इराकी शासन में फैला भ्रष्टाचार: अमरीका उलझा

इराकी शासन में फैला भ्रष्टाचार, इराक में अमेरिका की कारगुजारियों पर पानी फेर रहा है, जब से ही अमेरिकी कांग्रेस ने जनरल डेविड पेट्रायस और अमरीकी राजदूत रेयान क्रोकर से इराक के बारे में रिपोर्ट लाने और इराकी युध्द के लिए जार्ज डब्ल्यू बुश की 50 बिलियन डालर की मांग पर संसदीय बहस की तैयारी की, तभी से इराकी प्रधानमंत्री नूरी अल- मालिकी के नेतृत्व वाली सरकार के कामकाज विवादों के केन्द्र में आ गए हैं। बगदाद के अमरीकी दूतावास द्वारा तैयार किए गए एक गुप्त-मसौदे के अनुसार मालिकी सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बुरी तरह फेल हुई है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि मालिकी शासन ''भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को आंशिक रूप से भी लागू कर पाने में असमर्थ'' रहा है और रिपोर्ट में जो सबसे बुरी बात है कि 'मालिकी कार्यालय स्वयं ही शासन में भ्रष्टाचार, जालसाजी और अपराधों की जांच में अड़चनें पैदा कर रहा है।'

70 पेजों के इस विस्तृत रिपोर्ट में 'कमीशन ऑन पब्लिक इंटेग्रिटी' (सीपीआई), 'इंडिपेंडेंट इराकी इंस्टीटयूशन' और इराकी शासन की अन्य भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों के कार्यों का कच्चा-चिट्ठे का खुलासा किया गया है। यह रिपोर्ट 'सेंसटिव बट नोट क्लासीफाइड' और 'बगदाद के अमरीकी दूतावास से बाहर के अधिकारियों को वितरित करने के लिए नहीं' श्रेणी की है। रिपोर्ट में इस बात का ब्यौरेवार खुलासा किया गया है कि शासन में होने वाली चोरी और खामियों पर कोई न्यायिक कार्यवाही की नहीं जा रही है। हालात इस कदर बिगड़ हो गये हैं कि ''विभिन्न मंत्रालयों में भ्रष्टाचार तो आम बात हो गई है।''

रिपोर्ट इस बात को पूरी तरह रोशनी डालती है कि जहां एक ओर इराकी शासन भ्रष्टाचार और माफियाओं से घिर गया है, वहीं भ्रष्टाचार विरोधी जांचकर्ताओं की पहुंच से भी दूर हो गया है, परिणामत: कई नीतिगत परिणाम सामने आ रहे हैं। जैसे यह अमेरिकी समर्थन वाली सरकार के लिये जन समर्थन खोता जा रहा है और दुनिया भर से जुटाई जा रही आर्थिक सहायता विद्रोहियों और लड़ाकुओं तक पहुंच जा रही है।

इराकी मंत्रालयों के बारे में अमरीकी दूतावास के अधिकारियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि ''इंटीरियर मिनिस्ट्री (एमओआई) को तो यह तक नहीं पता कि इराक में कोई भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र भी है।'' ''डिफेंस मिनिस्ट्री में भ्रष्टाचार की जांच कार्यवाही बिल्कुल ही नकारा है।'' ''ट्रेड मिनिस्ट्री में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है'' उसमें भ्रष्टाचार की 196 शिकायतों में से केवल 8 ही न्यायालय तक पहुंची और उसमें भी केवल एक ही व्यक्ति को दोषी पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार ''स्वास्थ्य मंत्रालय का भ्रष्टाचार न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को बदतर किये जा रहा है, साथ ही सरकार के समर्थन के लिए भी खतरा बन गया है।'' तेल मंत्रालय में की गई जांच कार्यवाही में हेराफेरी की गई है, ''सीपीआई और मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल के पास तेल घोटालों के मामलों से निपटने के लिए साधन ही नहीं हैं।'' मंत्रालय के पास तेल उत्पादन से लेकर तेल के लिए यातायात व्यवस्था का कोई ब्यौरा तक नहीं है, क्योंकि संगठित माफियाओं का समूह ''बागियों, लड़ाकुओं, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और विदेशी खरीदारों के लाभ के लिए'' तेल चोरी कर रहा है।

जांच की लंबी फेहरिस्त में 'शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार विरोधी मामलों पूरी तरह से प्रभावहीन रहे हैं... 'मिनिस्ट्री ऑव वाटर रिसोर्सेज' इस भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष से ही बाहर है, क्योंकि यहां तो जालसाजी से निपटने के लिए कुछ किया ही नहीं गया है।... 'मिनिस्ट्री ऑव लेबर एंड सोशल अफेयर्स' भी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के प्रति आंखें बंद किए हुए है।

'इंवेस्टिगेटर्स एंड इम्यून फ्रॉम प्रोसीक्यूशन' के अनुसार 'मिनिस्ट्री ऑव ट्रांसपोटर्ेशन होलसेल' में शिया नेता मोक्तबा अल सद्र के समर्थन के कारण भ्रष्टाचार खूब फल-फूल रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मंत्रालय तो इस कदर माफियाआें और बागियों की गिरफ्त में हैं कि निरीक्षकों द्वारा गुप्त-सुरक्षाबलों की घेरे में रहकर ही भ्रष्टाचार की जांच कर पाना संभव रह गया है।

मिनिस्ट्री ऑव इंटीरियर -एमओआई के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि इस मंत्रालय में विभिन्न माफिया समूह ठीक उसी तरह काम कर रहे हैं जैसे ''रैकेटियर इन्फ्लूएंस्ड एंड करप्ट ऑर्गेनाइजेशन (रिको) परम्परागत ढंग से काम करता है। एमओआई एक 'कानूनी प्रतिष्ठान' है, जिसे संगठित माफियाओं ने अपहरण, लूट- खसोट और रिश्वत आदि अपराधों को अंजाम देने के लिए, अपना अड्डा बना लिया है, या यों कहिए कि अब उत्पाती ही पुलिस विभाग चला रहे हैं।

वर्तमान में 426 मामलों की जांच अब भी एमओआई संबंधी कागजी प्रतिक्रिया के इंतजार में बीच में लटकी पड़ी है, जिसे आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया गया है। इसमें एक ऐसी घटना का भी जिक्र किया गया है जिसमें एक सीपीआई अधिकारी ने उपराष्ट्रपति के भाई आमेर अल- हाशिमा की अक्टूबर, 2006 को हुई हत्या के दो चश्मदीद गवाहों का पता लगाया, लेकिन उसने उन्हें एमओआई के सामने नहीं पहचाना, क्योंकि उसे डर था कि कहीं उसकी और उन गवाहों की हत्या न कर दी जाए। (स्पष्ट है कि हत्यारे के इंटीरियर मिनिस्ट्री से संबंध थे) और जब हाल में जांच कार्यवाही को खत्म करने के लिए एमओआई इंटेलिजेंस का प्रमुख सीपीआई कमिश्नर से व्यक्तिगत तौर पर मिला तो यह बात और भी साफ हो गई कि एजेंसी के अन्दर के लोगों का हत्या से संबंध है।

रिपोर्ट के अनुसार डिफेंस मिनिस्ट्री के आंकड़े तो और भी ज्यादा चौंकाने वाले है, वहां तो इराकी सेना के लिए मुहैया बजट में 850 मिलियन डालर के घोटाले तक की किसी को परवाह नहीं है। रक्षा मंत्रालय में जांच के लिए पाए गए भ्रष्टाचार के 455 मामलों में से केवल 15 ही मुकदमे तक पहुंच पाए। विभाग में केवल 4 जांचकर्मियों को ही भ्रष्टाचार की जांच के लिए नियुक्त किया गया है और व्यापार मंत्रालय में तो माफिया समूह मुनाफे को आपस में बांट लेते हैं- एक अनाज चोरी करता है तो दूसरा ट्रकों में घोटाला करता है।

बगदाद के अमरीकी दूतावास की रिपोर्ट कहती है कि ''प्रधानमंत्री मालिकी का कार्यालय भ्रष्टाचार की स्वतंत्र जांच कराना ही नहीं चाहता। उसकी सरकार ने सीपीआई से संसाधनों को भी रोक दिया है और ऐसे बहुत से मामलों का भी पता लगाया गया है, जिसमें सरकार और राजनैतिक दबाव के चलते जांच और मुकदमों के फैसलों को शिया गुट के पक्ष में बदला गया है, इसमें मालिकी की 'दावा पार्टी' भी शामिल है।

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि मालिकी ने- आदिल मुहसीन अब्दुल्ला अल-कजा अली' नाम के जिस आदमी को अपना भ्रष्टाचार विरोधी सलाहकार नियुक्त किया है, उसने कहा है कि सीपीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसियों को मालिकी के नियंत्रण में होना चाहिए, इतना ही नहीं आदिल ने अमरीकी सलाहकारों की उपस्थिति में सीपीआई कमिश्नर पर न्यायालय में पहुंच चुके मुकद्मे को वापिस लेने के लिए दबाव डाला है। इन मुकदमों में शिया गुट के सदस्य शामिल थे। (रिपोर्ट के मुताबिक आदिल ने अपनी वित्तीय संपत्तियों का ब्यौरा देने वाला फार्म भी जमा करने से साफ मना कर दिया है।) मालिकी कार्यालय ने पूरी कोशिश की कि सीपीआई के पूरे नेतृत्व की जगह राजनैतिक लोगों को निुयक्त कर दिया जाए- यह सीपीआई अधिकारियों की मौत सरीखा ही है! क्या उन्हें अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा? या विद्रोहियों, लड़ाकुओं और माफियाओं की दया पर जीना होगा, जिसकी कारगुजारियों की उन्हें जांच करनी है।''

मालिकी ने भी अपने बनाए हुए एक कानून द्वारा भ्रष्ट अधिकारियों को सुरक्षा दे रखी है। इस कानून के अनुसार मंत्री से अनुमति लिए बिना उसके सचिवालय के अधिकारी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। अमरीकी दूतावास के भष्ट्राचार विरोधी कार्यदल द्वारा मार्च में तैयार किए गए एक मसौदे के अनुसार (इस मसौदे को सर्वप्रथम 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने प्रकट किया था।) सितम्बर 2006 और फरवरी 2007 के दौरान मंत्रियों ने इस कानून का इस्तेमाल कुल 35 मिलियन डालर के 48 भ्रष्टाचार के मामलों की न्यायिक जांच को रोकने के लिए किया। इसी समय अन्य अनेक अभियोगों में भी इसी प्रक्रिया को इस्तेमाल किया जा रहा है। दल ने उन दो मामलों का भी खुलासा किया जिनमें तेल मंत्रालय के कर्मचारियों ने उपकरणों के लिए 2.5 मिलियन डालर की बोली लगाई तो दूसरे मामले में मंत्रालय के अधिकारियों ने पेट्रोलियम के 33 ट्रक चोरी किए।

'सीक्रेट और कोन्फिडेशियल' के नाम से निशान लगे हुए 'द नेशन' द्वारा प्राप्त एक अन्य मसौदे के अनुसार पिछले वर्ष मालिकी कार्यालय ने 'कमीशन ऑन पब्लिक इंटेग्रिटी' को कोई भी ऐसा मुकदमा न्यायालय तक न ले जाने के आदेश दिये थे। इसमें इराक के राष्ट्रपति, इराकी प्रधानमंत्री या कोई भी वर्तमान या पूर्व मंत्री शामिल हो, ऐसे मुकदमों के लिए मालिकी की स्वीकृति लेना अनिवार्य था। अंजाम यहां तक पहुंचा कि सीपीआई के खिलाफ सरकारी दुश्मनी इतनी बढ़ गई कि एक समय इराकी सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट पर, सीपीआई लिंक पर अश्लील साइट जोड़ दी गयी थी। कमीशन ऑन पब्लिक इंटेग्रिटी का आंकलन करते हुए अमेरिकी दूतावास रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीआई के पास पर्याप्त कर्मचारी और प्रभावशाली वित्तीय संसाधनों की कमी है। जांचतंत्र में 34 मंत्रालयों और एजेंसियों की जांच के लिए मात्र 120 अन्वेषक ही हैं और रिपोर्ट के मुताबिक ये जांचकर्मी भी ''अपराध संबंधी मामलों को सुलझाने वाले जांचकर्मी की बजाय कागजी काम करने वाले क्लर्क की भूमिका ही निभाते हैं। ''सीपीआई भी आजकल तहकीकत करने वाली एजेंसी की बजाय अब निष्क्रिय भूमिका अदा कर रही है। ''मंत्रालयों के भीतर आपराधिक तत्वों का हिंसात्मक चरित्र भ्रष्टाचार की तहकीकात को और भी खतरनाक बना रहा है। मंत्रालयों के मुख्य कार्यालयों में सीपीआई कर्मचारियों को ''सशस्त्र दलों का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अधिकारियों और रिकॉर्ड तक पहुंच ही नहीं पाते।'' उनके और उनके परिवारों को निरंतर धमकियां दी जाती हैं। इससे ये बेचारे अपने कार्यालय में पड़े रहना ही ठीक समझते हैं। दिसम्बर 2006 में एक आदमी ने इराकी सरकार की एक इमारत के ऊपर से ही सीपीआई मुख्यालय पर गोलियां दागी और डयूटी पर तैनात 12 कर्मचारी मारे गए। इसके बाद ही सीपीआई ने रखरखाव और द्वार के लिये सशस्त्र लोगों की डयूटी पर तैनात कर दिया है।''

राधी अल-राधी, एक भूतपूर्व न्यायाधीश, जिसे सद्दाम हुसैन के शासन के दौरान न केवल सताया गया, बल्कि कैद भी कर लिया गया था, सीपीआई का मुखिया है। राधी के ही एक सहायक ने (नाम गुप्त रखने की शर्त पर) बताया कि राधी एक सुरक्षित घर में अपने मुख्य अन्वेषक के साथ रहने के लिए मजबूर हो गए हैं। राधी ने इराक के पुनर्निर्माण के लिये विशेष इंस्पेक्टर जनरल स्टुअर्ट बोवेन के साथ काम किया है जो ठेकेदारों और अमरीकी अधिकारियों के बीच होने वाले घोटालों की जांच करते हैं, भूतपूर्व रक्षामंत्री हाजिम शलान और विद्युतमंत्री ऐहम अल्सामारे उनका निशाना बन चुके हैं। राधी को कमजोर करने के लिए आरोपों की बौछार की जा रही है। एक साल पहले मालिकी कार्यालय ने एक पत्र में लिखा कि सीपीआई हजारों डालर खर्च नहीं कर सकती, इसीलिए हो सकता है कि राधी भ्रष्ट हो। लेकिन अमरीकी दूतावास की रिपोर्ट के अनुसार ''सीपीआई के ऑडिट की तुरंत जांच की गई। ''लुलाई में, इराकी संसद ने राधी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का विचार किया, उसके खिलाफ भ्रष्ट अधिकारियों से संबंध रखने जैसे भ्रामक प्रचार किए गए- लेकिन विधायकों ने प्रस्ताव पर वोट देने से इंकार कर दिया। अगस्त के अंत में, राधी अमरीका आए। एक सहायक के अनुसार वह वहीं रहने का मन बना रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भ्रष्टाचार ही इराकी सरकार की सबसे बड़ी बाधा है, अपने स्वतंत्र और स्थिर अस्तित्व को बनाए रखने के लिए इस पर काबू पाना जरूरी है।'' यदि वर्तमान इराकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाती तो यह जनता का समर्थन भी खो सकती है। इतना ही नहीं, रिपोर्ट लेखक यह भी स्वीकार करते हैं कि यदि भ्रष्टाचार यूं ही चलता रहा तो हिंसक समूहों को वित्तीय सहायता मिलती रहेगी, जिसका हमारी सेना को सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी दूतावास भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रम के लिए 'अनिश्चित' साधन जुटा रहा है। अमरीकी दूतावास के एक कर्मचारी ने बताया कि यह सब 'एक ढोंग है'। दूतावास में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए बजट शून्य है। कौन बेवकूफ इसे रिलीज करना चाहता है? इससे तो उन सैनिकों के परिवार वाले क्रोधित हो जाएंगे जो मालिकी सरकार को एक मौका देने के लिए इराक में लड़ रहे हैं। इराक और मालिकी सरकार के लिये कांग्रेस के 18 निर्देशों में से भ्रष्टाचार रोकना नहीं है। लेकिन यह तीखी रिपोर्ट- जिसमें अधिकारी भी अपने बाल नोंच रहे हैं- यह कहती है कि भ्रष्टाचार खत्म किया जाना चाहिए। इराकी सरकार में दूर तक फैला भ्रष्टाचार इराक में अमेरिका के लिये खतरा बन रहा है, फिर भी बुश प्रशासन इसे रोकने के लिये कुछ नहीं कर रहा है।
साभार - समकाल, अनुवाद : मीनाक्षी अरोड़ा

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