न्यायाधिकरण में नहीं पहुंचे विश्व बैंक के अधिकारी
नई दिल्ली।(पीएनएन) विश्व बैंक के कार्यों पर हो रहे चार दिवसीय 'स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण में चौथे दिन न्यायाधीशों ने अपना फैसला सुनाया। न्यायाधिकरण में भारत में बैंक की नीतियों और बढ़ते हस्तक्षेप को लेकर कई आरोप लगाए गए। हालांकि विश्व बैंक के भारतीय कार्यालय ने स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण में शामिल होने का दावा किया था और यह भी कहा था कि वे बैंक के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे, लेकिन पर्याप्त समय और स्थान दिए जाने के बावजूद भी वे अपने दावे को सिध्द करने के लिए नहीं पहुंचे।
जन न्यायाधिकरण ने पाया कि भारतीय राष्ट्रीय नीतियों को बनाने में विश्व बैंक का प्रभाव नकारात्मक और असंगत रहा है। हालांकि भारत विश्व बैंक से सहायता प्राप्त करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार है। इस पर 1944 से अब तक 60 बिलियन डॉलर (2 लाख 40 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज है। इस समय वार्षिक कर्ज देश के सकल घरेलू उत्पाद से एक फीसदी से भी कम है (नई योजनाओं के लिए 2005 में विश्व बैंक से लिया गया कर्ज जीडीपी का 0.45 फीसदी था)
इन कर्जों का प्रयोग महत्वपूर्ण नीतियों में बदलाव लाने और विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शर्तें मनवाने के लिए किया गया। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से प्रशासनिक सुधार, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी और पर्यावरण हैं, जिनका सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रतिकूल परिणाम भी रहा है। ये कर्ज एशियन विकास बैंक (एडीबी) और डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (डीएफआईडी) - यूके जैसे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संस्थाओं से अतिरिक्त आर्थिक सहायता को वैधानिक रूप प्रदान करते हैं। विश्व बैंक से लिए गए कर्जे ने बहुत हद तक सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान किया है। इससे नर्मदा घाटी में पलायन से लेकर बड़वानी जैसे स्थानों पर परम्परागत मछुवारों की जीविका तक का नुकसान हुआ है।
नई दिल्ली।(पीएनएन) विश्व बैंक के कार्यों पर हो रहे चार दिवसीय 'स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण में चौथे दिन न्यायाधीशों ने अपना फैसला सुनाया। न्यायाधिकरण में भारत में बैंक की नीतियों और बढ़ते हस्तक्षेप को लेकर कई आरोप लगाए गए। हालांकि विश्व बैंक के भारतीय कार्यालय ने स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण में शामिल होने का दावा किया था और यह भी कहा था कि वे बैंक के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करेंगे, लेकिन पर्याप्त समय और स्थान दिए जाने के बावजूद भी वे अपने दावे को सिध्द करने के लिए नहीं पहुंचे।
जन न्यायाधिकरण ने पाया कि भारतीय राष्ट्रीय नीतियों को बनाने में विश्व बैंक का प्रभाव नकारात्मक और असंगत रहा है। हालांकि भारत विश्व बैंक से सहायता प्राप्त करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार है। इस पर 1944 से अब तक 60 बिलियन डॉलर (2 लाख 40 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज है। इस समय वार्षिक कर्ज देश के सकल घरेलू उत्पाद से एक फीसदी से भी कम है (नई योजनाओं के लिए 2005 में विश्व बैंक से लिया गया कर्ज जीडीपी का 0.45 फीसदी था)
इन कर्जों का प्रयोग महत्वपूर्ण नीतियों में बदलाव लाने और विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शर्तें मनवाने के लिए किया गया। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से प्रशासनिक सुधार, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी और पर्यावरण हैं, जिनका सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रतिकूल परिणाम भी रहा है। ये कर्ज एशियन विकास बैंक (एडीबी) और डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (डीएफआईडी) - यूके जैसे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संस्थाओं से अतिरिक्त आर्थिक सहायता को वैधानिक रूप प्रदान करते हैं। विश्व बैंक से लिए गए कर्जे ने बहुत हद तक सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान किया है। इससे नर्मदा घाटी में पलायन से लेकर बड़वानी जैसे स्थानों पर परम्परागत मछुवारों की जीविका तक का नुकसान हुआ है।
न्यायाधिकरण ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि भारत के नीति निर्माण पर यह स्वेच्छाचारी प्रभाव विश्वबैंक के अपने ही रूल्स ऑफ एसोसिएशन का उल्लंघन करता है। जिसमें इसे एक अराजनीतिक संस्था का दर्जा दिया गया है और यह भी साफ तौर पर कहा गया है कि यह किसी भी सदस्य देश के राजनीतिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। न्यायाधिकरण में याचियों ने यह भी बात रखी कि भारत सरकार के वरिष्ठ पदों पर विश्व बैंक के पूर्व अधिकारियों की उपस्थिति अस्वीकार्य है, क्योंकि इसमें स्वार्थ शामिल हैं।
लोकतंत्र को खतरा
केरल स्टेट प्लानिंग बोर्ड के वाइस चेयरमैन प्रो. प्रभात पटनायक ने अपना पक्ष रखते हुए जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनीवल मिशन (जेएनयूआरएम) का उदाहरण दिया, क्योंकि यह विश्व बैंक की ही एक योजना है। उन्होंने कहा कि केरल की जेएनयूआरएम योजना में राज्य सरकार पर दबाव डाला जा रहा था कि वह स्टाम्प डयूटी कम करने की शर्त स्वीकार करे। स्टाम्प डयूटी पहले 15 से 17 फीसदी तक थी, जिसे अब 5 फीसदी करने के लिए दबाव डाला जा रहा था। एक हजार करोड़ का कर्ज लेने के लिए केरल को सात हजार करोड़ रुपए के सरकारी राजस्व का घाटा उठाना पड़ेगा।
बंगलौर स्थित 'कोलबरेटिव फार द एडवांसमेंट ऑव द स्टडीज इन अर्बनिज्म' (सीएएसयूएमएम) के विनय बैंदूर ने इस बात के प्रमाण प्रस्तुत किए कि कैसे राज्य सरकार और उसकी अर्थव्यवस्था को 'कर्नाटक इकोनामिक रिस्ट्रक्चरिंग लोन' (केईआरएल) में बदलकर उसका कॉरपोरेटीकरण कर दिया गया। यानी कि अब यह निजी क्षेत्रों और इंटरप्राइज के विकास के लिए आर्थिक साधन जुटाता है। 250 मिलियन डॉलर के कर्ज के इतने दूरगामी परिणाम हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण हो गया और स्वैछिक सेवानिवृत्ति का भुगतान लेने के लिए दो लाख स्थायी कर्मचारियों की कटौती करने के लिए दबाव डाला गया। इसके अलावा इस सबका प्रभाव किसानों की आत्महत्याओं के रूप में उभरा। ज्यादातर किसानों ने आत्महत्या इसलिए की कि वे बिजली का बिल नहीं चुका सकते थे, क्योंकि बिजली के रेट अचानक बढ़ा दिए गए थे।' खेती पर सब्सिडी घटा देने से लागतों में भी वृध्दि हो गई थी'।
जूरी के सदस्य और प्रसिध्द वैज्ञानिक मेहर इंजीनियर ने कहा कि उन्होंने इस सारे मुकदमें में यह पाया कि विश्व बैंक ने भारत पर अपनी बेकार तकनीकों को कैसे थोपा है। एक गहन शोध के बाद जो सबूत यहां रखे गए उनके मद्देनजर पर्यावरण क्षेत्र में विश्व बैंक की कल्पना करना भी कठिन है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि बैंक अमीरों का, शहरों का समर्थक और पर्यावरण विरोधी है।
स्वतंत्र जन न्यायाधिकरण का आयोजन साठ से भी ज्यादा राष्ट्रीय और स्थानीय संगठनों ने मिलकर किया। इनमें मुख्य रूप से नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट (एनएपीएम), इंडियन सोशल एक्शन फोरम (इंसाफ), ह्यूमन राइट्स ला नेटवर्क, जेएनयू छात्रसंघ और टीचर एसोसिएशन, विभिन्न एक्टिविस और अकादमियों के सदस्य, नीति विश्लेषक और योजनाओं से प्रभावित समुदायों के लोग शामिल थे। जिन्होंने 21 से 24 सितम्बर तक 26 से भी ज्यादा क्षेत्रों में विश्व बैंक के खिलाफ साक्ष्य प्रस्तुत किए। जूरी सदस्यों में इतिहास विद् रोमिला थापर, लेखिका अरुंधति राय, सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश पीवी सावंत, पूर्व वित्त सचिव एसपी शुक्ला, पूर्व जल सचिव रामास्वामी अय्यर, वैज्ञानिक मेहर इंजीनियर, अर्थशास्त्री अमित भादुड़ी, थाई आध्यात्मिक नेता सुलक्ष शिवरक्षा और मैक्सिको के अर्थशास्त्री एलियंद्रो नडाल शामिल थे।
विश्व बैंक और भारत सरकार कार्यवाही से नदारद
आरोपों के जवाब में विश्व बैंक ने इंडिया होम पेज पर फ-। दस्तावेज भेजा है। इस दस्तावेज में बैंक ने जो दावा किया है वह चौंकाने वाला है। ' विश्व बैंक ने निश्चित रूप से भारत में जल आपूर्ति सेवाओं के निजीकरण्ा की कभी भी सिफारिश नहीं की।' न्यायाधिकरण से यह अपेक्षा की गई है कि वह बैंक को एक विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करेगा। भारत सरकार विश्व बैंक के संदर्भ में अपना एक प्रतिनिधि भी भेजने में असफल रही। हालांकि सभी मंत्रालयों (जो विश्व बैंक से पैसा उधार लेते हैं) के बहुत से सरकारी अधिकारियों को दो सप्ताह पहले ही ई-मेल और फैक्स भेज दिए गए थे।
बिजली के निजीकरण के लिए दबाव
1990 के दशक में विश्व बैंक से लिए हुए कर्जे का बीस से तीस फीसदी भारत में ऊर्जा क्षेत्र पर लगाया गया। ऊर्जा क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए विश्व बैंक से कर्ज लेने वालों में उड़ीसा पहला राज्य था। पूणे स्थित प्रयास एनर्जी ग्रुप के श्रीकुमार एन ने तर्क रखा कि विश्व बैंक की सलाह के अनुसार चलने के कारण उड़ीसा ने स्थानीय विशेषज्ञों को नजरअंदाज कर दिया और विदेशी सलाहकारों पर 306 करोड़ रुपए खर्च किए। इन सलाहकार एजेंसियों ने ही पानी के वितरण का निजीकरण करने की सिफारिश की थी और अमेरिकन फर्म 'एईएस' ने केंद्रीय क्षेत्र में पानी के वितरण का काम अपने हाथ में लिया था और 2001 में राज्य छोड़ दिया।
बैंक का उपनिवेशवाद
चेन्नई स्थित कॉरपोरेट एकाउंटबिलिटी डेस्क से नित्यानंद जया रामन ने जूरी के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि 'बैंक पैसे और बेकार तकनीकी का लालच देकर उपनिवेशवाद को बढ़ावा दे रहा है।' उन्होंने कई ऐसे मामलों के साक्ष्य प्रस्तुत किए जहां बैंक ने 88 से भी ज्यादा 'कॉमन एफलूएंट ट्रीटमेंट प्लांट' लगाने पर जोर दिया, जिनमें से 'सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड' द्वारा नब्बे फीसदी से भी ज्यादा ऐसे प्लांट पाए गए जो पर्यावरणीय मानकों पर खरे नहीं उतरते थे।
यह शुरुआत है
इंसाफ के जनरल सेक्रेटरी विल्फ्रेड डि' कॉस्टा ने कहा कि न्यायाधिकरण काफी उपयोगी साबित हुआ है, क्योंकि इसने सामाजिक आंदोलनों, संगठनों, शोधकर्ताओं, अकादमियों के सदस्यों और देश के विभिन्न भागों में जुटे हुए संघर्ष के संगठनों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। हमारा अगला कदम होगा कि हम इस मंच का उपयोग नव उदारवाद के खिलाफ राजनीतिक संघर्ष पर आधारित एक बड़ी लड़ाई के लिए करें और एक ऐसे भारत के निर्माण के लिए काम करें जहां विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसी संस्थाएं न हों।
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