जमीने बंदूक की जोर से छीनी जा रही हैं - सुमित सरकार

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ नंदीग्राम में औरतों और पुरूषों से लेकर छोटे बच्चों में भी भयानक रोष काफी पहले से है। गांव में पिछले डेढ़ साल से ही भूमि कब्जाने की अफवाह फैली हुई थी, जिसके चलते लोगों ने इसकी खिलाफ़त के लिए खुद को संगठित कर लिया था। पंचायतों और ग्रामसंसदों ने उनसे इस मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं की। जब 'हल्दिया डेवलपमेंट अथारिटी' ने सलेम ग्रुप के सेज बनाने के लिए भूमि कब्जाने का नोटिस जारी किया, तब स्थानीय लोग 3 जनवरी को कालीचरणपुर पंचायत कार्यालय पर सूचना मांगने पहुंचे; तो प्रधान ने कहा कि उनके पास कोई भी सूचना नहीं है। लोग शान्तिपूर्वक वहाँ से लौट गए। इसके कुछ समय बाद ही पुलिस ने बैटन, आंसू गैस और गोलियों से स्थानीय लोगों पर आक्रमण किया जिसमें चार लोग घायल हुए। एक बड़ा जमावड़ा सड़कों पर उतर आया। महिलाएं हाथ में ञ्रेलू उपकरण जैसे चाकू आदि ही लेकर निकल पड़ीं, करीब एक घंटे तक पुलिस के साथ आमने-सामने की मुठभेंड़ हुई। भूटामोर गांव के मौके पर मौजूद स्थानीय लोगों के अनुसार बचकर भागने की कोशिश में पुलिस कीे जीप एक लैम्प पोस्ट से जा टकराई, जिससे शार्ट सर्किट होने की वजह से जीप बुरी तरह जल गई और एक पुलिसकर्मी तालाब में जा गिरा तो दूसरा सड़क पर। लोगों ने पुलिसवालों को मार-मारकर उल्टे पाँव भगा दिया। भगदड़ में वे अपनी एक राईफल भी गाँव में छोड़ गए, जो बाद में स्थानीय पुलिस थाने में जमा कर दी गई। पुलिस और माकपा कैडर दोबारा गाँव में न आ सकें इसके लिए लोगों ने नाकाबन्दी कर दी, पुल गिरा दिया और सड़कों को भी खोद दिया।
नंदीग्राम और खेजुरी गाँव के बीच सीमा पर पुलिस ने कैम्प लगाया हुआ था। 6 जनवरी को करीब पांच बजे पुलिस ने कैम्प को खाली कर दिया। सोनचुरा और स्थानीय लोगों के अनुसार 'बड़ी संख्या में अजनबी आए और इन कैम्पों में डेरा डाल लिया। करीब 3 बजे माकपा के संकर सामन्त के ञ्र से आने वाली बम और गोली की आवाज से लोग नींद से जाग गए और जैसे ही ञ्टनास्थल पर पहुँचे तो वहां गांव के दो युवकों- भरत मंडोल और शेख सलीम की लाशें मिलीं। जब तेरह वर्षीय विश्वजीत मंडोल की लाश मिली तो गुस्साए लोग सामंत के ञ्र पहुंचे और उसे मार डाला और तभी से वे लोग माकपा की बदले की हिंसा के आतंक में जी रहे हैं।
मुस्लिम औरतों ने भी आगे बढ़कर कहा ''जमीं आमरा छरबू'', ''चाहे हमारे बच्चे और पति कुर्बान हो जाए, हम लगातार संघर्ष करेंगे, वे कितने पुलिस वालों को ला सकते हैं? हमारे काश्तकारों का क्या होगा? हमने माकपा को सिंहासन पर बैठाया और वही हमें इनाम में डंडे दे रही है।'' राजरामचक में माकपा के स्थानीय कार्यालय को नष्ट करते उन्होंने कहा कि ''यह अपराध का ञ्र है, इसे हमने बनाया था आज हम ही खत्म कर रहे हैं। अब वे सरकार और उद्योगपतियों के इस झूठे झांसे में नहीं आने वाले कि वे बरोजगारों को रोजगार और अनपढ़ों को शिक्षा देंगे।''
अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि सारी जमीन उद्योगों के लिए इस्तेमाल होगी या फ़िर पॉश कालोनियों के लिए भी इस्तेमाल की जाएगी। इससे पहले भी 1977 में नंदीग्राम ब्लाक एक में जहाजों की मरम्मत के लिए जेलिंघम योजना के लिए चार सौ एकड़ जमीन कब्जाई गई थी। जिससे 142 परिवारों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया था, पांच साल बाद परियोजना रोक दी गयी और वह जगह आज भी खाली पड़ी है। न तो हल्दिया में न ही जलिंघम में कोई पुनर्स्थापन किया गया, न ही किसी को कोई मुआवजा दिया गया और नौकरी के नाम पर गांव के केवल कुछ लोगों को साइट पर लगा दिया गया था।
अपनी सफाई में माकपा के जिला समिति कहता है कि ''3 जनवरी को लोगों ने तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर पुलिस पर पत्थर फेंके और जीप को जला दिया था। उसके बाद ही पुलिस ने गोली चलाई और फ़िर 7 जनवरी को तृणमूल कांग्रेस के कहने पर ही संकर सामन्त को भी मार डाला।'' स्थानीय माकपा सांसद लक्ष्मण सेठ का कहना है कि 'वह बिल्कुल सीधा और किसी को नुकसान न पहुंचाने वाला आदमी था। लोगों ने उसकी गन भी उससे छीन ली, उसके घर से कोई गोली नहीं चलाई गई असल में गांववाले तृणमूल कांग्रेस के ही लोग हैं। वामपंथी होने का तो केवल नाटक करते हैं।''
माकपा की रिपोर्ट के अनुसार गाँव की जमीन एक फसली है, ऐसा लगता है कि शायद उन्होंने सत्तर के दशक में किए गए सर्वे की रिपोर्ट ही देखी है, उसके बाद तो जमीन की उर्वरता बढ़ाने के लिए अनेक आवश्यक प्रयास किये जा चुके हैं इसलिये अब स्थानीय लोगों के अनुसार जमीन चार से पाँच फसलें देती है। इसके आलावा हस्तकला और अन्य सहायक रोजगारों में भी लोग लगे हुए हैं। गांव में चारों तरफ़ हरियाली दिखाई दे रही थी।
किसी की भी यह दलील बेमानी है कि सूचना दी जाएगी, सिंगूर के लोगों को भी यह समाचार पत्रों से ही मालूम हुआ कि उनकी जमीने टाटा मोटर्स के कारखाने के लिए ली जानी है। न तो कोइ सूचना न ही पंचायत की कोई बैठक हुई। उन्होंने कोई मुआवजा लेने से भी इंकार कर दिया और बताया कि यह जमीन की असल कीमत से बहुत कम था। सिंगूर और नंदीग्राम दोनों ही मामलों में हुआ कि मुआवजे की सूची में बटाईदारों और खेतिहर मजदूरों को तो गिना ही नहीं गया। केवल संपत्ति की कीमत है, श्रम की नहीं। यह बात महत्वपूर्ण है कि जमीन कब्जाने के लिए पुलिस के हिंसक कदम के प्रतिरोध में भी सिंगूर के लोगों ने हिंसा से काम नहीं लिया, बल्कि शांतिपूण्र्
ा सत्याग्रह किया।
25 सितंबर और 2 दिसंबर 2006 को जनता के शांतिपूर्ण विरोध के बावजूद भी पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई थी। प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, निजी वाहनों को जहां-तहां रोककर तलाशी ली गयी। पुरूष पुलिसकर्मियों ने औरतों के साथ बद्तमीजी की और उन्हें गालियां भी दीं, छात्रों और गाँववालों पर लाठियों भी बरसाई गयीं। इतना ही नहीं, एक दो-ढाई साल की नन्हीं सी मेरी बच्ची को भी कुछ दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया। उससे उसका आहार तक छीन लिया गया। कई गांव वालों पर खतरनाक हथियार रखने का आरोप लगाया गया।
कोलकाता में तो धारा 144 न होते हुए भी भी लोगों को गिरफ्तार किया गया, प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया गया और शांन्तिपूर्ण विरोध करने के बावजूद भी जेल में बंद कर दिया गया। 18 दिसंबर को पाई गई एक लड़की तापसी मालिक के लाश का दृश्य तो और भी चौंकाने वाला था, क्योंकि उस लड़की की हत्या बड़ी निर्ममता से की गई थी, जबकि वह युवती सामाजिक आंदोलनकारी थी। उसके बाद पूछताछ के लिए पुलिस ने जो रवैया अपनाया, वह तो बिलकुल ही बेहूदा था। किसानों ने अपनी जमीनों के चारों ओर किलेबन्दी कर रखी थी, वे हर तरह से पुलिस से निपटने के लिए तैयार थे, चाहे इसके लिए उनकीे अपनी जान ही देनी पड़े।
हमने यह पाया कि किसानों का विरोध उचित है। उद्याेंगों से बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हो सकते। कृषि भूमि का उद्योेंगों के लिए इस्तेमाल न केवल पर्यावरण का नुकसान होगा, बल्कि गरीब बेघर हो जायेंगे। इसलिए इसके लिए वैकल्पिक स्थानों का प्रयोग किया जाना चाहिए। केवल अमीरों की माँगों को पूरा करने से विकास नहीं होने वाला।
उपर की विवरणों से स्पष्ट है कि 14 मार्च की घटना की पृष्ठभूमि तो काफी पहले से बन गयी थी। ऐसे में भूमि अधिग्रहण नीति पर पुन: विचार किया जाना चाहिए, सभी क्षेत्रों के लोगों से बात करके, राय लेकर ही नीति बनाई जानी चाहिए। प्रशासकों को औद्योगीकरण के लिए वैकल्पिक स्थानों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, न कि गरीबों को उजाड़ने के बारे में। विकास के वैकल्पिक रूपों के बारे में जनता से परामर्श करने की आवश्यकता है, अन्यथा ग्राम्य गृह युध्द और भी भयानक हो सकता है।

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