हच ने खेला धोखा-धड़ी का खेल: संजय तिवारी

बहुप्रचारित हच-वोदाफोन की खरीदारी का मामला शक के घेरे में है। हालांकि फारेन इन्वेस्टमेन्ट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) और वित्त मंत्रालय ने इस सौदे को मंजूरी दे दी है। विवाद इस बात पर था कि 15.03 प्रतिशत शेयर जो तीन भारतीय लोगों के नाम पर हैं उसका पैसा सीधो हच को क्यों दिया जा रहा है। वोदाफोन द्वारा मूल्यनिर्धारण के लिहाज से यह रकम 12,343 करोड़ रूपये है। हच का तर्क है कि उसने इन तीनों कंपनियों को कर्ज मुहैया कराया था जिसे अब वह वापस ले रहा है। अगर यह बात है तो हच वह पैसा सीधे वोदाफोन से क्यों ले रहा है? होना यह चाहिए कि पैसा पहले इन भारतीय कंपनियों के खातों में आना चाहिए उसके बाद वह पैसा ये तीनों निवेशक हच को वापस कर सकते हैं। ऐसा नहीं हो रहा है। इस तरह के लेन-देन सीधे तौर पर फेरा और बेनामी कानूनों के दायरे में आते हैं। असल में हच-एस्सार ने देश के कानून के साथ बड़ी धोखा-धड़ी की है। उसने टेलीफोन क्षेत्रा में विदेशी निवेश की 74 प्रतिशत सीमा से अधिक 89 प्रतिशत विदेशी निवेश किया और देश की दो सरकारी एजंसियों फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड और डिपार्टमेन्ट ऑफ टेलिकम्युनिकेशन से झूठ बोला कि पूरे उद्यम में 68.98 प्रतिशत विदेशी हिस्सेदारी है।

सबसे पहले तो इसे जान लेना चाहिए कि हच के इस झूठ से देश को कैसे 12,्र343 करोड़ रूपये का नुकसान होगा। 22 फरवरी 2007 को हच ने स्टॉक एक्सचेंज में जानकारी दी कि हच-एस्सार के संयुक्त टेलीफोन उद्यम की वोदाफोन ने 18,800 मिलियन डॉलर (88,360) करोड़ रूपये कीमत लगाई है। अगर हच-एस्सार के 1,327 मिलियन डॉलर के कर्ज को कम कर दिया जाए तो कंपनी का मूल्य हुआ 17,473 मिलियन डॉलर। इस लिहाज से हच को 11,706 मिलियन डॉलर मिलना चाहिए क्योंकि वह कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 66.98 प्रतिशत बता रहा है। जिस 66.98 प्रतिशत हिस्से पर वह अपना दावा कर रही है उसमें 15.03 प्रतिशत हिस्सा बेनामी है। इसे तीन भारतीय कंपनियों के माधयम से निवेश किया गया है। अगर ये तीन कंपनियां सचमुच भारतीय हैं तो हच को 42,663 करोड़ और इन तीन भारतीय कंपनियों को 12343 करोड़ रूपया मिलना चाहिए।

ऐसा नहीं हो रहा है। हच को 68.98 प्रतिशत हिस्से के लिए 55,006 करोड़ रूपये मिल रहे हैं। तकनीकि रूप से देखें तो बिक्री के बाद यह 15.03 प्रतिशत की हिस्सेदारी भारतीय कंपनियों के हाथ में रहने के बाद भी उन पर मालिकाना हक हच से वोदाफोन को ट्रांसफर हो जाएगा। ये तीन भारतीय कंपनियां हैं - असीम घोस की गोल्डस्पॉट मर्केन्टाईल कंपनी प्राईवेट लिमिटेड, अनलजीत सिंह की स्कॉर्पियो बेवरेज प्राईवेट लिमिटेड और तीसरी कंपनी आईडीएफसी द्वारा स्थापित एसएसएमएमएस। हच में हिस्सेदारी खरीदने के लिए हचिक्सन टेलीकम्युनिकेशन इंटरनेशनल लिमिटेड ने इन कंपनियों को लोन मुहैया करवाये। असीम घोस को 124.5 मिलियन डॉलर का लोन मुहैया करवाया जिसका उपयोग उन्होंने कोटक ग्रुप का 4.6 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने में की। इसी तरह अनलजीत सिंह को हचिक्सन टेलिकम्युनिकेशन इंटरनेशनल ने 200 मिलियन डॉलर कर्ज के तौर पर दिये जिसका उपयोग उन्होंने कोटक ग्रुप की 7.58 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने में की। 30 जून 2006 को 5.11 प्रतिशत हिस्सेदारी हच ने हिंदुजा से खरीद ली। इस 5.11 प्रतिशत हिस्सेदारी को खरीदने में भी 2.77 प्रतिशत हिस्सेदारी एसएसएमएमएस के नाम से खरीदा इस तरह बेनामी रूप से हच ने यह हिस्सेदारी भी अपने पास रखी। इस तरह कुल 15.03 प्रतिशत शेयर ऐसे हैं जिनके मालिक डमी भारतीय हैं लेकिन असली स्वामित्व हच की मूल कंपनी के पास है।

व्यवसाय में उधार लेना व्यवसाय का एक हिस्सा होता है। उद्यमी बैंको के जरिए लोन लेते और अदा करते हैं। जब तक लोन अदा न कर दिया जाए लोन लेने वाला उस लोन पर ब्याज देता है। लेकिन क्या बैंक का यह अधिकार है कि वह लोन की भरपाई करने के लिए उसका सौदा किसी और से कर ले? भारतीय कानून में कुर्की और जब्ती की कार्रवाई का प्रावधान जरूर है लेकिन यह तब होता है जब लोन लेने वाला व्यक्ति फरार हो जाए या फिर रूपया लौटाने में अपनी असमर्थता दिखा दे। हच के मामले में ऐसी कोई भी बात नहीं है। असीम घोस और अनलजीत सिंह उसके सबसे विश्वासपात्रा लोगों में हैं। उतने ही विश्वस्त जितना वह कुत्ता जो हच के विज्ञापनों में दिखता है। हच इंटरनेशनल ने इन दोनों लोगों के नाम पर जो निवेश किया और अब जिस तरह से उसे वापस ले रहा है वह बेनामी लेन-देन के दायरे में आता है। जिसके लिए कंपनी को आर्थिक अपराध का दोषी माना जाता है।

अगर यह सौदा भारत सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो यह धोखा-धड़ी को मंजूरी देने जैसा कदम होगा। इस पूरे मसले पर हस्तक्षेप करने के लिए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका विचारधीन है। जनहित याचिका टेलीफोन वॉचडॉग नामक एक संस्था ने किया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि हच ने भारतीय कानूनों का उल्लंघन किया है। उसने लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन किया है। इसके लिए वह फेमा और बेनामी संपत्ति रोक कानून के तहत दोषी है। वाचडॉग ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि हच ने इतने तरह के कानूनों का उल्लंघन किया है कि उसका लाइसेंस ही रद्द कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है इस बीच एफआईपीबी का फैसला आना है। देखना यह है कि इस धोखा-धड़ी को सरकारी मंजूरी मिलती है या फिर पूरे मामले की छानबीन जिससे सच्चाई पूरे देश के सामने आ सके।

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