ठेका खेती के बड़े ठेकेदार -डा. देवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कैबिनेट की मंजूरी के बाद प्रदेश की नई कृषि एवं अवस्थापना निवेश नीति लागू करने की घोषणा की। इस नीति के तहत निजी कम्पनियों और किसानों के लिए अनुबंध खेती (कांट्रैक्ट फार्मिंग) का विकल्प खोल दिया गया है जिसके तहत कम्पनियाँ सीधे किसानों को बीज, खाद और कर्ज सुविधा उपलब्ध कराकर उनके द्वारा उत्पादित गेहूँ, चावल, दाल, फल, फूल, सब्जी इत्यादि खरीद सकेंगी और रिटेल बाजार में बेच सकेंगी। बड़े निवेशकों को मंडी स्थल के बाहर खरीदने-बेचने की सुविधा होगी। सरकार इसके लिए लाइसेंस जारी करेगी तथा एकल लाइसेंस की व्यवस्था की गयी है। इसके लिए मण्डी परिषद एक्ट, 1964 में संशोधन किया गया है। न्यूनतम रु. 500 करोड़ वाले निवेशक इच्छा अभिव्यक्ति पत्र प्रस्तुत करेगें तथा उन्हें 3 वर्ष में कृषि व्यवसाय एवं सम्बंधित क्षेत्र में 5,000 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा। (किसानों और जनसंगठनों के विरोध के कारण मायावती ने यह नीति 23 अगस्त को वापिस ले ली है।)

अनुबंध खेती के तहत किसान अपनी कृषि योग्य जमीन पर प्रायोजक कम्पनी के मानदण्डों के अनुसार खेती करता है तथा मानदण्ड पर खरा उतरने पर ही उसके उत्पाद खरीदे जा सकते हैं। अभी तक कृषि व्यवसाय के खुदरा व्यापार में आईटीसी अपने ई-चौपाल, महिन्द्रा अपने शुभ-लाभ, गोदरेज एग्रोवेट अपने 'आधार', टाटा अपने टाटा किसान संसार, रिलायंस अपने रिलायंस फ्रेश, भारती इण्टर प्राइजेज अपने फील्ड फ्रेश के नाम से कृषि व्यवसाय में स्थापित हैं। कृषि व्यवसाय पर कब्जा जमाने की वास्तविकता का आभास इसी से होता है कि रिलायंस ने 784 कस्बों, 6000 मण्डियों तथा 1,600 ग्रामीण व्यवसाय में अपनी सेवायें देने की योजना बनायी है तथा इसके लिए रु. 50,000 करोड़ के निवेश की योजना है। (बिजनेसवर्ल्ड, 9 जुलाई 2007)

1990 के दशक में संचार क्रांति करने वाले सुनील मित्ताल ने खुदरा क्षेत्र की कम्पनी 'वाल-मार्ट' से हाथ मिलाकर कृषि व्यवसाय में पाँव पसारना शुरू कर दिया है। उनका समूह रॉथशील्ड समूह के साथ मिलकर एलरो होल्डिंग इंण्डिया नाम की कम्पनी बनाकर 'फील्ड फ्रेश' ब्रांड से अपने कृषि उत्पाद का निर्यात कर रहा है। क्रिसिल शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा क्षेत्र में खाद्य एवं ग्रासरी सामग्री का हिस्सा कुल बिक्री का 74 प्रतिशत है जो लगभग 1280000 करोड़ रु. है जिसमें वर्तमान में मात्र 18 प्रतिशत संगठित खुदरा व्यापार के हिस्से में है। जाहिर है इन कम्पनियों के लिए यह बाजार अवसर भरा है। प्रमुख शीतल पेय कम्पनी पेप्सिको होंल्डिंग ने अनुबंध खेती की शुरुआत पंजाब में की थी जिसके माध्यम से वहाँ टमाटर, मिर्च, मूँगफली इत्यादि की वाणिज्यिक खेती की गयी। अब पूरे देश में उत्पादक क्षेत्रों को चयनित करके अनुबंध खेती करके खुदरा कृषि व्यापार पर कब्जा जमाने की तैयारी चल रही है।

आईटीसी के अध्यक्ष वाई.सी. देवेश्वर ने 27 जुलाई 2007 को वार्षिक आम सभा में उपस्थित शेयर धारकों को सम्बोधित करते हुए बताया कि कम्पनी द्वारा वर्तमान में 6400 ई-चौपाल संचालित है जो 38500 गाँवों तथा 9 राज्यों में फैले हैं।

आईटीसी ने सब्जी एवं फल व्यवसाय में पैर जमाने की तैयारी कर ली है। 'टाटा किसान संसार' के माध्यम से टाटा समूह किसानों को तकनीकी जानकारी, बीज, खाद, रसायन इत्यादि प्रदान कर रहा है। अभी तक कम्पनी ने तीन राज्यों में 14000 केन्द्र स्थापित किये हैं। कम्पनी इन्हीं केन्द्रों के माध्यम से 15000 हेक्टेयर जमीन पर अनुबंध खेती भी करा रही है जिसमें उ.प्र. और, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में फूल तथा पंजाब में सब्जी की खेती की जा रही है।

ग्रामीण बाजार पर अपने उत्पादों से पकड़ बनाने वाली कम्पनी गोदरेज ने अपनी कम्पनी 'गोदरेज एग्रोवेट' के माध्यम से 70 'आधार' एवं 'मंथन' केन्द्र खोल रखे हैं। कृषि के लिए आवश्यक सामग्री जैसे बीज, खाद बेचने के साथ-साथ ये केन्द्र मिट्टी परीक्षण, पशु स्वास्थ्य सबंधी सलाह इत्यादि सेवायें देगें। इस वर्ष कम्पनी कुल 2500 गाँवों में अपना प्रसार करके कृषि उत्पाद को खरीद कर अपनी खुदरा श्रृखंला 'नेचर्स बास्केट' के माध्यम से महानगरीय उपभोक्ताओं को संतुष्ट करेगी।

महाराष्ट्र के रत्नागिरी क्षेत्र में पैंटेलून लि. ने किसानों की सहकारी समिति बनाकर सीधे कृषि उत्पाद जैसे आम की खरीद शुरू की है। पिछले वर्ष किशोर बियानी की इस कम्पनी ने 35000 टन आम खरीदे। पैंटेलून का खाद्य उत्पाद व्यवसाय 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। (बिजनेस वर्ल्ड 9 जुलाई 2005)

रिलायंस ने जामनगर स्थित पेट्रोकेमिकल परिसर में आम की खेती कर उसका निर्यात किया तथा नवसारी के पास किसानों के साथ मिलकर कम्पनी ने आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों तथा अश्वगंधा तथा सौंदर्य प्रसाधन में काम आने वाली औषधियों की खेती शुरू की है। इसके लिए कम्पनी ने 225 करोड़ रुपए खर्च किये हैं (संगवई, संजय: किसानो के नये कम्पनी बहादुर, सामयिक वार्ता, फरवरी-मार्च, 2005)

हाल ही में पंजाब तथा हरियाणा में शिमला मिर्च 3-5 रु. किलो बिकी। कारण था कि बड़ी कम्पनियों ने किसानों से उनके उत्पाद नहीं लिये जिसके कारण उनको कम दाम पर बाजार में उत्पाद देना पड़ा। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में गन्ने की अच्छी पैदावार हुई, पर किसानों को उचित मूल्य नहीं मिला या उनकी फसल खरीद न होने कारण सूख गयी।

वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने बजट 2007-08 में कृषि हेतु कई वित्तीय पैकेज की घोषणा की जिनमें कृषि ऋण हेतु रु. 2,25,000 करोड़ की व्यवस्था तथा 50,00,000 नये किसानों की ऋण सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा। बजट में उन्होनें ऋणग्रस्तता के अध्ययन हेतु डा. आर. राधाकृष्ण समिति का गठन, दलहन के लिए मिशन, सूखा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के लिए 100 करोड़ रुपये, भूमिगत जल प्रबंधन हेतु 1800 करोड़ रुपये तथा आल्मा को 300 जिलों में आच्छादित करने हेतु 230 करोड़ रुपये; कृषि बीमा के लिए 500 करोड़ रुपये एवं अन्य मदो हेतु वित्तीय प्रावधान किये।

इसी सरकारी पैकेज को हड़पने के लिए बड़ी कम्पनियाँ किसानों को बीज, खाद, सप्लाई एवं वैज्ञानिक सलाह तक अपने को सिमित कर रही हैं क्योकि असली मुनाफा यहीं मिलेगा। जबकि सिंचाई, भूमि का समतलीकरण, आधारभूत संरचना या तो राज्य करे या फिर किसान। वित्त मंत्री द्वारा प्रावधानित राशि को कैसे खींचा जाय, इसके के लिए इन कम्पनियों में होड़ लगी है।

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