दिल्ली के भूभाग पर हृदय धमनियों की तरह बहने वाली यमुना के तटों पर कॉमनवेल्थ खेल- 2010 के आयोजन की तैयारियाँ जोर-शोर पर हैं। पूरी दिल्ली तथा नोएडा में कॉमनवेल्थ खेल पर 8,000 करोड़ रुपया खर्च का अनुमान है। यमुना तट तथा नोएडा में होटल, मॉल, मेट्रो रेलवे का रास्ता और स्टेशन आदि के लिए निर्माण जोर-शोर से चालू हैं। कॉमनवेल्थ खेल के आयोजन के काफी हिस्से का निर्माण पूर्वी यमुना तट पर होना है। कायदे-कानूनों सहित यमुना तट की भूभौगोलिक परिस्थितियों की अनदेखी भी भयानक रूप से की जा रही है। मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग दोनों मात्र इस बात से खुश है कि यमुना तट पर 5000 से ज्यादा आवासीय फ्लैटों का निर्माण हो रहा है। इससे रीयल एस्टेट के दाम घटेंगे, पर कॉमनवेल्थ खेल के शोर में यमुना के दर्द को जानने-समझने का शायद किसी के पास वक्त है।
एक जीती-जागती नदी की धीरे-धीरे मौत के गवाह हैं हम। सीएसई के सुरेश बाबू कहते हैं कि ''हमेशा से यमुना दिल्लीवासियों की पानी की जरूरत को पूरा करती रही है, वही आज दिल्ली के लिए कलंक बन गई है।'' दिल्ली में यमुना की लम्बाई 22 किलोमीटर है जो यमुना की कुल लम्बाई का दो फ़ीसदी है। पर यमुना के कुल प्रदूषण का 70 फीसदी अकेले दिल्ली के लोग करते हैं।
10 अप्रैल 2001 को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि 31मार्च 2003 तक न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को 'मैली' न कहा जा सके। पर 5 सालों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में ऑक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।
प्रदूषित यमुना -एक अच्छा धंधा है
एक जीती-जागती नदी की धीरे-धीरे मौत के गवाह हैं हम। सीएसई के सुरेश बाबू कहते हैं कि ''हमेशा से यमुना दिल्लीवासियों की पानी की जरूरत को पूरा करती रही है, वही आज दिल्ली के लिए कलंक बन गई है।'' दिल्ली में यमुना की लम्बाई 22 किलोमीटर है जो यमुना की कुल लम्बाई का दो फ़ीसदी है। पर यमुना के कुल प्रदूषण का 70 फीसदी अकेले दिल्ली के लोग करते हैं।
10 अप्रैल 2001 को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि 31मार्च 2003 तक न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को 'मैली' न कहा जा सके। पर 5 सालों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में ऑक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।
प्रदूषित यमुना -एक अच्छा धंधा है
यमुना प्रादूषण दूर करने के लिए लगातार समय और पैसा बर्बाद किया जा रहा है। लेकिन परिणाम शून्य है। 9 महीनों से भी ज्यादा समय से इसका पानी पीने योग्य नहीं हैं। वजीराबाद से जब यमुना दिल्ली में प्रवेश करती है, तो इसका पानी साफ़ होता है लेकिन दिल्ली से निकलते ही यह गंदे नाले में बदल जाती हैं। पाला में, जहां यमुना दिल्ली में प्रवेश करती है। मई 2006 में ञ्ुलनशील ऑक्सीजन का स्तर लगभग 6.5 मिग्रा. प्रति लीटर आंका गया, जो काफी स्वास्थ्यवर्ध्दक है। लेकिन यही ऑक्सीजन का स्तर जनवरी 2003 में 9.6 मिलीग्राम था जो इस बात की ओर संकेत करता है कि यमुना की ऊपरी धारा दिन-ब-दिन प्रदूषित हो रही है। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निश्चित स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। ओखला के लोगों को कभी भी साफ़ पानी नहीं मिला क्योंकि यह पानी न पीने लायक है और न ही नहाने लायक है। बेशक यह नदी दिल्ली में तो एक ऐसा गंदा नाला बन गई ह,ै जहाँ शहर की सारी गंदगी उड़ेली जा रही है।
पेस्टीसाइडस् और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फारेन्सिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01 मिग्रा होनी चाहिए। सेन्ट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना का सर्वे करते हुए आर्सेनिक की मात्रा को नजरअंदाज कर दिया। पानी में मौजूद फास्फेट और नाइट्रेट का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऊपरी यमुना का पानी तो किसी लायक नहीं ही रहा। लेकिन यह विडम्बना ही है कि यमुना की निचली धारा जहां बहती है, वहाँ लोग (मथुरा, आगरा, इलाहाबाद आदि) पीने के पानी के लिये यमुना के पानी पर ही निर्भर हैं।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित समय-सीमा को बीते तीन वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अब भी नदी में ऑक्सीजन नहीं है। नदी को साफ़ करने के लिए बुनियादी ढाँचे पर भी दिल्ली सरकार ने कितनी ही राशि लगा डाली, 'यमुना एक्शन प्लान' के माध्यम से भी योजना बनाई गई पैसा लगाया गया। 2006 तक कुल 1188-1491 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है जबकि प्रदूषण का स्तर और ज्यादा बढ़ गया है। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी केवल मानसून में ही यमुना में ऑक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है।
अधिकांश राशि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई। अगर दिल्ली जलबोर्ड का 2004-05 का बजट प्रस्ताव देखें तो इसमें 1998-2004 के दौरान 1220.75 करोड़ रू. पूंजी का निवेश सीवरेज संबंधी कार्यो के लिये किया था। इसके अतिरिक्त दिल्ली में जो उच्चस्तरीय तकनीकी यंत्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनकी लागत भी 25-65 लाख प्रति एमआईडी आंकी गई है। दूसरे शब्दो में कहा जाए तो सीवेज साफ करने के लिये व्यय की गई राशि पानी के बचाव और संरक्षण पर व्यय की गई राशि से 0.62 गुना ज्यादा है।
प्रदूषण का कारण - सरकार मानती है झुग्गी
इतना ही नहीं, नदी के प्रदूषण को दूर करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक मुकदमें हुए हैं, जिस पर न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण के लिये निर्देश भी दिये हैं। लेकिन उनके फैसलों निर्देशों की परवाह किये बिना ही विभिन्न एजेंसियां झुग्गियों को प्रदूषण का कारण बनाने में लगी हैं। इसलिये 2004 में, यमुना को प्रदूषण मुक्त करवाने के नाम पर, यमुना पुस्ता को खाली करा लिया गया लेकिन दो साल के बाद भी प्रदूषण की स्थिति जस की तस है। हां उसी जगह पर अब मॉल बनेंगे। वे शायद सरकार की नजर में प्रदूषण नहीं करते।
वर्तमान का यमुना संकट
मात्र यमुना के तट ही अब केवल दिल्ली के भूगर्भ जल को भर रहे हैं। यमुना तटों की बलुहट मिट्टी सबसे ज्यादा पानी सोखती है। यमुना तटों पर बहुमंजिली इमारतों का निर्माण एक भयानक खतरा बनके आया है। अक्षरधाम मंदिर से शुरु हुई यमुना तट पर कब्जे की शुरुआत के बाद कॉमनवेल्थ खेल बिल्डर्स भूमाफिया के लिए एक सुअवसर बनकर आया है। यमुना तट पर कॉमनवेल्थ खेल के नाम पर कब्जा किया जा रहा है। यमुना तट पर निर्माण के सवाल को कॉमनवेल्थ खेल पर विवाद के रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है। ताकि कॉमनवेल्थ खेल यानी देश की शान के नाम पर यमुना के तटीय हिस्सों पर कब्जा कर लिया जाए। पर सवाल पानी के संदर्भ में दिल्ली के साझे भविष्य का है। केंद्र सरकार इस वर्ष को 'जल-वर्ष 'के रूप में मना रही है, विज्ञापनों में, पोस्टरों में, नारों में, पर असल में तो वह कॉमनवेल्थ खेल के नाम पर यमुना तट पर कंक्रीट का जंगल खड़ा करके दिल्ली के लिए 'जल तबाही वर्ष' ही साबित करने में जुटी है। (पीएनएन)
1 टिप्पणी:
Shiraj ji, article is an eye opener for all of us but I am sure government agency will not open their eye as they are making money in the name of "Holy Yamuna".
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