संदर्भ- ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का सच : संभावनाएं अपार मगर समस्याओं का भी अंबार - भंवर मेघवंशी

रोजगार गारंटी कानून के क्रियान्वयन की स्थितियों का जायजा लेने के लिए राजस्थान के बांसवाडा जिले की बागीदौरा पंचायत समिति की 18 ग्राम पंचायतों का प्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कौंसिल की सदस्या श्रीमती अरुणा रॉय के नेतृत्व में सामाजिक अंकेक्षण किया गया, जिसमें पाया गया कि योजना तो अच्छी है, मगर अभी भी इसकी जमीनी सच्चाई काफी फरक है। हालांकि इस बार यह भी देखा गया कि रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 2006 में हुए कार्यों ने क्षेत्र के ग्रामीणों में खुशहाली की नई उम्मीद जगा दी है। बागीदौरा का ही उदाहरण लें तो यह ब्लॉक जिला मुख्यालय बांसवाड़ा से 30 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहां 41 ग्राम पंचायतें है, जिनमें 85 गांव है तथा यहां की आबादी 1,77,792 है, पूरा क्षेत्र आदिवासी बहुल है। यहां पर 40325 परिवारों ने अपने जॉब कार्ड बनवाए जिनमें से 30 हजार परिवारों ने काम मांगा है। रोजगार गारंटी योजना के कार्यक्रम अधिकारी छोटूराम गुर्जर बताते है कि -''हमने हर काम मांगने वाले को कार्य उपलब्ध करवाया है। क्षेत्र में जाने पर जल संरक्षण के काम खूब दिखाई पड़ते है, नदी, नालों पर बनाए गए कई एनीकट अभी तक पानी से भरे हुए है। बागीदौरा क्षेत्र में वर्ष 2006-07 में स्वीकृत हुए कुल 878 कामों में से 532 काम तो जल संरक्षण के ही है जिनमें 135 एनीकट, 284 चैकडेम तथा 112 तालाब बनाए गए है।

रोजगार गारंटी योजना लागू होने से इस क्षेत्र में सर्वाधिक फायदा उन श्रमिकों को हुआ जो हर वर्ष गुजरात, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे राज्यों में काम के लिए ठेकेदारों के साथ जाते थे तथा अक्सर शोषण का शिकार होकर लौटते थे, कई बार तो उनकी पूरी मजदूरी ही हड़प ली जाती थी, मगर अब अपने ही गांव में 100 दिनों के रोजगार की उपलब्धता ने लंबी दूरी के पलायन पर अंकुश लगाया है, प्रशासन का दावा है कि अकेले बागीदौरा क्षेत्र से 15 हजार परिवारों का पलायन रूका है। पलायन रूकने के साथ-साथ जल संरक्षण कार्यों के कारण इस वर्ष 300 हेक्टेयर रबी की फसल का अतिरिक्त उत्पादन भी हुआ है।


उम्मेदगढ़ी पंचायत में बने एनीकट बाकिया नाला से 50 आदमियों को लगभग 75 दिनों तक रोजगार तो मिला ही, मिट्टी का कटाव भी रूका तथा सिंचाई की सुविधा का पक्का ढांचा भी बन गया है, भू-जल स्तर बढ़ा है। यहां के निवासी धनेश्वर डामोर स्थानीय भाषा में कहते है- फायदा थई गयो। और अधिक पूछने पर कहते है- एनीकट से पशुओं को पीने का पानी मिला, खेतों की पिलाई हो रही है, उपजाऊ खेतों में तीन फसल की शुरूआत हो गई है। इन एनीकटों में ग्रामीणों को नहाते हुए भी देखा जा सकता है। लगभग यही हाल संपर्क सड़कों के निर्माण का है, इस पहाड़ी क्षेत्र में बरसात के दिनों में महीनों तक एक गांव-दूसरे गांव से कटा रहता था, मगर रोजगार गारंटी योजना ने संपर्क सड़कों द्वारा 85 गांवों की करीब 30 हजार आबादी को मुख्य सड़क से जोड़ दिया। किसानों को अपने खेतों पर जाने के लिए सुगम रास्ते उपलब्ध हो रहे है। कुल मिलाकर यह कह सकते है कि क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर दोनों ही बदलती हुई नजर आ रही है। मगर इन सकारात्मक संकेतों के इतर दूसरा पहलू, विकास कार्यों में पारदर्शिता व जवाबदेही का है, वह काफी निराश करता है।


तस्वीर का दूसरा पहलू
रोजगार और सूचना का अधिकार अभियान द्वारा इस बार जिन 18 ग्राम पंचायतों का सामाजिक अंकेक्षण किया गया, इन पंचायतों में से 3 काम चुने गए, 2 कच्चे काम तथा 1 पक्का काम, पंचायतें रेंडम सेंपल के तरीके से ली गई, दरअसल केंद्र सरकार हर राज्य में एक जिले को 'रोजगार गारंटी में सामाजिक अंकेक्षण' के लिए आदर्श जिले के रूप में बनाने जा रही है, राज्य सरकार ने इसके लिए बांसवाड़ा जिले का चयन किया है। इसलिए बांसवाड़ा में इसकी शुरूआत की गई, बागीदौरा इसका प्रथम चरण था, लेकिन अंतत: पूरे जिले में सामाजिक अंकेक्षण तो होना ही है। जिला कलेक्टर विकास भाले तथा जिला प्रमुख महेंद्रजीत सिंह मालवीय जिलेभर का सामाजिक अंकेक्षण कराने के लिए काफी उत्साहित नजर आए, वहीं बागीदौरा के विधायक जीतमल खांट ने तो सामाजिक अंकेक्षण को सामाजिक क्रांति की संज्ञा दी तथा शीघ्रातिशीघ्र पूरे जिले का सोशल ऑडिट करने का अनुरोध रोजगार एवं सूचना का अधिकार अभियान से किया। उनके अनुरोध पर प्रसिध्द सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कौंसिल की सदस्य श्रीमती अरुणा रॉय ने कहा कि- जब बांसवाड़ा जिले के राजनेता, प्रशासन तथा आम जनता सभी इच्छुक है तो फिर सामाजिक अंकेक्षण कराने में क्या दिक्कत है? हम गलतियां ढूंढने नहीं आए हैं


यह सही है कि सरपंच लामबंद हो रहे है, सचिव कुलबुला रहे है, अधिकारी-कर्मचारी भी सामाजिक अंकेक्षण से ज्यादा खुश नजर नहीं आते है। मगर आम ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती है, बरसों से पंचायतों पर कुंडली मारे बैठे लोगों की सत्ताा डोल रही है, जनप्रतिनिधियों की ओर आम लोग अंगुली उठाने लगे है तथा सामाजिक अंकेक्षण हेतु गांव-गांव पदयात्रा के लिए गए दलों ने ऐसी सूक्ष्म जानकारियों तक अपनी पहुंच बनाई कि सरपंच-सचिवों व अन्य लोगों द्वारा की गई तमाम तैयारियां धराशायी हो गई है तथा कई गंभीर अनियमितताएं उभर कर पटल पर आ गई है फलत: 2 जून को हुई ग्रामसभाओं में पहुंचे जिला कलेक्टर ने तुरत-फुरत में बड़ौदिया और कजनी पंचायत के सचिवों को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया है।


4 जून को हुए 'रोजगार गारंटी पर एक जन संवाद' में मजदूर किसान शक्ति संगठन के कार्यकर्ता निखिल डे ने धरातल पर आ रही व्यवहारिक कठिनाईयों के बारे में बताया कि बागीदौरा की 18 ग्राम पंचायतों में सामाजिक अंकेक्षण में पाया गया कि काम के लिए आवेदन लेने की प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा है, परिवार की परिभाषा को लेकर भ्रम की स्थिति है तथा न्यारी नपती-न्यारी रेट की व्यवस्था नहीं बैठ रही है। भुगतान कहीं घर पर तो कहीं रास्ते चलते भी हो रहा है जबकि वह सार्वजनिक स्थल पर होना चाहिए।


बागीदौरा के सामाजिक अंकेक्षण में पाया गया कि रोक के बावजूद रोजगार गारंटी के कामों में जेसीबी मशीन का उपयोग हो रहा है, ठेके में काम दिए जा रहे है तथा सामग्री खरीद, परिवहन तथा सामग्री के बिल बनाते वक्त कर चोरी की जा रही है। कुल मिलाकर यह कहना समीचीन होगा कि रोजगार गारंटी के फायदे भी सामने दिख रहे है, मगर भ्रष्टाचार भी खूब है जो कि निश्चय ही चिंताजनक बात है। (पीएनएन)

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