्य में आईसीएसआईडी इसकी सहायता करता है, आईसीएसआईडी राज्य और प्राइवेट निवेशकों के बीच विवादों का निपटारा करने वाला एक निजी और गुप्त न्यायालय है। यह न्यायालय उस समय सार्वजनिक रूप से प्रकाश में आया जब हाल में बैशल और अगुआस डेल तुनारी ने कोचाबाम्बा के बोलिविया के एक शहर में पानी के निजीकरण के करार को खारिज करने के कारण, बोलीविया सरकार के खिलाफ 50 मिलियन अमरीकी डॉलर का मुकद्मा कर दिया था।
30 सेंट लेकर मुकदमें का निपटारा करने के लिए, बड़े अंतरराष्ट्रीय अभियान द्वारा बैशल पर दबाव डाला गया। लेकिन इस मामले से दुनिया के सामने बैंक व्यवस्था की सारी पोल खुल गई कि इसने व्यापारिक न्यायालयों के दरवाजे बंद कर रखे हैं, ये न्यायालय केवल उन कंपनी निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं जो संवेदनशील जनहित क्षेत्रों- पानी, बिजली, दूरसंचार, तेल, प्राकृतिक गैस और खनन आदि में काम कर रही हैं।
विकास के नाम पर कंपनियां का पोषण-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नीतियों का पोषण करने वाली बैंक की वित्तीय व्यवस्था, तथाकथित विकास के लिए, आईबीआरडी और इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) के माध्यम से योजनाएं और कार्यक्रम प्रायोजित करती है।
हालांकि जिन आर्थिक-सुधारों के लिए बैंक वित्तीय सहायता देता है, उनके लिए यह छोटी, कुशल और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पोषण करने वाली सरकारों की तलाश करते हैं जो कंपनियों की पोषण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर शासन करती हैं। इन्हें पहले ढांचागत समायोजन कार्यक्रम कहा जाता था और फिर 'गरीबी घटाने की रणनीति' का नाम दिया गया। ये सुधार कार्यक्रम कर्जदार देशों द्वारा विदेशी निवेशकों के लिए बाजार अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए बनाए गए हैं, इसके लिए उन्हें व्यापार और निवेश का उदारीकरण, सार्वजनिक सुविधाओं का निजीकरण, राज्य- विपणन बोर्ड (मार्केटिंग) और राज्य इंटरप्राइज और आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना होगा।
सुधारों की यह भी मांग है कि गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी, श्रमिकों, घरेलू उत्पादकों और कंपनियों को दी जाने वाली सुरक्षा में कमी करनी होगी। इसके अलावा सार्वजनिक वित्तीय सहायता प्राप्त सामाजिक कार्यक्रमों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और सफाई आदि में भी भारी कटौती की जाए।
हालांकि बैंक के 'विकास के लिए धन' का मुख्य उद्देश्य गरीबी को कम करना, रोजगार में वृध्दि और आर्थिक वृध्दि की दर बढ़ाकर जीवन-स्तर ऊपर उठाना है, जबकि बैंक की योजनाएं और कार्यक्रम गरीबों के बजाय निजी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकार फर्मों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं। घरेलू उत्पादकों और उद्योगों से सरकारी समर्थन समाप्त करके, व्यापारिक उदारीकरण को लादकर बैंक विदेशी कंपनियों के लिए विकासशील देशों के कृषि, सेवाएं और उद्योग आदि क्षेत्रों के बाजार में निर्वाध घुसपैठ के लिए रास्ता बना रहा है।
कर्जदार देश श्रम और पर्यावरणीय नियमों को कम करने और कंपनियों की सहायता के लिए कर और संपत्ति क्षेत्र बनाने पर मजबूर हो जाते हैं, इस तरह बैंक स्थानीय समुदायों, श्रमिकों और पर्यावरण की कीमत पर निजी निवेशकों के लाभ के लिए धरातल तैयार करता है।
व्यापारीकरण और निजीकरण में बैंक के विश्वास ने कंपनियों का पोषण किया है। पानी, बिजली, कृषि- विपणन, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि क्षेत्रों की समस्याओं की परवाह किये बिना बैंक यह मांग करता है कि सरकार को बाहर करके बाजार व्यवस्था को लागू होना चाहिए।
निजीकरण के तहत सार्वजनिक उद्योग में निर्बाध कार्रवाई और फिर सार्वजनिक उद्योग को पूर्ण या आंशिक रूप से बिक्री के लिए ठेका देना है। इन समझौतों में उच्च लक्ष्य पाने के लिए 'तकनीकी सहायता' और सहायक वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धि और करार लागू करने वाली एजेंसी (साधारणत: सरकारी विभाग) की जिम्मेदारी है। निजीकृत संपत्तियां और निर्माण, सलाहकार संस्था और सौदों के ठेके आमतौर पर बड़ी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकार फर्मों को जाते हैं, जिनमें बोली और सौदों के लिए बैंक के नियम लागू होते हैं।
बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गठजोड़ बायोटेक्नालॉजी और एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। बैंक की कृषि नीतियां व्यावहारिक रूप से मोनसेंटो, नोवार्टिस और डॉव जैसी कंपनियों द्वारा तैयार की गई हैं। 1990 के दशक में जब बैंक ने पर्यावरणीयता का भ्रामक प्रचार किया तब इसकी योजनाएं किसानों को ज्यादा रसायनों और जीएम, जैनेटिकली मोडिफाइड बीजों का इस्तेमाल करने की वकालत कर रही थीं।
इसी दौरान बैंक ने सभी प्रमुख पेस्टीसाइड और बायोटेक्नालॉजी कंपनियों के साथ व्यवसायिक हिस्सेदारी कर ली, इसके लिए 'स्टाफ एक्सचेंज प्रोग्राम' अपनाया गया जिसमें 189 कंपनियों, सरकारों, विश्वविद्यालयों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को शामिल किया गया। अवेन्टिस (वर्तमान बॉयर क्रॉप साइंस) ने खेती में बायो टेक्नोलॉजी में आईबीआरडी की स्थिति को मजबूत करने के लिए और आईएफसी द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए आईबीआरडी में लगभग चार साल लगा दिए।
नोवार्टिस (वर्तमान सिनजेंटा) के सार्वजनिक कार्यों के अध्यक्ष ने बैंक की ग्रामीण विकास इकाई की रणनीतियों को दूर तक पहुंचाने के लिए एक वर्ष तक काम किया। नोवार्टिस और रोनपॉलेंक एग्रो (वर्तमान बायर का हिस्सा) नियुक्त बैंक के अधिकारियों ने 90 के दशक के अंत में उनकी बायोटेक्नालॉजी नियमन मुद्दों और ग्रामीण विकास पार्टनरशिप में सहायता की। इस तरह बैंक ने बड़ी बायोटेक्नालॉजी और एग्रोकेमिकल कंपनियों को खुश करने के लिए अपनी कृषि संबंधी रणनीति तैयार की, परिणामस्वरूप इनके लिए विकासशील देशों में सार्वजनिक नीति निर्माण में घुसपैठ करने का रास्ता साफ हो गया।
बैंक में कंपनियों का पोषण करने वाली सोच पनप रही है। बैंक के बहुत से अध्यक्ष और वरिष्ठ कर्मचारी कंपनी क्षेत्र से ही आते हैं और जो किसी भी चुनौती- 'वनों का कटाव, ग्लोबल वार्मिंग और अन्न व जल की कमी' आदि के लिए बैंक की रणनीति में एक ही उपाय सुझाते हैं, वह है- 'बाजार समाधान' बैंक की विकासात्मक विचारधारा पूंजीवादी है, जिसमें सरकारों की भूमिका निजी क्षेत्र की कंपनियों के विकास और बाजार में घुसपैठ और वितरण के लिए उचित वातावरण का निर्माण करने तक ही सीमित होकर रह गई है।
उदाहरण के तौर पर विशाल पन-बिजली योजनाओं ने बैंक मेजबान सरकारों और निजी ठेकेदारों की योजना तैयार करने और वित्तीय सहायता जुटाने में नियमित सहायता करता है योजना का प्रारूप तैयार करने, प्रबंधों को अमल में लाने और आईएफसी द्वारा वित्तीय सहायता जुटाने के लिए यह सरकारी विभागों के साथ काम करने के लिए प्राइवेट सलाहकार फर्मों को भी हायर करता है और मीगा या अन्य जोखिम गारंटर एजेंसी के माध्यम से कर्ज के जोखिम की सुरक्षा भी करवाता है। सामाजिक और पर्यावरणीय लागतों को कम करने की जिम्मेदारी सरकार और समाज पर छोड़ दी जाती है, जबकि योजना की वित्तीय सहायता और गारंटी की शर्तें सार्वजनिक हित की बजाय निजी कंपनियां मुनाफे के लिए होती हैं।
मीगा की बेवसाइट से यह बात स्पष्ट होती है कि बैंक को बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निजी निवेशकों को सहायता देने में बहुत गर्व है : निवेश में हमारी उपस्थिति 'नो गो' को 'गो' में बदल सकती है। हम सरकारी क्रियाकलापों में एक रुकावट की तरह काम करते हैं। जिसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अगर कुछ विवाद उभरते भी हैं तो मेजबान देशों के साथ हमारे संबंध सारे मतभेदों को मिटाकर हमें सभी पक्षों को परस्पर खुश रखने में सहायता करते हैं।
पिछले कुछ दशकों में बैंक कंपनियों के हितों का पोषण करने के लिए ही विकास और गरीबी घटाने जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है। इसने विकासशील देशों में निजी कंपनियों, ठेकेदारों और सलाहकारों को संरचनात्मक जरूरतों और विकासशील देशों की समस्याओं से मुनाफा कमाने के लिए अवसर तैयार करने के लिए साहूकार और सहायता समन्वयक की स्थिति कायम कर ली है। स्पष्ट है कि अपनी सार्वजनिक वस्तुओं, सेवाओं और संपत्तियों से कारपोरेटी शक्तियों के कब्जे को हटाने का मतलब होगा- विश्व बैंक की सत्ता को नकारना। - प्रस्तुति मीनाक्षी अरोड़ा
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