हाल ही में चेन्नई उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक फैसले में गोद लेने (इंटर-कंट्री एडॉप्शन- आईसीए) के एक घटनाक्रम में तीन बच्चों के अपहरण की जांच के आदेश सीबीआई को देने के मामले ने एक बार फिर कानूनी विधायी तंत्र की असफलता को उजागर कर दिया है। एक दम्पत्ति को गिरफ्तार किया गया है जो गोद लेने (एडॉप्शन) के आड़ में सरकार तथा उसकी एजेंसीयों के आंखों में धूल झोंककर बच्चों का व्यापार करता था।
कुछ समय पहले तमिलनाडु पुलिस ने बच्चों का व्यापार करने वाले एक रैकेट, जिसमें कई व्यक्तिगत तथा सरकारी एजेंसियां शामिल थीं; का भांडाफोड़ किया था। ये व्यापारी सड़क छाप बच्चों या गरीब परिवार के बच्चों और सरकारी अस्पतालों के मातृत्व कक्ष में भर्ती महिलाओं के बच्चों को अपहृत करते और तथाकथित गोद ग्रहण करनेवाली एजेंसियों को 5000 रू से 25000 रू प्रति बच्चे की दर से बेच देते थे। एक समाचारपत्र की सूचना के अनुसार इन व्यापारी माफियाओं पर मलेशिया की समाजसेवी संस्था, जो सात साल तक के बच्चे का गोदग्रहण करती है; को 350 बच्चे बेचने का आरोप है।
चेन्नई की साल्या ने अपनी चार की बेटी खोई, जिसे गली में खेलते समय ऑटोरिक्शा से आए एक गैंग ने अपहृत कर लिया। कथिरवेलु ने अपना एक साल का बेटा खोया जो फुटपाथ पर सोते समय अपहृत कर लिया गया। दोनों परिवारों ने स्थानीय पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाया। एफआईआर 1997 में बने 'मिसिंग चाइल्ड' एक्ट की धारा के अंतर्गत दर्ज किया गया। चुराए गए बच्चे मलेशिया की समाजसेवी संस्था को बेचे गए, संस्था ने दोनों बच्चों को क्रमश: आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड के धनी जरूरतमंद अभिभावकों को अच्छे दामों पर गोद दे दिया गया। दोनों मामलों में बच्चों का गोद-व्यापार जाली कागजातों पर हुआ। उच्च न्यायालय से जाली कागजातों के आधार पर आदेश लेकर बच्चों को देश के बाहर भेज दिया गया और उनके वास्तविक अभिभावक से अलग कर दिया गया। जबकि अभिभावकाें द्वारा पुलिस में दर्ज एफआईआर पड़ा रहा और गोद लेने वाली एजेंसी ने बच्चों के गोद लेने के स्थान की स्वीकृति का आदेश भी न्यायालय से हासिल कर लिया तथा चोरी बच्चों के लिए पासपोर्ट भी जारी करवा लिए।
वे अभिभावक जिन्होंने अपने बच्चे खोए वे इस बात से अनजान रहे कि उनके बच्चे गोद लेने के लिए बाहर भेजे गए तथा अपने बच्चों को खोजने में मस्त रहे। कड़वा सच यह है कि गोद लेनेवाले माफियाओं ने वैधानिक संस्थाओं जैसे सामाज कल्याण विभाग, स्वयंसेवी समन्वय समिति यहां तक कि न्यायिक प्रणाली का भीे अपनी लालच के लिए उपयोग किया। बच्चों के स्रोत की जांच की जिम्मेदारी और इस बात की जांच भी नहीं की गयी कि बच्चे चुराए नहीं गए हैं बल्कि उनके अभिभावक उन्हें त्याग रहे हैं काफी संक्षिप्त रही।
आज गोद लेने से संबंधित कोई कानून नहीं है; खासकर अंतरदेशीय गोद लेने के संबंध में। ''हिन्दु गोदग्रहण और परवरिश अधिनियम'' दो हिन्दुओं के बीच के समझौते से संबंधित है। यह अधिनियम की अंतर्देशीय गोद ग्रहण को नियंत्रित नहीं करता है। महत्वपूर्ण न्याय संसोधन अधिनियम 2006 'गोदग्रहण' को पारिभाषित करता है (अ) 'गोदग्रहण' का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत गोद लिए गए बच्चे को उसके वास्तविक अभिभावक से अलग किया जाता है और गोद ग्रहण करने वाले अभिभावक से संबंधित तमाम अधिकारों, सुविधाओं तथा उत्तरदायित्वों में वह शामिल हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1982 में ही गोदग्रहण के नाम पर बच्चों के व्यापार को ध्यान में लिया था, जब एक सामाजिक कार्यकर्ता के प्रयास पर न्यायालय में 'अंतरदेशीय गोद ग्रहण' के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंत:देशीय और अंतरदेशीय गोद ग्रहण के संबंध में कुछ दिशा निर्देश तय किए गए। ये निर्देश अभावग्रस्त बच्चों और अभिभावकों द्वारा बच्चों को छोड़ने के संबंध में थे। अपने निर्देश में सर्वोच्च न्यायलय ने यह स्पष्ट किया कि बच्चे आईसीए को तभी दिए जाएंगे जब कोई भारतीय अभिभावक उपलब्ध नहीं होगा और भारतीय परिवार में बच्चों को भेजने के लिए एजेंसियां हर संभव प्रयास करेगी।
न तो सर्वोच्च न्यायलय का निर्देश और न ही केन्द्रीय गोदग्रहण संसाधन एजेंसी से संबंधित निर्देश पुलिस विभाग और समाज कल्याण विभाग को गोद ग्रहण किए गए बच्चों के संबंध में शिकायत की जांच में शामिल करता है। और अंतत: न्यायिक मुहर जहां बच्चे को अभिभावक और वार्ड अधिनियम के अंतर्गत विदेशी अभिभावक के नियंत्रण में भेज देता है इस कारण माफियाओं को बच्चों को जन्मस्थान से या देश से बाहर भेजने में आसानी होती है। जो गैरकानूनी है वह एक न्यायिक मुहर से कानूनी हो जाता है। वर्तमान संदर्भ में इन विभागों में समन्वय आवश्यक है।
चेन्नई उच्च न्यायालय ने सीबीआई को तीन बच्चों के कथित अपहरण की जांच तथा तीन महीने के भीतर शिकायत की रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया है। सीबीआई की जांच माफियाओं के- स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतरदेशीय संबंध, कार्यप्रणाली को उजागर कर सकता है।
लेकिन उन अभिभावकों का क्या होगा जो अपनी संताने खो चुके हैं? उन बच्चों का क्या होगा जो दूसरे परिवेश में बढ़ रहे हैं तथा जिनके वास्तविक अभिभावक उनकी राह देख रहे हैं? कोई बच्चों के देश के बाहर गोद ग्रहण में। उनके अपने समाज और संस्कृति को खोने की भावना के बारे में क्या कर सकता है? सभी इस प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं, इन ढेर सारी जिंदगी को बचानेवाले जबाब के हम आभारी हैं।
क्या हमारे केन्द्र और राज्य सरकारों के पास गायब बच्चों का आंकड़ा है? क्या वे साल्या और कथिरवेलु जैसे बच्चे खोए अभिभावकों के दुख के जिम्मेदार नहीं हैं? बच्चा गोद लेने में बच्चों के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए इसमें शामिल सभी एजेंसियों के लिए अनिवार्य है कि ऐसे कदम उठाएं जिससे गोदग्रहण के नाम पर बच्चों के व्यापार की संभावना को कम किया जा सके।
उधर नीदरलैंड की संसद ने कथिरवेलु के बच्चे के व्यापार की बात उजागर होने के बाद एक संसदीय समिति का गठन किया है और भारत से गोदग्रहण के तमाम संबंधित मामलों की जांच कर रही है।
कुछ समय पहले तमिलनाडु पुलिस ने बच्चों का व्यापार करने वाले एक रैकेट, जिसमें कई व्यक्तिगत तथा सरकारी एजेंसियां शामिल थीं; का भांडाफोड़ किया था। ये व्यापारी सड़क छाप बच्चों या गरीब परिवार के बच्चों और सरकारी अस्पतालों के मातृत्व कक्ष में भर्ती महिलाओं के बच्चों को अपहृत करते और तथाकथित गोद ग्रहण करनेवाली एजेंसियों को 5000 रू से 25000 रू प्रति बच्चे की दर से बेच देते थे। एक समाचारपत्र की सूचना के अनुसार इन व्यापारी माफियाओं पर मलेशिया की समाजसेवी संस्था, जो सात साल तक के बच्चे का गोदग्रहण करती है; को 350 बच्चे बेचने का आरोप है।
चेन्नई की साल्या ने अपनी चार की बेटी खोई, जिसे गली में खेलते समय ऑटोरिक्शा से आए एक गैंग ने अपहृत कर लिया। कथिरवेलु ने अपना एक साल का बेटा खोया जो फुटपाथ पर सोते समय अपहृत कर लिया गया। दोनों परिवारों ने स्थानीय पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाया। एफआईआर 1997 में बने 'मिसिंग चाइल्ड' एक्ट की धारा के अंतर्गत दर्ज किया गया। चुराए गए बच्चे मलेशिया की समाजसेवी संस्था को बेचे गए, संस्था ने दोनों बच्चों को क्रमश: आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड के धनी जरूरतमंद अभिभावकों को अच्छे दामों पर गोद दे दिया गया। दोनों मामलों में बच्चों का गोद-व्यापार जाली कागजातों पर हुआ। उच्च न्यायालय से जाली कागजातों के आधार पर आदेश लेकर बच्चों को देश के बाहर भेज दिया गया और उनके वास्तविक अभिभावक से अलग कर दिया गया। जबकि अभिभावकाें द्वारा पुलिस में दर्ज एफआईआर पड़ा रहा और गोद लेने वाली एजेंसी ने बच्चों के गोद लेने के स्थान की स्वीकृति का आदेश भी न्यायालय से हासिल कर लिया तथा चोरी बच्चों के लिए पासपोर्ट भी जारी करवा लिए।
वे अभिभावक जिन्होंने अपने बच्चे खोए वे इस बात से अनजान रहे कि उनके बच्चे गोद लेने के लिए बाहर भेजे गए तथा अपने बच्चों को खोजने में मस्त रहे। कड़वा सच यह है कि गोद लेनेवाले माफियाओं ने वैधानिक संस्थाओं जैसे सामाज कल्याण विभाग, स्वयंसेवी समन्वय समिति यहां तक कि न्यायिक प्रणाली का भीे अपनी लालच के लिए उपयोग किया। बच्चों के स्रोत की जांच की जिम्मेदारी और इस बात की जांच भी नहीं की गयी कि बच्चे चुराए नहीं गए हैं बल्कि उनके अभिभावक उन्हें त्याग रहे हैं काफी संक्षिप्त रही।
आज गोद लेने से संबंधित कोई कानून नहीं है; खासकर अंतरदेशीय गोद लेने के संबंध में। ''हिन्दु गोदग्रहण और परवरिश अधिनियम'' दो हिन्दुओं के बीच के समझौते से संबंधित है। यह अधिनियम की अंतर्देशीय गोद ग्रहण को नियंत्रित नहीं करता है। महत्वपूर्ण न्याय संसोधन अधिनियम 2006 'गोदग्रहण' को पारिभाषित करता है (अ) 'गोदग्रहण' का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके अंतर्गत गोद लिए गए बच्चे को उसके वास्तविक अभिभावक से अलग किया जाता है और गोद ग्रहण करने वाले अभिभावक से संबंधित तमाम अधिकारों, सुविधाओं तथा उत्तरदायित्वों में वह शामिल हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 1982 में ही गोदग्रहण के नाम पर बच्चों के व्यापार को ध्यान में लिया था, जब एक सामाजिक कार्यकर्ता के प्रयास पर न्यायालय में 'अंतरदेशीय गोद ग्रहण' के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंत:देशीय और अंतरदेशीय गोद ग्रहण के संबंध में कुछ दिशा निर्देश तय किए गए। ये निर्देश अभावग्रस्त बच्चों और अभिभावकों द्वारा बच्चों को छोड़ने के संबंध में थे। अपने निर्देश में सर्वोच्च न्यायलय ने यह स्पष्ट किया कि बच्चे आईसीए को तभी दिए जाएंगे जब कोई भारतीय अभिभावक उपलब्ध नहीं होगा और भारतीय परिवार में बच्चों को भेजने के लिए एजेंसियां हर संभव प्रयास करेगी।
न तो सर्वोच्च न्यायलय का निर्देश और न ही केन्द्रीय गोदग्रहण संसाधन एजेंसी से संबंधित निर्देश पुलिस विभाग और समाज कल्याण विभाग को गोद ग्रहण किए गए बच्चों के संबंध में शिकायत की जांच में शामिल करता है। और अंतत: न्यायिक मुहर जहां बच्चे को अभिभावक और वार्ड अधिनियम के अंतर्गत विदेशी अभिभावक के नियंत्रण में भेज देता है इस कारण माफियाओं को बच्चों को जन्मस्थान से या देश से बाहर भेजने में आसानी होती है। जो गैरकानूनी है वह एक न्यायिक मुहर से कानूनी हो जाता है। वर्तमान संदर्भ में इन विभागों में समन्वय आवश्यक है।
चेन्नई उच्च न्यायालय ने सीबीआई को तीन बच्चों के कथित अपहरण की जांच तथा तीन महीने के भीतर शिकायत की रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया है। सीबीआई की जांच माफियाओं के- स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतरदेशीय संबंध, कार्यप्रणाली को उजागर कर सकता है।
लेकिन उन अभिभावकों का क्या होगा जो अपनी संताने खो चुके हैं? उन बच्चों का क्या होगा जो दूसरे परिवेश में बढ़ रहे हैं तथा जिनके वास्तविक अभिभावक उनकी राह देख रहे हैं? कोई बच्चों के देश के बाहर गोद ग्रहण में। उनके अपने समाज और संस्कृति को खोने की भावना के बारे में क्या कर सकता है? सभी इस प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं, इन ढेर सारी जिंदगी को बचानेवाले जबाब के हम आभारी हैं।
क्या हमारे केन्द्र और राज्य सरकारों के पास गायब बच्चों का आंकड़ा है? क्या वे साल्या और कथिरवेलु जैसे बच्चे खोए अभिभावकों के दुख के जिम्मेदार नहीं हैं? बच्चा गोद लेने में बच्चों के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए इसमें शामिल सभी एजेंसियों के लिए अनिवार्य है कि ऐसे कदम उठाएं जिससे गोदग्रहण के नाम पर बच्चों के व्यापार की संभावना को कम किया जा सके।
उधर नीदरलैंड की संसद ने कथिरवेलु के बच्चे के व्यापार की बात उजागर होने के बाद एक संसदीय समिति का गठन किया है और भारत से गोदग्रहण के तमाम संबंधित मामलों की जांच कर रही है।
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