औरत के डाकिन होने के मायने

सीधी जिले के सेंदुरा गांव के प्रभावशाली लोगों ने बूटनदेवी नामक एक महिला को ऊपरी बाधा यानी डाकिन के रूप में प्रचारित किया। बूटनदेवी को गांव के पंडा के पास ले जाया गया जहां भूत भगाने के नाम पर पूजा-पाठ करके उसके माथे पर कील ठोक दी गई। लोग कहते हैं कि यह पुलिस या कानून का नहीं समाज का मामला है। समाज किस रूप में पितृसत्ताात्मक है इसका प्रमाण डाकिन या चुड़ैल जैसी व्यवस्थाओं से मिल जाता है। यह माना जाता है कि गर्भावस्था के दौरान जिन महिलाओं की मृत्यु हो जाती है या फिर बुरे कर्म करने वाली और बुरी नजर वाली महिलायें डाकिन या चुड़ैल बनती हैं। और जब ये किसी पर अपना नियंत्रण कसती हैं तो उसका जीवन बर्बाद होने लगता हे।
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उल्लेखनीय है कि डाकिन या चुड़ैल केवल औरत ही होती हैं, पुरूषों में ऐसा कोई नहीं होता है जो किसी का जीवन बर्बाद कर सके। यहां पर केवल स्त्रीलिंग की अवधारणा मौजूद है, पुर्लिंग की नहीं। दक्षिणी प्रदेशों में भानमति आना एक आम घटना है। किसी महिला पर भानमति आने के बारे में धारणा यह है कि उसके प्रभाव से वह दिमागी संतुलन खो देती है और अजीबोगरीब हरकतें करती है। लेकिन वास्तव में महिला के दिमाग पर पारिवारिक व अन्य कारणों से पड़ा अत्यधिक दबाव उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार होता है। महिला पर डाकिन, भूत, भानमति या देवी का आना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इस तरह की करतूतों से वह खुद पर पड़ने वाले दबाव और उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त करती है।
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महिलाएं यह भी मानती हैं कि बीमारी से लड़ने की उसकी कुदरती क्षमता को कम करने के लिए उस पर मंत्रों, टोटकों और जादू आदि उपायों से निशाना साधा जाता है। सीधाी में एक नवविवाहिता पर देवी आने की घटना के बारे में जब छानबीन की गई तो पता चला कि उसके दिमाग पर घर-गृहस्थी के बोझ के साथ पारिवारिक तनाव भी हावी था, जिसके चलते वह ऐसी हरकतें करती थीं। अगर पति-पत्नि दोनों एक ही आयु वर्ग के हों और पत्नी पति से ज्यादा समझदार हो तो वह यौन व्यवहार में असंतुष्ट रहती है। यदि पति कमाऊ हो तो उस पर जिम्मेदारियों का बोझ भी ज्यादा रहता है और यदि वह बेरोजगार हो तो हताशा में अपना गुस्सा पत्नी पर ही उतारता है। इन परिस्थितियों में महिला अपनी निराशा को देवी आने जैसी घटनाओं से व्यक्त करती है। महिलाओं का मानना है कि सफेद पानी आना, अत्यधिक माहवारी, कमजोरी, बांझपन, सिरदर्द, पीठ का दर्द आदि उन्हीं महिलाओं को होते हैं, जिनकी पति के साथ नहीं बनती। लेकिन यदि ये समस्याएं लंबे समय तक कायम रहें तो इसके पीछे बुरी नजर को ही मुख्य कारण माना जाता है।
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डाकिन, डायन आदि नाम से इस बुरी नजर को संबोधित किया जाता है। यह भी महिलाओं को उत्पीड़न का शिकार बनाने वाली एक सामाजिक धारणा है। धारणा है कि डाकिन एक अदृश्य शक्ति होती है, जो महिला के शरीर में समाकर दुख देती है, उसे बीमार कर देती है। वह शरीर को तभी छोड़ती है जब उसे खुश कर दिया जाए। सामाजिक व पारिवारिक कारणों से दबाव के चलते महिलाओं का व्यवहार डाकिन जैसा हो जाता है। इसी के साथ जो महिला सामाजिक वर्जनाओं को नहीं मानती, उसे भी डाकिन कह दिया जाता है। उत्तार भारत में चुड़ैल शब्द भी काफी प्रचलित है। यदि कोई महिला प्रसव के दौरान मर जाती है तो वह चुड़ैल बन जाती है, ऐसी आम धारण्ाा है लेकिन जब भी कोई महिला परिवार की पितृसत्ताात्मक व्यवस्था या कुल परंपराओं को चुनौती देती है, उस पर चुड़ैल होने का आरोप लगा दिया जाता है। देश में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत या महिला द्वारा मृत बच्चे को जन्म देने के पीछे भी इसी धारणा को जान-बूझकर बल दिया जाता है कि यह चुड़ैल की बुरी नजर के कारण हुआ है। ऐसे मामलों में चुड़ैल को खुश करने के लिए विभिन्न तंत्र-अनुष्ठान और यहां तक कि नृत्य भी आयोजित किए जाते हैं। हिंदू परम्पराओं में माना गया है कि चुड़ैलों के पैर उल्टे होते हैं और जिस किसी पुरूष ने उसके साथ सहवास कर लिया, वह नपुंसक हो जाता है। ऐसी ही धारणाएं मुस्लिम समाज में भी कायम हैं। आम तौर पर डाकिन के बारे में आम धारणा यही है कि एक बार किसी महिला के शरीर में आ जाने पर वह उसके दिमाग पर अपनी असर डालती है और इसी धारणा को देखते हुए झाड़फूंक करने वाले प्रभावित महिला को शांत करने वाली दवाएं देते हैं। हालांकि डाकिन का आना और महिला की अजीबोगरीब हरकतें दिमागी तनाव और हताशा का ही परिणाम है, यह बात सभी मानते हैं, लेकिन उस तनाव को कम करने की कोशिश कोई नहीं करता। यही कारण है कि झाड़-फूंक के बाद भी महिला उस तनाव के साए से बाहर नहीं आती, जिसे डाकिन कहा जाता है।
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वैसे डाकिन या बुरी नजर के साए से महिला को बाहर निकालने के लिए कई तरह की प्रक्रियाएं की जाती हैं। मिसाल के लिए दक्षिण भारत और उत्तारप्रदेश के कुछ इलाकों में अब भी लालमिर्च, सरसों, नमक और झाड़ की तीलियों को साथ बांधकर 21 बार प्रभावित महिला के ऊपर घुमाया जाता है। इसके बाद इस सामग्री को महिला के बांए पैर के नीचे से निकालकर आग में डाल देते हैं। आग से यदि जलने की गंध न आए तो माना जाता है कि महिला पर बुरी नजर डाकिन का साया है। केरल में भी बुरी नजर की डाकिन का उतारा करने की प्रथा प्रचलित है, जिसमें मंत्र उपचारित हल्दी का उपयोग किया जाता है। इसके आलाव भविष्य में महिला पर किसी की बुरी नजर न पड़ें इसके लिए खास तरह के ताबीज बांधे जाते हैं। उपचार के लिए मंत्र फूंककर हाथ में धागा बांधने का भी रिवाज है, तो कहीं अभिमंत्रित जल या तेल का उपयोग होता है। डाकिन या बुरी नजर से बचने के लिए लोग पीर-फकीर, बाबा आदि की भी शरण लेते हैं, तो कुछ लोग जात्रा, नाहिन आदि साधन अपनाते हैं। तांत्रिकों की सहायता भी ली जाती है।
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हालांकि इन उपायों से महिला को थोड़ी राहत तो मिलती ही है, फिर भी उन कारणों को दूर करने में उसे सफलता नहीं मिलती, जिसके चलते वह मानसिक अशांति के दौर से गुजर रही है। पति की बेरूखी, अकेलापन, काम का बोझ, बीमारी, अवसाद और उपचार के साधनों के अभाव से उसे जो घुटन होती है, वह कुछ समय बाद फिर से बाहर आती है। असल में डाकिन ही वह शब्द है जो अत्याचार व शोषण के खिलाफ महिला की आवाज बनकर बाहर आता है। यह महिला की आत्मशक्ति होती है, लेकिन जो भी महिला अपनी इस अंदरूनी ताकत को दिखाने की कोशिश करती है, समाज उसे बुरी नजर या डाकिन का नाम देकर दबाने का प्रयास करता है। चूंकि सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को एक व्यक्ति के रूप में दोयम दर्जें पर रखा जाता है। यही कारण है कि उसके स्वास्थ्य और नेतृत्व को कहीं एक मुद्दे के रूप में महत्व ही नहीं मिलता है। उसे अपनी इच्छा और पीड़ा को अभिव्यक्त करने की भी स्वतंत्रता नहीं है ऐसे में हम यही पाते हैं कि पारम्परिक समाज में वह अपने तनाव के साथ एक बंधन में जीवन बिताती है। ऐसे में डाकिन जैसी अवधारणायें उसके तनाव को दी गई परिभाषा है। समाज यह स्वीकार नहीं करना चाहता है कि दमनकारी पितृसत्तात्मक व्यवहार के फलस्वरूप आमतौर पर उसका व्यवहार असामान्य हो जाता है।

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