नेपाल में गणतंत्र की राह में कांटे बो रहा है ए.डी.बी.

एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) किस प्रकार किसी देश की राजनीति को प्रभावित करता है इसका उदाहरण है नेपाल की यह घटना नेपाल की मेलाम्ची परियोजना महत्वपूर्ण परियोजना है। काठमांडो उपत्यका को पेयजल की आपूर्ति करने वाली यह परियोजना अत्यंत महत्तवपूर्ण है जो (एडीबी) से प्राप्त आर्थिक सहायता से चलती है। यह विभाग नेकपा (माओवादी) की केंद्रीय समिति की सदस्य हिसिला यामी के मंत्रालय के अधीन है। परियोजना का कांट्रैक्ट जून में समाप्त हो रहा था।
एडीबी ने इस परियोजना के लिए 55 करोड़ की राशि देने के साथ यह शर्त लगा दी कि नया कांट्रैक्ट उसके द्वारा नामजद ब्रिटिश कंपनी सेवर्न ट्रेंट को ही दिया जाए। हिसिला यामी ने देखा कि जिस कंपनी को ठेका देने की बात की जा रही है उसके खिलाफ कुछ देशों में धोखाधड़ी के मामले हैं और ऐसी कंपनी को इतना महत्तवपूर्ण ठेका देना राष्ट्रीय हित में नहीं है। मंत्री ने यह प्रस्ताव रखा कि 'पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप' के आधार पर एक नई कमेटी का गठन किया जाए और उसे यह ठेका दिया जाए। इस प्रस्ताव ने तूफान खड़ा कर दिया। कोइराला के वरिष्ठ सहयोगी और वित्तामंत्री रामशरण महत ने हिसिला यामी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी।
दूसरी तरफ एडीबी के सर्वोच्च आधिकारियों की लगातार बैठकें चलने लगीं और देशी-विदेशी स्रोतों से हिसिला पर दबाव पड़ने लगा कि यह ठेका इस बदनाम कंपनी को ही दिया जाए जिसका नाम एडीबी ने प्रस्तावित किया है और जिसके पक्ष में रामशरण महत खुल कर बोल रहे हैं। अंत में एडीबी ने कह दिया कि अगर सेवर्न ट्रेंट को ठेका नहीं दिया गया तो वह पैसे नहीं देगा, हिसिला इस धमकी के आगे झुकी नहीं।
उनका कहना था कि एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते हमारा यह अधिकार है कि हम राष्ट्र हित को देखते हुए अपने अनुसार उस पैसे का उपयोग करें। एक भ्रष्ट कंपनी के पक्ष में नेपाली कांग्रेस के लोगों के लामबंद होने से जनता में एक बहस की शुरुआत हुई जो अभी जारी है। वैसे, एडीबी अब पैसे देने को तैयार हो गया है।

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