जायजा राज्यों का - सूचना के अधिकार कानून लागू करने में भी मनमर्जी

राज्य सरकारें सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय कानून को मनमर्जी से लागू कर रही हैं। अभी तक राज्य सरकारों को दी कई जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुई हैं। इस कानून के बारे में लोगों को जानकारी तक नहीं है। अनेक राज्यों में जनता, कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए न तो प्रशिक्षण मॉडयूल बने हैं। न ही प्रशिक्षण आयोजित किए गए हैं। राज्य सरकारें सूचना आयुक्तों को पूरी सुविधाएं नहीं दे रही हैं। कई राज्यों में सूचना मांगने व निरीक्षण करने की मनमानी फीस वसूली जा रही है। समय पर अपीलों की सुनवाई नहीं होती। अपनी पहल से धारा 4 के तहत सूचना नहीं दी जा रही। सूचना मांगने वालों को धमकाया जाता है। आमजन सरकारी दफ्तरों में जाने से डरते हैं। देशभर में सूचना के अधिकार को लेकर बहुत कम संस्था संगठन काम कर रहे हैं। ये जानाकारियां सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान के एक आंकलन से पता चली हैं। इस अभियान ने 17 राज्यों के सूचना के अधिकार के सहयोगी समूहों को एक प्रश्नावली भेजी थी। उनसे इसे भर कर भेजने को कहा गया था। इसी प्रश्नावली से यह जानकारी मिली है।
पिछले दो सालों में सूचना के अधिकार कानून की स्थिति का आंकलन करने के लिए सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान ने 28 से 30 सितम्बर को दिल्ली में एक कार्यशाला आयोजित की थी। इससे कई जरूरी जानकारियां मिली हैं।
अभियान के द्वारा केन्द्र व 16 राज्यों ;आसाम, बिहार, छत्ताीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, नागालैण्ड, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तार प्रदेश, तमिलनाडू व पश्चिम बंगालध्द से यह सूचनाएं एकत्रित की गर्इं। कुल 17 जगहों की सूचनाओं को संकलित किया गया। इस संकलन से कुछ अहम तथ्य जो उभर कर आए वो हैं:
· कुछ राज्यों में मनमर्जी से आवेदन की फीस ली जा रही है। कानून में 10 रुपए फीस तय की गई है। गुजरात में 20 रुपए व तमिलनाडू में 50 रुपए फीस ली जा रही है। बाकी सभी राज्यों में 10 रुपए ही लिए जा रहे हैं।
· कानून में फोटो कॉपी के लिए हर पन्ने के 2 रुपए लेने का नियम है। सभी राज्यों में इसी के अनुसार लिए जा रहे हैं।
· रिकॉर्ड के निरीक्षण के लिए एक्ट में पहले घण्टे में कोई फीस नहीं ली जाती है। उसके बाद हर आधे घंटे की 5 रुपए फीस लगती है। राज्यों से आई सूचना के अनुसार छत्ताीसगढ़ व मध्यप्रदेश में पहले घंटे में 50 रुपए फीस ली जा रही है। उत्तार प्रदेश में 10 रुपए। बाकी सभी जगह कोई फीस नहीं ली जा रही है। एक घंटे के बाद के समय के लिए गुजरात व कर्नाटक में आधे घंटे के 20 रुपए लिए जा रहे हैं। बाकी जगह 10 रुपए लिए जा रहे हैं।
· एक्ट के अनुसार प्रथम अपील की कोई फीस नहीं लगती। छत्ताीसगढ़ व मध्यप्रदेश में 50 रुपए, महाराष्ट्र व उड़ीसा में 20 रुपए तथा बिहार में इस काम के 10 रुपए लिए जा रहे हैं। बाकी राज्यों में कोई फीस नहीं ली जा रही।
· द्वितीय अपील की भी कोई फीस नहीं है। छत्ताीसगढ़ व मध्यप्रदेश में 100 रुपए उड़ीसा में 25 रुपए, महाराष्ट्र में 20 रुपए तथा बिहार में 10 रुपए लिए जा रहे हैं। बाकी राज्यों में कोई फीस नहीं ली जा रही है। सीडी के लिए सभी जगह 50 रुपए फीस ली जा रही है।
· बड़े पेपर पर सूचना की फोटोकॉपी के लिए वास्तविक मूल्य के अनुसार पैसे लिए जा रहे हैं। छत्ताीसगढ़ में बी.पी.एल. कार्डधारियों की व्यक्तिगत सूचना मुफ्त दी जा रही है। अन्य लोगों से 50 पन्नों के लिए 10 रुपए लिए जा रहे हैं।
· नकद, डीडी, चालान, चेक, नॉन ज्यूडिशल स्टेम्प पेपर, बैंक पे ऑर्डर, पोस्टल आर्डर आदि से पैसे लिए जा रहे हैं।
· मध्यप्रदेश राज्य में प्रथम अपील की दो प्रतियां और दूसरी अपील की अर्जी की 3 प्रतियां ले रहे हैं। कहीं पर छपे हुए फार्मों पर अपील ली जा रही है।
· अपील की सुनवाई में ज्यादातर राज्यों में 45-50 दिन लग रहे हैं लेकिन छत्ताीसगढ़ में दो महीने लग रहे हैं।
· 7 राज्यों ;बिहार, छत्ताीसगढ़, दिल्ली, मध्यप्रदेश, नागालैण्ड, उत्तारप्रदेश, पश्चिम बंगालध्द में कोई टे्रनिंग मॉडयूल नहीं है। कर्नाटक व तमिलनाडू से कोई जवाब नहीं मिला है। बाकी 8 राज्यों में प्रशिक्षण की कोई न कोई व्यवस्था है और इसकी पुस्तिका भी निकाली गई है। बिहार, दिल्ली, उत्तारप्रदेश, पश्चिम बंगाल में अभी तक कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। केरल में सबसे ज्यादा प्रशिक्षण कार्यक्रम हुए हैं।
· मध्यप्रदेश के अलावा किसी भी राज्य में सूचना मांगने वालों को परेशान करने की बात सामने नहीं आई है।
· राज्य सूचना आयोग की स्थापना सब जगह हो गई है। लेकिन इसे शुरू किए जाने की तारीख हर जगह अलग-अलग है। इसी तरह पहली अपील सुनने की तारीख भी सब जगह अलग अलग है। 2006 में सभी राज्यों में इस कानून की क्रियान्विति शुरू हो गई थी।
· सूचना के अधिकार के तहत आने वाली अर्जियों के रिकॉर्ड रखने व उन्हें व्यवस्थित करने का तरीका अभी सब जगह नहीं बना है। बिहार, दिल्ली, झारखण्ड, नागालैण्ड, उत्तारप्रदेश, पश्चिम बंगाल में ऐसी कोई व्यवस्था अभी नहीं बनी है।
· लोक सूचना अधिकारी व उप लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति या पदनाम सभी जगह हो चुका है। किन्तु दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर व राजस्थान में सब जगह इन तक पहुंचना आसान नहीं है। कहीं कहीं इनसे मिलने के लिए पास बनवाना पड़ता है। कौन व्यक्ति कहां अधिकारी है इसकी सूची आसानी से कहीं भी नहीं मिलती। फोन नम्बर भी नहीं मिलते।
· धारा 4 के तहत खुद देने वाली सूचना भी बहुत कम जगह उपलब्ध हैं। उड़ीसा के अलावा कहीं भी यह सूची उपलब्ध नहीं है।
· केरल, मणिपुर व उड़ीसा में एकल खिड़की योजना से सारी जानकारी दी जाती है। अन्य राज्यों में यह सुविधा नहीं है।
· आसाम, नागालैण्ड, उड़ीसा व राजस्थान में लोक सूचना अधिकारी मदद करते हैं जबकि अन्य राज्यों में मदद में परेशानी आती है।
· आसाम, बिहार, नागालैण्ड व राजस्थान में आमतौर पर सूचना मिल जाती है लेकिन समय सीमा के अंदर बस उड़ीसा व राजस्थान में ही सूचना मिल पाती है।
· छत्ताीसगढ़ में पहली अपील की सुनवाई में दो महीने लगते हैं। झारखण्ड में 25( मामले ही समय पर निबटते हैं।
· 13 राज्यों में रिटायर्ड आई.ए.एस., 3 में उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश तथा 1 पुलिस अधिकारी को सूचना आयुक्त बनाया गया है।
· आसाम, छत्ताीसगढ़ गुजरात व नागालैण्ड के लोगों के सर्वेक्षण के नतीजों से पता चला है कि उन्हें सूचना आयुक्त पर विश्वास है। अन्य राज्यों के लोगों को उनपर विश्वास नहीं था।
· चार राज्यों में द्वितीय अपील में 45 दिन, 4 में 90 दिन, 1 में 4 महीने तथा 8 राज्यों में 6 महीने से भी ज्यादा का समय लगता है। अंतिम निर्णय में भी काफी समय लग जाता है।
आसाम, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान के अलावा सभी जगह समय पर सूचना नहीं देने पर पेनेल्टी लगाई गई। सभी राज्यों में काफी बड़ी मात्रा में द्वितीय अपील लगाई जा रही है और उनके निस्तारण में लम्बा समय लग रहा है।
- प्रस्तुति : रेणुका पामेचा

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