कारें दौड़ती रहनी चाहिए भले ही इन्सान भूखा मर जाय! इन तीन खबरों पर जरा ध्यान दें-


पहली खबर : पेरिस शहर में आवागमन के लिए 10,000 साइकिलों का बेड़ा तैयार


सबसे ज्यादा पर्यटकों (सालाना 1.5 करोड़) वाले शहर पेरिस को प्रदूषण से बचाने और पर्यटकों तथा नागरिकों को आसान और सस्ती यातायात सुविधा देने के लिए नगर प्रशासन ने दस हजार साइकिल नगर के अलग-अलग ठिकानों पर लगा दी है। थोड़ा सा पैसा देकर यात्री कहीं से भी साइकिल ले सकते हैं और कहीं भी छोड़ सकते हैं। कुछ समय बाद साइकिलों के संख्या दुगुनी कर दी जायेगी।


दूसरी खबर : कोलम्बिया में बायो-ईंधन क्रान्ति के पीछे जमीन से किसानों को खदेड़ना


कोलम्बिया (लातिनी अमरीका) में पाम तेल के प्लांटेशन करने के लिए हथियारबन्द समूह किसानों को उनकी जमीन से बाहर खदेड़ रहे हैं। पामतेल को ऊर्जा का पर्यावरण-मित्र स्रोत माना जाता है। इस 'हरे' ईधन की उफनती मांग ने दक्षिणपंथी पैरामिलिटरी समूहों को जबरदस्ती जमीन पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया है। मौत और खौफ के डर से हजारों परिवार अपना घर-द्वार और खेत छोड़ कर भाग गये हैं। कई कम्पनियाँ आपस में सहयोग करके झूठे दस्तावेज बना रही है और जमीन पर मालकियत का दावा ठोंक रही हैं।ये सारी बातें बतायी हैं पाम तेल उत्पादकों के राष्ट्रीय महासंघ-फेडपाल्मा के महामंत्री आन्द्रेआ कास्त्रो ने।


तीसरी खबर : बायोईंधन बनाने के लिए भारत में जैट्रोफा की खेती शुरू


ब्रिटेन आधारित बायो-डीजल की वैश्विक उत्पादक कम्पनी-डीआई आयॅल्स ब्रिटिश पैट्रोलियम (बीपी) की भारतीय शाखा के साथ एक वैश्विक संयुक्त उद्यम लगाने की योजना बना रही है। यह संयुक्त उद्यम जैविक ईंधन (बायो फ्यूअल) बनाने पर जोर दिये जाने को ध्यान में रखकर जैट्रोफा पैदा करने का केन्द्र भारत बनेगा।


50-50 के यह संयुक्त उद्यम भारत में अगले चार सालों में 10 लाख हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा के पौधे लगायेगा। अगले 5 साल में इस परियोजना में 8 करोड़ पौंड की लागत लगेगी, जिसमें से बीपी 3 करोड़ 17 लाख 50 हजार पौंड की पूंजी डालेगा। डीआई-ऑयल्स इसमें शेड शेयर लगायेगा। बायो-डीजल का उत्पादन 2008 में शुरू हो जायेगा। डीआई- ऑइल्स की भारतीय शाखा के प्रमुख अधिकारी सिमरन वास ने बताया कि कम्पनी ने तामिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश और पूर्वोत्तार में 40,000 हैक्टेयर जमीन पर जैट्रोफा के पौधे लगा दिये हैं।


बात सिर्फ जैट्रोफा की ही नहीं है, गेहूँ, सरसों, मक्का और गन्ने से भी जैविक ईंधन-बायोडीजल तथा इथनोल बड़े पैमाने पर बनाया जा रहा है। पश्चिम के देश पेट्रोल की सीमित मात्रा और उससे पैदा हो रही ग्लोबल वार्मिंग से घबड़ा रहे हैं और पेट्रोल के बदले खाद्यान्नों और पौधोंसे कारे चलाने के ईंधन ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पैदा करने में जुट गये हैं। उदाहरण के तौर पर, इस साल जनवरी में अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि वे चाहते हैं कि अमरीका में वाहनों द्वारा इस्तेमाल होने वाले कुल ईंधन का 15 फीसदी अनाज और पौधों से मिले। आगामी 18 महिनों में अमरीका में जैवईंधन का उत्पादन दुगुना हो जाना चाहिए जिससे कि देश में खपने वाला पैट्रोल 7 फीसदी कम हो जाय। यूरोपीय संघ ने 2010 तक पैट्रोल खपत का 10 फीसदी जैवईंधन से पूरा करने का लक्ष्य बनाया है।


सुनने में अच्छा लगता है कि दुनिया में जैवईंधन का इस्तैमाल बढ़ने से हवा को प्रदूषित करने वाली कार्बनडाइआक्साइड गैस कम होती जायेगी। पर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी दुनिया के छ: अरब लोगों को। दुनिया में 3 अरब से ज्यादा लोग भूख और प्यास से उम्र पूरी होने से पहले ही मर जाते हैं। जब ज्यादा से ज्यादा अन्न कारें चलाने के लिए जैवईंधन तैयार करने में खपेगा तो भोजन के लिए अन्न कम मुहैय्या होगा, जैट्रोफा, गन्ना, मक्का आदि ज्यादा से ज्यादा बोने के लिए जंगल कटेंगे और गन्ने, जैट्रोफा की खेती में गुलामों से बदतर जिन्दगी जीने वाले मजदूरों को काम करना होगा। एक बोतल शुध्द इथनौल तैयार करने के लिए 200 किलो मक्का चाहिए जो एक इन्सान को साल भर जिन्दा रखने के लिए पर्याप्त केलौरी देगी।


जैवईंधन के लिए अन्न की बढ़ती खपत की वजह से खाद्यान्नों के दाम बढ़ रहे हैं, नतीजन गरीब लोगों के लिए महँगा अन्न मौत का फरमान लायेगा। इंटरनेशनल फूड पोलिसी इंस्टीस्यूट (अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति संस्थान) के अनुसार पैट्रोल के दाम बढ़ने से जैवईंधन का उत्पादन बढ़ेगा और दुनिया के बाजारों में मक्के का दाम 2010 तक 20 प्रतिशत और 2020 तक 41 प्रतिशत बढ़ जायेगा। गैहँ का दाम 2010 तक 11 प्रतिशत और 2020 तक 30 प्रतिशत, सोया और सरसों का दाम 2010 तक 26 प्रतिशत और 2020 तक 76 प्रतिशत बढ़ेगा। अफ्रीका, एशिया और लातिनी अमरीका के गरीब क्षेत्रों में मानियोक की कीमतें इसी अवधि में 33 प्रतिशत और 135 प्रतिशत बढ़ जायेंगी।


गन्ने से इथनौल बनाने में ब्राजील दुनिया में सबसे आगे हैं। लेकिन वहाँ इस काम में लगे लोगों के हालात गुलामों से भी बदतर हैं।


दरअसल जैव ईंधन के धन्धे में बड़ी-बड़ी ओटोमोबाइल कंपनियाँ घुस आयी हैं। उनकी कारों का उत्पादन बढ़ता रहे, उन पर कोई फेमिली प्लानिंग न लगे, वह तो इन्सान के लिए ही है। इन्सान की आबादी कम करने का नायाब तरीका निकाल लिया, उसका भोजन अब कारें खायेंगी, तो इन्सान को मरने के सिवाय क्या रास्ता बचेगा।


पेरिस ने इस महाविनाश को रोकने का रास्ता दिखाया है- कारों को मारो, साइकिल चलाओ, बैलगाड़ी, एक्का, ताँगा, लम्बी दूरी के लिए रेलगाड़ी...... । -बलाश

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