भारतीय खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश - अर्जुन प्रसाद सिंह


दुनिया के विकसित देशों में खुदरा व्यापार (रिटेल ट्रेड) को उद्योग का दर्जा प्राप्त है और आज की तिथि में यह विश्व का सबसे बड़ा निजी उद्योग है। विश्व के पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों के खुदरा व्यापार पर तो बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का काफी हद तक कब्जा हो गया, अब उनकी निगाहें भारत, चीन जैसे एशियाई देशों के खुदरा बाजारों पर टिकी हुई हैं। सम्पूर्ण विश्व का खुदरा व्यापार करीब 315 लाख करोड़ रू. का है, जिसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 53 लाख करोड़ रू. की है।


हमारे देश का खुदरा व्यापार करीब 5 लाख करोड़ रू. का है। एक अनुमान के मुताबिक यह 2010 एवं 2015 में बढ़कर क्रमश: 7 लाख करोड़ रू. एवं 10 लाख करोड़ रू. के बराबर हो जाएगा। विगत 5 सालों से भारतीय खुदरा बाजार में औसतन 10 प्रतिशत की दर में वृध्दि हो रही है और यह वृध्दि दुनिया के सभी खुदरा बाजारों के औसतन विकास दर से अधिक है। आज बिक्री की मात्रा के हिसाब से हमारे देश के खुदरा बाजार का विश्व में पाचवां एवं एशिया में दूसरा (चीन के बाद) स्थान प्राप्त हो गया है। विश्व विख्यात मेनेजमेन्ट कॉन्सलटेन्सी फर्म ए.टी. केयर्नी के अनुसार 'ग्लोबल रिटेल डेवलपमेंट इन्डेक्स' एवं 'एफ.डी.आई. कॉन्फिडेन्स इन्डेक्स' में इसका स्थान क्रमश: पहला एवं तीसरा है। हमारे देश का खुदरा बाजार विश्व का सबसे सघन बाजार है।

खुदरा व्यापार/बाजार हमारे देश की अर्थव्यवस्था में काफी महत्वपूर्ण योगदान करता है। हमारे देश में करीब 1 करोड़ 30 लाख खुदरा दुकाने हैं, जो करीब 5 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र पर करीब 20 करोड़ लोग निर्भर हैं। इस तरह रोजगार व जीविका प्रदान करने के मामले में इस क्षेत्र का कृषि के बाद दूसरा स्थान प्राप्त है। हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन में खुदरा व्यापार का हिस्सा 10 प्रतिशत से अधिक है। इस व्यापार का करीब 97 प्रतिशत हिस्सा आज भी असंगठित है। सरकारी जन वितरण प्रणालियों, सरकारी सहायता प्राप्त खादी व अन्य सहकारी समितियों और टाटा ट्रेन्ट, आर.पी.जी. ग्रुप, पेन्टालून, शापर्स स्टॉप, प्लेनेट स्पोर्टस व डी.एल.एफ. जैसी कम्पनियों को कुल मिलाकर करीब 3 प्रतिशत खुदरा व्यापार को संगठित क्षेत्र में तब्दील करने में सफलता मिली है। आज भी 96 प्रतिशत खुदरा दुकानों का क्षेत्रफल 500 वर्ग फीट से कम है। हमारे देश के खुदरा व्यापार का थोक व्यापार से सीधा व जीवंत रिश्ता बना हुआ है और दोनों का अस्तित्व व विकास एक दूसरे पर निर्भरशील है।


चूंकि हमारे देश का खुदरा व्यापार काफी तेजी से विकसित हो रहा है, इसका विशाल हिस्सा असंगठित व बिखरा हुआ है, और इसमें अपेक्षाकृत कम पूंजी लगाकर अरबों की कमाई की जा सकती है, इसलिए इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने के लिए विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां काफी जोर लगा रही हैं। खासकर 1990-1991 के बाद जब देश में नई आर्थिक नीति लागू की गई और उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण का दौर शुरू हुआ, तो खुदरा क्षेत्र में कार्यरत वालमार्ट (अमेरिका), कैरीफोर (फ्रांस), टेस्को (ब्रिटेन) व मेट्रो (जर्मनी) जैसी विदेशी कम्पनियों को उम्मीद बंधी कि शीघ्र ही उन्हें भारत के 'सनराइज सेक्टर', यानी खुदरा बाजार मे प्रवेश का मौका मिल जाएगा। लेकिन जब इसमें देर हुई तो उन्होंने अपने-अपने देश की साम्राज्यवादी सरकारों द्वारा भारत सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाया। उपर से विश्व बैंक, आई.एम.एफ. एवं विश्व व्यापार संगठन जैसी साम्राज्यवादी संस्थाओं ने भी भारतीय खुदरा बाजार को पूरी तरह विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए खोलने का दिशा-निर्देश दिया। खास तौर पर दोहा चक्र की वार्ता के दौरान विश्व व्यापार संगठन ने साफ तौर पर निर्देश दिया कि भारत सरकार खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा ले, अन्यथा उसे 'तटकरों व व्यापार पर आम सहमति' के तहत दी गई रियायतों से हाथ धोना पड़ेगा। इसके बाद भारत सरकार ने दसवीं योजना (2002-07) की मध्यावधि समीक्षा में खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की इजाजत देने की घोषणा की। फिर वालमार्ट, कैरीफोर, स्टार बाक्स, किंग फिशर व वेस्ट वाय जैसी कम्पनियों के प्रतिनिधियों व उच्चस्थ पदाधिकारियों का भारत दौरा शुरू हो गया। इन प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई अन्य मंत्रियों व वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलकातें कीं। वालमार्ट इन्टरनेशनल के प्रमुख पदाधिकारी जॉन मेंजर ने मनमोहन सिंह से मिलकर प्रेस को बयान दिया कि भारत सरकार जल्द से जल्द खुदरा बाजार को विदेशी निवेश के लिए खोलने को तैयार है। उसने यह भी कहा कि जैसे ही भारत के खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की अनुमति मिलेगी, वाल्मार्ट कम से कम 1 लाख करोड़ रू. का पूंजी निवेश करेगा और इसके लिए किसी भरोसेमंद भारतीय पार्टनर की मदद लेगा। इसी प्रकार अन्य विदेशी कम्पनियों ने भी भारी मात्रा में पूंजी निवेश की योजना बनाइ र्है।


सिंगंल ब्राण्ड में विदेशी निवेश


लेकिन भारतीय खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत देने की सरकार की योजना जैसे ही सार्वजनिक हुई, उस पर विभिन्न राजनीतिक दलों व जनक्षीय संगठनों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया में व्यक्त की गईं। यहां तक कि केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील सरकार को समर्थन देने वाले सी.पी.आई., सी.पी.एम. व कुछ अन्य दलों ने भी इसका विरोध किया। इसके बावजूद मनमोहन सरकार ने 10.2.2006 को एक 'प्रेस नोट' जारी कर निम्नलिखित शर्तों के साथ 'सिंगल ब्राण्ड' उत्पादों के खुदरा व्यापार में 51 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत दे दी :

क) बिक्रय उत्पाद केवल सिंगल ब्राण्ड होना चाहिए,
ख) उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर उसी ब्राण्ड के तहत बेचा जाना चाहिए,
ग) सिंगल ब्राण्ड उत्पाद रिटेलिंग में केवल वे ही उत्पाद शामिल होंगे, जिन्हें निर्माण के दौरान ही ब्राण्डेड किये जाते हैं।


ज्ञातव्य है कि थोक व्यापार (होलसेल ट्रेडिंग) एवं गोदामों में माल रखने के काम (वेअरहाउसिंग) में भी भारत सरकार 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे चुकी है। सिंगल ब्राण्ड उत्पादों के व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति देकर सरकार ने खुदरा व्यापार के उदारीकरण का रास्ता साफ कर दिया है। अब नोकिया, माक्र्स एण्ड स्पेन्सर, जिआर्डानो, नाईक, मेकडोनाल्ड, रीवॉक जैसी विदेशी कम्पनियों (जो सिंगल ब्राण्ड उत्पाद बेचती हैं) को फ्रेंचाईजी की आवश्यकता नहीं होगी। ये कम्पनियां अब हमारे देश में बिना किसी स्थानीय पार्टनर के अपना खुद का 'रिटेल चेन' स्थापित कर सकती हैं। लेकिन विदेशी कम्पनियां खुदरा व्यापार के इस आंशिक उदारीकरण्ा से संतुष्ट होने वाली नहीं है। उनका सीधा मकसद भारत के इस 'सनराईज सेक्टर' पर एकाधिकार कायम करना है। इसलिए वे खुदरा व्यापार को समग्र रूप से खोलने पर दबाव डाल रही हैं। वे कह रही हैं कि अगर भारत सरकार खुदरा बाजार को पूरी तरह विदेशी निवेशकों के लिए खोलेगी, तो विदेशी विनियोग के मामले में उसे अपेक्षित परिणाम प्राप्त होंगे। वे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपने-अपने देश की सरकारों एवं अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को कह रही हैं कि वे भारत सरकार पर अपना दबाव बढ़ायें। और अमेरिका व अन्य साम्राज्यवादी देशों एवं विश्व व्यापार संगठन व अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने इस बावत भारत सरकार पर अपना दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है।

इन सबों का असर अब दीखने भी लगा है। हाल ही में भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सहयोग से खुदरा व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश के मामले को लेकर दिल्ली में एक उच्चस्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। इसमें भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने यह राय जाहिर की है कि खुदरा बाजार को खोलने से देश में भारी मात्रा में विदेशी पूंजी आएगी, असंगठित व बिखरे खुदरा बाजार का कायापलट होगा, बेरोजगारों को काम मिलेगा ओर आम उपभोक्ताओं को सस्ता व उमदा सामान मिलेगा। उद्योगपतियों के संगठन 'फिक्की' ने भी कहा है कि वैश्वीकरण के दौर में अन्य क्षेत्रों की तरह खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जरूरी है। एसोचेम ने कहा है कि विदेशी निवेश से खुदरा बाजार संगठित होगा और उपभोक्ताओं के साथ-साथ उत्पादकों को भी काफी फायदा होगा। इण्डियन कॉउन्सिल फॉर रिसर्च ऑन इन्टरनेशनल इकॉनामिक रिलेशन्स (आई.सी.आर.आई.ई.आर.) ने भी खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की जोरदार वकालत की है। उसने सरकार को सलाह भी दी है कि वह खुदरा व्यापार को एक उद्योग का दर्जा दे, इस क्षेत्र के लिए साख की समुचित व्यवस्था करे एवं ठेका खेती, प्रत्यक्ष विक्रय व उन्मोचन को कानूनी दर्जा प्रदान करे। इसी तरह रीयल इस्टेट बिजनेस में लगे उद्योगपति भी काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि अगर खुदरा बाजार को पूरी तरह विदेशी निवेश के लिए खोल दिया जाएगा तो देश के विभिन्न शहरों में बड़े-बड़े शॉपिंग माल, डिपार्टमेंटल स्टोर, स्पेशियाल्टी सेंटर, सुपर मार्केट व हाइपर मार्केट बनेंगे और उनका बिजनेस काफी चमकेगा। एक ऐसे माहौल में कभी भी भारत सरकार खुदरा व्यापार (समग्र) में कम से कम 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत देने की घोषणा कर सकती है। आगे चलकर इस विदेशी निवेश की सीमा 74 प्रतिशत या 100 प्रतिशत तक भी बढ़ाई जा सकती है।

वालमार्ट का प्रवेश

इसी खुशनुमा माहौल को देखते हुए खुदरा व्यापार में लगी अमेरिका व विश्व की सबसे बड़ी कम्पनी वालमार्ट ने टेलीकॉम क्षेत्र की अग्रणी भारतीय कम्पनी भारती इन्टप्राइजेज के साथ विगत 27 नवम्बर 2006 को एक मेमो ऑफ अण्डरस्टेण्डिग' साइन किया है। दोनों का उद्देश्य भारतीय खुदरा बाजार में दमदार उपस्थिति बनाने के लिए एक संयुक्त उद्यम खड़ा करना है, जिसमें दोनों की 50 : 50 की भागीदारी होगी। समझौते के मुताबिक भारती ग्रुप 'फ्रंट इंड', यानी बिक्रय केन्द्रों की जिम्मवारी सम्हालेगा, जबकि वालमार्ट 'बैक इंड', यानी सप्लाई चेन की (जिस काम के लिए वह पहले से ही विश्वविख्यात है)। ज्ञातव्य है कि सुनील मित्ताल की भारती इन्टरप्राजेज भारत में टेलीकॉम क्षेत्र की नम्बन 1 कम्पनी है और वह 3 करोड़ मोबाइल धारकों को सेवा प्रदान करती है। और वालमार्ट विश्व की सबसे बड़ी रिटेल कम्पनी है, जिसका कारोबार आज 15 देशों में फैला हुआ है। इन दोनाें ने अपने संयुक्त उद्यम को भारत की नम्बर 1 रिटेल कम्पनी के रूप् में स्थापित करने का बीड़ा उठाया है। इस प्रकार पिछले दरवाजे (बैक डोर) से हमारे देश के खुदरा बाजार में वालमार्ट के प्रवेश का रास्ता साफ हो गया है। अब कैरीफोर, टेस्को, मेट्रो व अन्य विदेशी कम्पनियां भी इसी तरीके से भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश करने की कोशिश कर रही है। (क्योंकि जब तक भारत के सम्पूर्ण खुदरा बाजार में विदेशी निवेश की इजाजत नहीं दी जाती, तब तक अगले दरवाजे (फ्रंट डोर) से किसी विदेशी कम्पनी का प्रवेश संभव नहीं है।)

वालमार्ट एवं भारती ग्रुप ने अपने इस समझौते की घोषणा तब की जब दिल्ली के ताज पैलेस होटल में 'इण्डियन इकॉनमिक सम्मिट' चल रही थी, जिसमें देश भर के बड़े-बड़े उद्योगपति शामिल थे। इस घोषणा से रिटेल क्षेत्र में कार्यरत भारत की कम्पनियों के बीच एक हलचल मच गई। खासकर रिलायंस रिटेल के प्रधान मुकेश अम्बानी, जो भारत के खुदरा व्यापार में नम्बर 1 प्लेयर बनने का सपना संजोये हैं, ने इसे काफी गंभीरता से लिया। ध्यान देने की बात है कि मुकेश अम्बानी ने रिटेल व्यापार में 25000 करोड़ रू. निवेश करके देश के 1500 शहरों में 1000 हाइपर मार्केट, 3000 सुपर मार्केट एवं सैकड़ों स्पेशियालिटी स्टोर खोलने की घोषणा भी की है।

वामपंथी समेत कई संसदीय दलों व जनवादी क्रान्तिकारी संगठनों ने वालमार्ट के इस 'बैक डोर' प्रवेश का कड़े शब्दों में विरोध किया है, और कहा है कि इस 'रिटेल शार्क' के आगमन से छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो जाएगा और लाखों लोगों को रोजगार व जीविका से हाथ धोना पड़ेगा। जबकि वालमार्ट व भारती ग्रुप का दावा है कि उनका समझौता कानून-सम्मत है और वे केन्द्र सरकार के सभी नियमों व निर्देशों का पालन कर रहे हैं। प्रेस के प्रतिनिधियों ने जब वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कमलनाथ से इस सम्बंधा में सवाल किया तो उन्होंने घिसा-पिटा जवाब दिया कि 'हम देखेंगे कि इस समझौते में अनुझेय सीमाओं का पालन किया गया है या नहीं।' साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार 'लॉजिस्टिक' व 'सप्लाई चेन' में विदेशी निवेश को आकर्षित करने को उत्सुक है। इस तरह उन्होंने वालमार्ट के प्रवेश के उचित ठहराया।

वालमार्ट का फैलता साम्राज्य

सैम वाल्टन ने उपभोक्ताओं को 'सस्ता से सस्ता' एवं 'पंसदीदा' माल उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर 1962 में अमेरिका में वेरायटी स्टोर्स का एक छोटा चेन वालमार्ट के नाम से शुरू किया। इसके लिए उसने विभिन्न अमेरिकी शहरों में घूम-घूम कर उपभोक्ताओं के व्यवहार व पसंद का अध्ययन किया और उन्हें सस्ता माल उपलब्ध कराने के लिए उत्पादकों से सीधा रिश्ता कायम किया। शुरूआती दौर में उसे क्मार्ट व टारगेट जैसी रिटेल कम्पनियों से काफी प्रतियोगिता करनी पड़ी और साठ के दशक के अंत तक वह वालमार्ट का केवल 15 स्टोर ही खोल पाई। लेकिन 1970 में जब वालमार्ट कम्पनी न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज में दर्ज हुई, तो इसे आम लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर पूंजीगत सहयोग मिला। सत्तार के दशक के अंत तक अमेरिका के 11 राज्यों में वालमार्ट के कुल 276 स्टोर खुल गए और अस्सी के दशक में यह अमेरिका की सफलतम रिटेल कम्पनी बन गई। 1980 में इस कम्पनी की कुल बिक्री मात्र 1 बिलियन डॉलर थी, जो 1989 में बढ़कर 26 बिलियन डॉलर हो गई। अस्सी के दशक के अंत तक इस कम्पनी के कुल 1400 स्टोर खुल गए। इस बीच इसने 'सैम कल्ब' व 'वालमार्ट इन्टरनेशनल' के नाम से विदेशों में अपना कारोबार फैलाया और स्टोरों का विभागीकरण भी किया। आज की तिथि में वालमार्ट दुनिया के 15 देशों में करीब 6500 स्टोरों एंव होलसेल कल्बों का संचालन कर रही है, जहां इसके कुल 18 लाख 'एसोसियेट' कार्यरत हैं।



वालमार्ट 1990 तक केवल अमेरिका में ही अपना रिटेल व्यापार करती थी। इसने 1991 में मेक्सिको सिटी के पास जब अपना 'सैम क्लब' खोला, तब यह अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी बन गई। 1992 में सेम वाल्टन का निधन हो गया और इसके बाद इसका बेटा एस. राब्सन वाल्टन ने कम्पनी का विस्तार किया। आज आर्जेन्टीना ब्राजील, कनाडा, चीन, जापान व ब्रिटेन जैसे 14 देशों में इसकी कुल 2660 इकाईयां कार्यरत हैं जिनमें 5 लाख से अधिक 'एसोसियेट' लगे हुए हैं। यह कम्पनी विभिन्न देशों में फैले अपने स्टोरों में प्रति सप्ताह कुल 17 करोड़ 60 लाख उपभोक्ताओं को सेवायें प्रदान करती है, और उन्हें 'हर रोज कम कीमत पर' समान उपलब्ध कराने का वचन देती है। फारचून पत्रिका ने इसे विश्व के 'सर्वाधिक प्रशंसित रिटेल कम्पनी' की संझा से विभूषित किया है। इस रिटेल कम्पनी ने 31 जनवरी 2006 को समाप्त होने वाले वित्तीय साल में कुल 312.4 विलियन डॉलर की वैश्विक आय का उपार्जन किया है जो पिछले साल की तुलना में 9.5 प्रतिशत अधिक है।


वालमार्ट ने विगत करीब एक दशक से किसी नये विदेशी बाजार में प्रवेश नहीं किया है। इसने 1996 में चीन में करीब 3 दर्जन अपने रिटेल आउटलेट खोले और कुछ सहभागियों के साथ मिलकर 34 सुपर सेन्टर बनाये। अभी इसने भारत में अपना करोबार फैलाने की महती योजना बनाई है। इसके लिए भारी मात्रा में पूंजी जुटाने के लिए उसने जर्मनी व दक्षिणी कोरिया से अपना करोबार भी समेटा है। इसके अन्तर्राष्ट्रीय कारपोरेट मामलों के डायरेक्टर ने साफ शब्दों में कहा है कि चूंकि भारत का खुदरा बाजार काफी विकासशील है, इसलिए यहां केन्द्रित करना और संसाधनों को लगाना जरूरी है। यही कारण है कि वालमार्ट भारती ग्रुप के साथ मिलकर अपने सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए भारतीय रिटेल बाजार में भारी मात्रा में (एक अनुमान के मुताबिक 2 लाख करोड़ रू.) पूंजी लगा रही है। ज्ञातव्य है कि इसके पहले से भी वह भारतीय बाजारों से भारी मात्रा में सस्ते सामानों, जैसे एपौरेल, टेक्सटाइल्स व शूज आदि की सोर्सिंग (खरीदारी) करती रही है। इसके लिए उसने दिल्ली में एक सम्पर्क कार्यालय भी खोल रखा है। पिछले साल उसने भारत से कुल 1.6 बिलियन डॉलर की खरीदारी की है। भारत सरकार 2004 में ही वालमार्ट को 2 बिलियन डॉलर तक की खरीदारी भारतीय बाजार से करने की इजाजत दे चुकी है। इस प्रकार वालमार्ट का पिछले दरवाजे से भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश न केवल सुनियोजित है, बल्कि सरकारी योजना के भी अनुरूप है। वालमार्ट की मंशा है कि भारत के सम्पूर्ण खुदरा बाजार के विदेशी निवेश के लिए खुलते ही, उसके कम से कम 20 प्रतिशत हिस्से पर एकमुश्त कब्जा जमा लिया जाये। इसी तरह कनाडा के खुदरा बाजार पर इसने अपना कब्जा जमाया था। वहां इसने 1994 में अपने स्टोर खोले, 1998 में वहां की नं. 1 रिटेल कम्पनी का दर्जा प्राप्त कर लिया और 1999 आते-आते वहां के खुदरा बाजार के 38 प्रतिशत पर कब्जा जमा लिया। इस प्रक्रिया में उसने वहां की 'बुलको' जैसी रिटेल कम्पनियों को खरीद लिया और अन्य को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। चीन में भी इसने ऐसी ही कोशिशें की, लेकिन वहां इसे स्थानीय रिटेल कम्पनियों से कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। वालमार्ट विदेशी खुदरा बाजारों पर कब्जा जमाने के लिए न केवल 'गालाकाट प्रतियोगिता' का सहारा लेती है, बल्कि कई प्रकार के गैर कानूनी हथकंडे भी अपनाती है। यह ठेका मजदूरों से काम करवाने के लिए सब-कॉन्ट्रेक्टरों की बहाली करती है और इन मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी एवं कई अन्य प्रकार की सुविधाएं भी नहीं देती हैं। यह प्रवासी व बाल मजदूरों से भी अपने स्टोरों की सफाई करवाती है। करीब 3 साल पूर्व अमेरिकी पुलिस ने इसके 60 स्टोरों पर छापे मारकर गैर कानूनी ढंग से नियोजित वैसे 345 मजदूरों को पकड़ा था। वालमार्ट की ऐसी गैर कानूनी गतिविधियों की जांच के लिए वहां एक संघीय ग्रांड जूरी का भी गठन किया गया था, जिसने इस कम्पनी पर 11 करोड़ डॉलर का जुर्माना भी किया। वालमार्ट को अपनी लाज बचाने के लिए इस जुर्माने की पूरी रकम अदा करनी पड़ी थी। ज्ञातव्य है कि उस वक्त अमेरिका के किसी निजी कम्पनी द्वारा भरा गया सबसे यह बड़ा जुर्माना था। वालमार्ट की इन्हीं गैरकानूनी हरकतों के चलते आज भी न्यूयार्क व लॉस एंजेलिस जैसे महानगरों में उसका प्रवेश वर्जित है। काफी मशक्कत के बाद वह 2006 में शिकागो में अपना करोबार शुरू कर पाई है। अमेरिका के अन्य शहरों में अब यह नारा लोकप्रिय होता जा रहा है- 'वन, टू, थ्री, फोर- वी डॉन्ट वाण्ट योर वालमार्ट स्टोर'।

दरअसल अमेरिका के खुदरा बाजार के 85 प्रतिशत हिस्से पर वालमार्ट, टारगेट , जे.सी. पेन्नी व बेस्ट वाय जैसे विशलकाय रिटेल कम्पनियों ने कब्जा जमा रखा है और इनमें वालमार्ट सबसे चतुर-चालाक कम्पनी है। इन्होंने उत्पादकों से अपना सीधा रिश्ता बना लिया है। ये उत्पादक उन्हीं चीजों के उत्पादन पर जोर देते हैं, जिनका इन रिटेल कम्पनियों के स्टोरों में खपत होती हैं। ये रिटेल कम्पनियां अधिकाधिक उत्पादन के लिए फार्मरों को बाध्य करती हैं और फार्मर इसके लिए भारी मात्रा में कृत्रिम खादों, कीटनाशकों व अन्य रसायनों का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा वालमार्ट व अन्य कम्पनियां अपने स्टोरों में खाद्य पदार्थों, खासकर फलों व सब्जियों को ज्यादा समय तक तरोताजा रखने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनों का भी प्रयोग करती हैं। इससे खाद्य पदार्थ व फल-सब्जियां स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हो जाती हैं। अनुसंधानों से पता चला है कि इनके उपभोग से कैंसर व अन्य घातक बीमारियां तक हो जाती हैं। यही कारण है कि अमेरिकी जनता का एक अच्छा खासा हिस्सा ज्यादा कीमत चुका कर आर्गेनिक खाद्यान्न व फल-सब्जी की दुकानों से खरीदारी करने लगे हैं। इसी खतरे को भांपते हुए कई देशों ने खाद्य पदार्थों, फल-सब्जियों व मीट-मछलियों के खुदरा बाजार में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश की इजाजत नहीं दी है। जबकि भारत सरकार सबसे पहले फलों, सब्जियों व खाद्य पदार्थों के व्यापार में ही विदेशी पूंजी लगाने को उतावला है। चाहे स्थिति जो हो, भारत सरकार भारतीय उपभोक्ताओं को तरह-तरह के सब्ज बाग दिखाकर खुदरा बाजार में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश को आकर्षित करने का मन बना चुकी है। अब वालमार्ट के प्रवेश के साथ-साथ अमेरिका की टारगेट, स्टारबक्स व अन्य कम्पनिया, ब्रिटेन की टेस्को व माक्र्स स्पेंसर, फ्रांस की कैरीफोर, केजिनो व अटोल्ड, जर्मनी की मेट्रो व ओट्टो और होम बेस, सेन्सबरी एवं हिलफिगर जैसी दर्जनों कम्पनियां भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश की तैयारी कर रही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव चाहे भारत सरकार जितने भी सब्जबाग दिखाये, खुदरा व्यापार में भीमकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश से न केवल हमारे देश के आतंरिक व्यापार, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था का ताना-बाना बिखर जायेगा। वैसे तो यूनीलिवर, पेप्सीको, कोक, जनरल इलेक्ट्रिकल्स, यूनियन कार्बाइड, मोनसेन्टो, माइक्रोसाफ्ट, इंटेल, मोटारोला जैसी विशालकाय अमेरिकी कम्पनियों के साथ-साथ हजारों विदेशी कम्पनियां भारतीय बाजारों में वर्षों से अपना माल बेचकर अकूत मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन खुदरा बाजार में विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश का काफी खतरनाक व दूरगामी असर पड़ेगा।

इसका सबसे पहला असर यह होगा कि खुदरा व्यापार में लगे करोड़ों लोगों की जीविका पर संकट उत्पन्न हो जायेगा। एक अनुमान के मुताबिक पहले साल ही करीब एक करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। खुदरा व्यापार में लगी विदेशी कम्पनियां अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करती हैं जिससे श्रमिकों/कर्मचारियों की आवश्यकता कम पड़ती है। उदाहरण के लिये सुपर मार्केट या शॉपिंग माल के हर वस्तु पर रेडियो लेबल लगती है, जिसे आर.एफ.डी.आई कहा जाता है। इससे वस्तु के स्टाक की जानकारी करना काफी आसान हो जाता है। इस प्रणाली से कैश रजिस्टर का काम भी पूरा किया जा सकता है। फलत: काफी कम कर्मचारियों से किसी भी ऐसे शॉपिंग केंद्र की देख-भाल करना सम्भव हो जाता है। फिर ये कंपनियां अपने मुनाफे की दर को बढ़ाने के लिए खुदरा बाजार में लगे बिचौलियों को हटा देती है और सीधे उत्पादकों से अपना माल खरीदती है। इससे बेरोजगारी की कतार और अधिक लंबी हो जाती है।
दूसरा प्रभाव वस्तुओं की कीमतों पर पड़ेगा। बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां उपभोक्ताओं को सस्ती चीजें उपलब्ध कराने एवं वस्तुओं का मानकीकरण करने का दावा करती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि वे प्रचार और पैकेजिंग पर ज्यादा से ज्यादा जोर देती हैं। जोरदार प्रचार व आकर्षक पैकिंग के सहारे वे अपने घटिया से घटिया माल का उपभोक्ताओं से अधिक दाम वसूलने में सफल हो जाती हैं। उनका प्रबंधन इतना चतुर होता है कि वह बाजार में लागातार अनावश्यक चीजों की मांग पैदा करता रहता है और रिटेल बाजार में आम उपभोक्ताओं की जेबें कटती हैं। आम तौर पर ये कंपनियां दुनिया के कोन-कोने से सस्ता माल खरीदती हैं और जहां सबसे ज्यादा मुनाफा मिलता है, वहां उन्हें ले जाकर बेचती हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत के खुदरा व्यापारी प्राय: दस से बीस प्रतिशत मुनाफा लेकर अपना माल बेचते हैं, जबकि अमेरिका और यूरोप की बड़ी-बड़ी कंपनियां इससे अधिक मुनाफे की दर पर अपना काम करती हैं।
तीसरा प्रभाव वस्तुओं की गुणवत्ता पर पड़ेगा। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने सुपर मार्केट के स्टोरों मे फल, सब्जियों, खाद्यान्नों व अन्य चीजों को लम्बे समय तक सही सलामत रखने के लिए बड़े पैमाने पर कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों का इस्तेमाल करती हैं। यहां तक कि वे किसानों/फार्मरों को भी खेती में ज्यादा-ज्यादा इन खतरनाक चीजों के इस्तेमाल करने को बाध्य करती हैं। इससे खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हो जाते हैं। इन खाद्य पदार्थों के उपभोग से लोग तरह-तरह की खतरनाक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।


चौथा असर यह होगा कि खुदरा व्यापार में बड़ी-बड़ी देशी / विदेशी कम्पनियों में प्रवेश से इस क्षेत्र में एकाधिकार की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ेगी। हो सकता है कि गलाकाट प्रतियोगिता के पहले दौर में उपभोक्तओं को कुछ सस्ते सामान उपलब्ध करायें जायें। लेकिन जब इस क्षेत्र पर कुछ मुट्ठीभर कम्पनियों का एकाधिकार हो जाएगा, तो फिर वे अपने सामानों का मनमाना दाम वसूलेगीं।


इसके अलावा सामाजिक व सांस्क्रतिक असर भी पड़ेगा। शॉपिंग माल/सुपर मार्केट न केवल आर्थिक प्रभाव डालते हैं बल्कि रहन-सहन व खान-पान को भी प्रभावित करते हैं। इन बिक्री केंद्रों में जाने वाले बच्चों व महिलाओं समेत सभी उम्र के लोगों के स्वाद, स्वभाव, पहनावा व हाव-भाव में एक खास फर्क आ जाता है, जो कहीं से भी देश की संस्कृति से मेल नहीं खाता है। मिला-जुला कर खुदरा बाजार में विदेशी निवेश एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रवेश देश की अर्थव्यवस्था के नव उपनिवेशिकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ायेगा एवं भारत के जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित करेगा।


राजनीतिक दलों/संगठनों की भूमिका

विदित है कि शासक वर्गों से जुड़े हुए सभी दल व संगठन देश के खुदरा बाजार में देशी/विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश का प्रत्यक्ष या प्ररोक्ष रूप से समर्थन करते हैं। यू.पी.ए. सरकार के मंत्रीगण संसद में खुदरा व्यापार के बारे में गलत तथ्यों को पेश कर आम जनता को गुमराह कर रहे हैं। दूसरी ओर केन्द्र सरकार को समर्थन देने वाले वामपंथी दल इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की छूट देने का केवल अनुष्ठानिक विरोध कर संघर्ष की धार को कुंठित कर रहे हैं। सबसे बड़े विपक्षी दल भाजपा की स्थिति सांप-छुछुंदर की बनी हुई है। अपने को व्यापारियों का हितैषी होने का दावा करने वाली यह पार्टी फिलहाल अंदरूनी कलह में बुरी तरह फंसी हुई है। एक ओर यह कांग्रेस की तरह वैश्वीकरण व उदारीकरण की नीतियों की पुरजोर वकालत करती है, दूसरी ओर इसका स्वदेशी जागरण मंच खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति देने के खिलाफ अखिल भारतीय खुदरा व्यापार सम्मेलन आयोजित कर आम जनता व व्यापारी समूह को दिगभ्रमित करता है।

आन्तरिक खतरे

खुदरा व्यापार में लगी भारतीय कम्पनियां एक ओर अपनी दक्षता व क्षमता को बढ़ा रही हैं और दूसरी ओर विदेशी कम्पनियों से सांठ-गांठ कर रही हैं। खासकर रिलायन्स रिटेल ने वालमार्ट व अन्य विदेशी कम्पनियों की चुनौती को काफी गंभीरता से लिया है और उसने हाल ही में कई ठोस कदम भी उठाये हैं (जिसका विवरण उपर दिया जा चुका है)। उसने हाल ही में रिलायन्स फ्रेश के नाम से हैदराबाद व जयपुर में फलों-सब्जियों व खाद्यान्नों आदि के बड़े-बड़े स्टोर खोले हैं।


अगले 6 माह के दौरान उसने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, चेन्नई व उ.प्र. के कई शहरों में ऐसे सैकड़ो स्टोर खोलने की घोषणा की है। इसके अलावा उसने रिलायंस डिजिटल के नाम से इलेक्ट्रानिक चेन एवं रिलायंस मार्ट के नाम से हाइपर मार्केट खोलने की योजना बनाई है। किशोर वियानी का 'फ्यूचर ग्रुप', जो अभी देश के विभिन्न शहरों में 40 लाख वर्गफीट में रिटेल स्टोर चला रहा है, ने भी अपनी कम्पनी को विस्तारित करने की योजना बनाई है। 'बिग बाजार' के नाम से उसने कुल 40 मार्केट खोल रखे हैं। उसने 2007 के अंत तक ऐसे मार्केटों की संख्या बढ़ाकर 100 तक करने की घोषणा की है।


हाल ही में उसकी पैन्टालून रिटेल कम्पनी ने घरेलू व सजावटी कपड़ों, फर्नीचरों, बिजली के समानों व अन्य चीजों के भंडारीकरण हेतु बड़े-बड़े स्टोरों के निर्माण की योजना बनाई है। वह थाने,बंगलौर व गुड़गांव में होमटाउन स्टोर बनाने जा रही है, जिनका क्षेत्रफल डेढ़ लाख से दो लाख वर्ग फीट का होगा। आर.पी.जी. ने अपने रिटेल बिजनेस को बचाने व फैलाने के लिए हांगकांग की एक बड़ी कम्पनी से समझौता किया है। गोयनका ग्रुप की इस कम्पनी के 110 फूड स्टोर्स एवं 200 म्यूजिक स्टोर्स चल रहे हैं। इसने 2010 तक फूड स्टोरों की संख्या बढ़ाकर 1900 करने की घोषणा की है। इसी तरह चेन्नई स्थित कोटक प्राइवेट इक्वीटि ने वालमार्ट, टारगेट व जे.सी.पेन्नी जैसी अमेरिकी कम्पनियों को बड़े पैमाने पर टेबुल क्लॉथ, किचेन व विन्डो कर्टेन, कालीन, बेडिंग व अन्य कपड़ा उत्पादों के निर्यात का बीड़ा उठाया है। टाटा ग्रुप ने भी वेस्ट साइड के नाम से दर्जनों डिपार्टमेंटल स्टोर्स, स्टार इण्डिया बाजार के नाम से हाइपर मार्केट, लैंड मार्क नाम से बुक व म्यूजिक चेन एवं क्रोमा (ब्रिटेन की एक कम्पनी के साथ) के नाम से कंजूमर डयूरेबल्स चेन खोला है।

अब कुमार मंगलम बिरला की ए.वी. बिरला ग्रुप भी रिटेल व्यापार में उतरने की योजना बना चुकी है। मुम्बई की शॉपर्स स्टॉप के भी दर्जनों बड़े-बड़े रिटेल स्टोर्स नई दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकता, जयपुर, गुड़गांव, बंगलोर, पुणे व अन्य शहरों में कार्यरत हैं। इस कम्पनी ने भी अपने विस्तार की योजना बनाई है। फिलहाल इस कम्पनी के विभिन्न स्टोरों में प्रतिदिन औसतन 50 हजार उपभोक्ताओं का आना-जाना होता है। प्लेनेट स्पोर्टस नामक रिटेल कम्पनी के देश में करीब डेढ़ दर्जन शहरों में दर्जनों आउटलेट खुले हुए हैं। उसकी योजना हर साल 5 नये आउट लेट खोलने की है। इनके अलावा लाइफ स्टायल, सुभिक्षा, ट्रिनेत्र व नीलगिरि जैसे दर्जनों छोटे-छोटे प्लेयर भारतीय रिटेल बाजार में अपनी किस्मत अजमा रहे हैं। लेकिन, यह ध्यान देने की बात है कि इन सभी देशी' रिटेल कम्पनियों का असली निशाना भारतीय खुदरा व्यापार में कार्यरत 5 करोड़ दुकनदार ही हैं।

लेकिन आश्चर्य है कि कुछ प्रगतिशील व जनवादी समूह एवं आर्थिक समीक्षक खुदरा बाजार में इन देशी कम्पनियों के प्रवेश को नजरअंदाज कर रहे हैं और अपनी कलम की सारी जादूगरी केवल विदेशी कम्पनियों के खिलाफ दिखा रहे हैं। जनपक्षीय ताकतों को इन कम्पनियों के खिलाफ भी आवाजें उठानी चाहिए। ऐसी स्थिति में तमाम देशभक्त, जनतांत्रिक व क्रांतिकारी ताकतों का दायित्व बनता है कि वे यू.पी.ए. सरकार द्वारा खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश की इजाजत देने एवं अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले करने के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन विकसित करें। इसके साथ-साथ वे आम जनता को आगाह करें कि जबतक देश में साम्राज्यवाद परस्त शोषक सत्ता व व्यवस्था बरकरार रहेगी, तब तक भारतीय जनता को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लूट-खसोट से बचाया नहीं जा सकता। आज जरूरत इस बात की है कि शोषित-पीड़ित मजदूरों-किसानों व जनता के अन्य हिस्सों के साथ-साथ खुदरा दुकानदारों व व्यवसायियों को भी एकताबध्द किया जाये और एक जनपक्षीय/लोक जनवादी सत्ता व व्यवस्था के निर्माण की लड़ाई तेज की जाये।

1 टिप्पणी:

रजेन्द्र सिंह राठौर ने कहा…

वालमार्ट के पैरोकार और अमेरिकी दलाल को एक बार इस लेख को पद लेना चाहिए ..बेहद तथ्यात्मक जानकारी दी हैं ,रिटेल के नाम पर सरकार बिचोलियो को ला रही हैं ...ये वेसा ही जेसे भेडो के बड़े मैं भेडियो को छोड़ना सभी राजनितिक दलों मैं अमेरिकी परस्त लोग बेठे हैं जो चंद रुपयों के लिए अपनी आत्मा बेचेते रहते हैं ...उल्लेखनीय हैं अमेरिकी विदेश हिलेरी किलंटन ,अपने पति के राष्ट्रपति काल मंत्री वालमार्ट के निर्देशक मंडल मैं रह चुकी हैं वर्त्तमान मैं करीब १००००० लाख शेयर्स की मालकिन हैं ..आप समझ सकते हैं वालमार्ट की लाबिंग कर भारत मैं प्रवेश दिया गया हैं .क्या इस पोस्ट को फ़ेसबुक पर प्रकशित करने की अनुमति हैं .सादर

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