चौंकिए नहीं, यह कोई शेखचिल्ली की बातें नहीं हैं। यह आज की नयी टेक्नोलोजी का करिश्मा है। अभी कुछ दिन पहले ही तो एक टीवी चैनल पर एक वैज्ञानिक साइंस-टेक्नोलोजी की करामात दिखा रहा था। उसने दिखाया, खेत में बोये कद्दू की एक बतिया (छोटा नया लगा बच्चा कद्दू) में सुई से इंजेक्शन लगाया और अगले दिन सबेरे वह बतिया एक खूब बड़ा बीस किलो का कद्दू बन गया। हम बहुत दिनों से कई शहरों-कस्बों में सब्जी की दुकानों पर सुन्दर, हरी एक साइज की सीधी लौकियाँ देखते थे। ऐसा लगता था कि किसी साँचे में ढालकर उन्हें बनाया गया हो। हमारे एक वैज्ञानिक मित्र ने हमारी नादानी दूर की। उन्होंने बताया अब ऐसे इंजेक्शन बन गये हैं कि शाम को लौकी के खेत में एक अंगुल बराबर लौकी की बतियों में इंजेक्शन लगा दिये जाते हैं और सबेरे एक साइज की सीधी सुन्दर लौकियां आप तोड़ लीजिए।
कमाल है जी! तब हमें एक पुरानी बात याद आ गयी। पिछली सदी में हमारे देश में एक बहुत बड़े वैज्ञानिक हुए हैं जगदीश चन्द्र बसु! उन्होंने यह वैज्ञानिक खोज की कि जो जीवन इन्सान और पशुओं में होता है वही जीवन पेड़-पौधों में भी होता है। पहले तो लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया। अंग्रेजों की हुकूमत का जमाना था। अंग्रेजों ने कहा, हमें करके दिखाओ। जगदीश चन्द्र बसु ने एक पौधा लिया। कहा जहर लाओ मैं इसकी जड़ों में उसे डालूँगा, अगर पौधा मर जाता है तब तो मानोगे कि इसमें भी इन्सान जैसी जान होती है। बसु को बदनाम करने के लिए अंग्रेजों ने जहर पाउडर की जगह चीनी के पाउडर की एक पुड़िया उन्हें पकड़ा दी। बस, उन्होंने विश्वास करके उस पुड़िया से कुछ पाउडर पौधे की जड़ों में डाल दिया। मगर पौधे की एक भी पत्ती कुम्हलाई नहीं। बसु की हँसी उड़ाकर अंग्रेजों ने तालियाँ पीट दीं। बसु ने तपाक से कहा, अगर इस जहर से यह पौधा नहीं मरा तो मैं भी नहीं मरूंगा और यह कहते हुए सबको हैरानी में डालते हुए उन्होंने पुड़िया में बचा हुआ पाउडर अपने मुँह में डाल लिया। अंग्रेजों की पोल खुल गयी, जगदीश चन्द्र बसु की सच्चाई साबित हुई और वे अमर हो गये।
अब सोचिए, जब पौधों और प्राणियों में एक सी जान है तो कद्दू और लौकी तथा आदमी में भी एक सी जान है। जब कद्दू और लौकी के नवजात बच्चे में इंजेक्शन लगाकर एक रात में नौजवान कद्दू और लौकी बनाया जा सकता है तो क्या आज पैदा हुए इन्सान के बच्चे में शाम को इंजेक्शन लगाकर रात भर में मैराथन दौड़ में भाग लेने वाला नौजवान नहीं बनाया जा सकता?
जरूर बनाया जा सकता है। जिस साइंस और टेक्नोलोजी से ऐसा किया जा सकता है उसे बायो-टेक्नोलोजी कहते हैं। बहुत रिसर्च हो रही है इस विषय में, अरबों-खरबों डॉलर इस रिसर्च पर खर्च किये जा रहे हैं। गजब के नतीजे निकाल डाले हैं। जैसे, गाय को इंजेक्शन दे दो, तुरन्त गाय के थनों में दूध उतर आता है, अब बछड़ा-बछिया को दूधा दुहने से पहले लगाने की जरूरत खत्म! और तो और, अब दूधा दुहने के लिए गाय-भैंस की भी जरूरत नहीं। दिल्ली के आसपास बुलन्दशहर, मथुरा जैसे जिलों में यूरिया पाउडर वगैरह चीजों से हजारों लीटर दूध रोज बन रहा है और लोग खुशी से पी रहे हैं। फलों का पाल लगाने की अब जहमत उठाने की जरूरत नहीं। एक केमिकल में केले डुबोकर निकाल लो, सबेरे एक से बढ़िया पीले केले मिल जायेंगे। यही हाल पपीते, आम का है।
बायोटेक्नोलोजी का एक नया रूप है- जेनेटिक इंजीनियरी। इन्सान, जानवरों, पौधों के जीवरूप की इकाई 'जीन' हैं। यह इन्जीनियरी इन जीनों में फेर-बदल कर देती है। पौधों के जीन जानवरों में, जानवरों के जीन पौधों में, इन्सान के जीन मछलियों में, और नयी-नयी प्रजातियाँ बन सकती हैं। ऐसे बीज बन रहे हैं जो एक बार बोने पर उगेंगे लेकिन उनकी फसल से जो बीज मिलेंगे, वे फिर से बोने पर नहीं उगेंगे। अब तो एक भेड़ की हुबहू नकल भेड़ बना रहे हैं। इसे 'क्लोनिंग' कहते हैं। बढ़िया बात है, अगर क्लोनिंग पहले आ जाती तो गाँधी जी की क्लोनिंग कर लेते। पर अगर उससे भी पहले आ जाती तो हिटलर की भी कर लेते। उससे भी पहले रावण, कंस की भी कर लेते।
लगता है, इन्सान खुद 'भगवान' या प्रकृति का दर्जा लेने जा रहा है, पर दुनिया का कल्याण करने नहीं, इसका महाविनाश करने। कारण यह है कि ये नयी टेक्नोलोजी मुनाफाखोर-आदमखोर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मुट्ठी में है। अत: इन्सान 'भगवान' नहीं, राक्षस बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भोपाल में इस राक्षस का रूप दुनिया ने देखा।(पीएनएन)
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