आप्रवासियों के लिए निजी जेल - दीपा फर्नाण्डीज, प्रस्तुति-अफलातून

जेलों का निजीकरण? जी हाँ। कम्पनियों द्वारा संचालित जेलें, यह एक सच्चाई है। अमेरिकी पत्रकार दीपा फर्नाण्डीज़ की ताजा किताब टार्गेटेड में अमेरिका की निजी जेलों और जेल-उद्योग का तफ़सील से विवरण है, जो आजकल आप्रवासियों से भरी हुई हैं। -संपादक

दक्षिण -पश्चिम अमेरिका में मेक्सिको से सटा एक राज्य है, एरिज़ोना। एरिज़ोना में एक छोटा कस्बा है 'फ्लोरेन्स'। अमेरिका में निजी जेलों की हुई वृध्दि का एक केन्द्र यह कस्बा भी है। नागफनी, लाल चट्टानें और पहाड़ों के करीब से गुजरने वाले एक-लेन के राजमार्ग से पहुँचा जाता है, इस रेगिस्तानी जेल-कस्बे में।
फ्लोरेन्स में एरिज़ोना राज्य का शासकीय कारागार, निजी सुरक्षा कम्पनियों द्वारा संचालित दो कारागार और स्वदेश सुरक्षा विभाग (होमलैण्ड सिक्यूरिटि डिपार्टमेंट) द्वारा संचालित आप्रवासियों के लिए बना एक कारागार है। इस कस्बे में चलने वाले एकमात्र जनहित कानूनी सहायता केन्द्र की संचालिका अधिवक्ता विक्टोरिया लोपेज़ कहती हैं, ''यहाँ की अर्थव्यवस्था जेल-केन्द्रित है और जनसाधारण की सोच और चिन्तन भी जेल-केन्द्रित है।'' ज्यादातर स्थानीय बाशिन्दे पुश्तों से जेल-धंधा से जुड़े रहे हैं।
अमेरिका सरकार द्वारा आन्तरिक सुरक्षा उपाय लागू किए जाने के बाद जेलों में आप्रवासियों की तादाद में अभूतपूर्व वृध्दि हुई है, नतीजतन निजी जेल-उद्योग की भी काफी वृध्दि हुई है। न्यूयॉर्क पर हुए 11 सितम्बर के हमलों के परिणामस्वरूप अमरीकी जेलों में बन्द कुल आबादी में आप्रवासियों का तबका सबसे तेजी से बढ़ा है । वित्तीय वर्ष 2005 में साढ़े तीन लाख से ज्यादा आप्रवासियों को अदालतों का सामना करना पड़ा। इनमें अमेरिका आने के बाद किसी भी अपराध में शामिल न रहने वालों यानी निर्दोष लोगों की संख्या भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। 2005 में इस श्रेणी में 53 फ़ीसदी लोग थे जबकि वर्ष 2001 में ऐसे लोगों की तादाद 37 फ़ीसदी थी -डेनवर पोस्ट की रपट।
खदानों से जेल तक
इस देहाती-से कस्बे की स्थानीय आबादी में काफी लोगों के परिवार का कोई न कोई सदस्य चाँदी की खदानों से कभी न कभी जुड़ा रहा था। धीरे-धीरे चाँदी की खदानों का काम मन्दा पड़ता गया। इस कस्बे में फिर जान आयी-जब देश की सबसे बड़ी जेल-कंपनियों में एक टेनेसी स्थित करेक्शन कॉर्पोरेशन ऑॅफ़ अमेरिका (सीसीए) ने फ्लोरेन्स में दो कारागार स्थापित किए। आप्रवासी कैदियों की बाढ़ ने कस्बे में रोजगार के नए अवसर सृजित किए। वहाँ की स्थानीय अर्थव्यवस्था इसी के बूते चल निकली। कस्बे से सटे बाहरी इलाकों में नए-नए आवासीय कालोंनियां बनने लगीं और इनके पीछे-पीछे फुटकर व्यवसाय की बड़ी कम्पनी वॉलमार्ट का आगमन भी हुआ।
सन् 2000 और उसके बाद के समय में निजी जेल उद्योग पर एक अरब डॉलर का कर्ज था। सीसीए के शेयर 93 फ़ीसदी तक गिर गए थे। उस दौर की गिरावट के कारण बताते हुए अमेरिकन प्रॉस्पेक्ट नामक राष्ट्रीय पत्रिका ने लिखा कि निजी जेल कंपनियों के कैदियों के साथ दर्ुव्यवहार आदि के कारण इन पर जुर्मानों की वजह से ये काफी घाटे में पहुंच गयीं थीं। इन्हीं परिस्थितियों में न्यूयॉर्क पर 11 सितम्बर 2001 के हमले हुए। सरकार के निशाने पर गैर-नागरिक आप्रवासी आ गए। आप्रवासी-समुदाय में थोक में गिरफ्तारियाँ होने लगीं, बिना दस्तावेजों के सरहद पार करने वालों पर चलने वाले मुकदमे बढ़ गए तथा आपराधिक और आतंकी आरोपों को तय करने तक लोगों को कैद में रखने के आप्रवासन कानून के प्रावधान का उपयोग बढ़ गया।
अमेरिका सरकार का मानना है कि जिन लोगों की कोई कानूनी हैसियत नहीं है उनके देश में घुल-मिल जाने को रोकने का सबसे अच्छा उपाय उन्हें कैद कर देना है। स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग के महानिरीक्षक कार्यालय की सन 2004 की एक रपट का निष्कर्ष था कि इस बात के पूर्ण प्रमाण हैं कि- किसी परदेशी के देश-निकाला के पहले उसे निरुध्द रखना जरूरी है। बुश प्रशासन द्वारा गैर-नागरिकों को कैद में डालने की रफ्तार और विस्तार ऐसे हैं कि आप्रवासियों को कैद में रखने के लिए जगह की जरूरत असाधारण ढंग से बढ़ गई है।
कुप्रबन्ध और कलंक के इतिहास के बावजूद निजी जेल उद्योग की कंपनियों को नई जेलों के ठेके लगातार मिलते आए हैं। इनसे जुड़ी समस्याएं भी बदस्तूर जारी हैं। आप्रवासी बन्दियों के वकील अब भी अपने मुवक्किलों से दर्ुव्यवहार का मुद्दा उठाते हैं। इन वकीलों का आरोप है कि कंपनियाँ बन्दी रक्षकों को प्रशिक्षण देने के खर्च से तथा बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के मद में से पैसा बचाती हैं। सरकार ने इन जेलों के प्रशासन पर निगरानी और नियंत्रण रखने में कोताही बरती है। जेल प्रशासन द्वारा श्रम-शोषण की कारगुजारियों और बन्दियों को दी जाने वाली टेलिफोन सुविधा में कटौती का सरकार अनुमोदन करती है।
इराक के युध्द में शामिल रहे पूर्व सैनिक फिलिप लुई दर्ुव्यवहार के प्रकरणों को कुछ तफ़सील से बताते हैं। वे हैती के मूलनिवासी हैं, पाँच वर्ष कि उम्र से अमेरिका में ही रह रहे हैं। इन्होंने फौज में काफ़ी शीञ््रता से तरक्की की। युध्द के दौरान मिली पदोन्नति के आधार पर पुरस्कृत होने के लिए इराक से लौट कर इन्होंने प्रयास किया। बजाय पुरस्कृत करने के अधिकारियों ने उनके दस्तावेज खंगालने शुरु किए तब पाया कि कभी उसे सैन्य अदालत द्वारा 37 दिनों की सजा दी गई थी । सरकार ने इस तथ्य के आधार पर उसके विरुध्द देश-निकाले का मामला शुरु कर दिया और लुई को सीसीए संचालित सैन डिएगो 'सुधार गृह' में पटक दिया। वहाँ के हालात और बर्ताव से वह भयभीत हो गए। कहते हैं ''बन्दी रक्षक हम पर ऐसे चीखते-चिल्लाते थे, मानो हम बच्चे हों। ऐसा न करने के लिए उन्हें कहने पर वे कुछ दिनों के लिए हमे 'तन्हाई' में रखने की धमकी देते और अक्सर यह धमकी लागू भी कर दी जाती थी । दो लोगों के लिए बने 12'ग् 7' फ़ुट की कोठरी में तीन लोगों को रखा जाता था। ऐसा अक्सर होता था जब एक-दो बन्दियों को सबक सिखाने के चक्कर में सभी 105-115 अन्तेवासियों को खामियाजा भुगतना पड़ता था।''
2003 में स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग के महानिरीक्षक की एक रपट में विभिन्न जेलों में बन्द आप्रवासियों के प्रति बर्ताव की कड़ी निन्दा की गयी है; रपट में माना गया है कि बन्दियों के बुनियादी अधिकारों के रोजमर्रा हनन, शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न, सेहत और चिकित्सा से वंचित किया जाना, जेलों में क्षमता से ज्यादा बन्दियों का होना तथा स्नान-शौचादि की सहूलियत का अभाव गौरतलब हैं।
समस्याओं की लम्बी फेहरिस्त के बावजूद सीसीए द्वारा जेल निजीकरण को बढ़ावा देना और नए-नए अनुबन्ध हासिल करना बदस्तूर जारी है। 'डयूक विश्वविद्यालय की विधि-शोध-पत्रिका में शैरॉन डोलोविच ने लिखा है कि- 'निजी जेल कंपनियाँ विधायकों के बीच 'लॉबींग' करने तथा निजीकरण के एजेण्डा के हक में विधायकों की गतिविधियों के लिए चन्दा देने में माहिर हैं।' सीसीए का धन्धा अच्छा चल रहा है । अपनी जेलों में वे जितने ज्यादा लोगों को ठूँसेंते हैं, उतना धन्धे के लिए अच्छा है।
वॉकेनहट
फ्लोरिडा स्थित वॉकेनहट एक प्रमुख सुरक्षा कंपनी है। 11 सितम्बर के न्यूयॉर्क के हमलों के बाद के वर्षों मर्ें यह कंपनी भी काफ़ी फली-फूली है। अपने बुरे रेकॉर्ड के बावजूद कई लाभप्रद सरकारी अनुबन्ध पाने में यह सफल रही है। सन् 2001 के पहले सीसीए की भाँति वॉकेनहट कम्पनी भी सब तरह के बन्दी-दर्ुव्यवहार काण्डों के केन्द्र में थी : अल्पवयस्क बन्दियों से सेक्स के दौरान बन्दी रक्षक पकड़े गए थे, भीषण दर्ुव्यवहारों की ञ्टनाएं आम थीं तथा उनके सुधार गृहों में मृत्यु की ञ्टनाएं असंगत तौर पर अधिक हुई थीं। दर्ुव्यवहार कि इन ञ्टनाओं के प्रति वॉकेनहट के मुख्य कार्यपालक अधिकारी जॉर्ज ज़ोले का रवैया अत्यन्त हल्का और छिछोर रहा है। वॉकेनहट संचालित एक बाल सुधार गृह में एक 14वर्षीय लड़की से लगातार बलात्कार का मामला सीबीएस टेलिविजन ने उद्ञटित किया था, दो गार्ड इस मामले में दोषी पाए गए थे। इस पर ज़ोले ने कहा, 'यह एक बेरहम धन्धा है। आखिर इन जेलों में कैद बच्चे किसी धार्मिक पाठशाला के सीधे-सादे विद्यार्थी तो नहीं हैं।'
लागत की बचत
अमेरिकी सरकार के लोगों का दावा है कि जेलों के निजीकरण से लागत काफी कम हो जाती है। अमेरिकी सामान्य लेखागार कि 1996 की एक रपट के निष्कर्ष में हाँलाकि कहा गया है कि इस दावे को पुष्ट करने के स्पष्ट साक्ष्य नहीं पाए गए। जेल-कंपनियाँ अन्य कंपनियों की तुलना में निश्चित फ़ायदे में रहती हैं। श्रम के मामलों के मद में ये कंपनियाँ ढ़ेर सारा पैसा बचा लेती हैं, जो अन्य परिस्थितियों में गैर कानूनी माना जाता है। बन्दियों को सभी जेलों में काम के बदले अत्यन्त कम मजदूरी दी जाती है। इस मामले में आप्रवासियों के लिए बनीं जेलें बद्तर होती हैं। स्वराष्ट्र-सुरक्षा विभाग का दिशा निर्देश है कि गैर-नागरिक बन्दियों को रोज एक डॉलर से अधिक नहीं दिया जाएगा। इस प्रकार जेल-कंपनियों को मामूली लागत पर दरबान, सफ़ाईकर्मी, मिस्त्री, धोबी, रसोइए और माली मिल जाते हैं ।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता इसाबेल गार्सिया आप्रवासियों को बन्दी बनाने के अभियान की चर्चा करते हुए कहती हैं, जेल-उद्योग के ये संकुल 'ड्रग्स के खिलाफ़ जंग' के दौरान पहले-पहल परवान चढ़े थे। 'ड्रग्स के खिलाफ़ जंग' अत्यन्त सहजता से 'आप्रवासियों के खिलाफ़ जंग' में तब्दील हो गयी है। आप्रवासियों को कैद रखने में काफ़ी कमाई है ।' गार्सिया आगे बताती हैं कि इस उद्योग की अत्यन्त बलवान-धनवान लॉबी की पहुँच और संञ्ीय सरकार से इनके मजबूत रिश्तों की वजह से इस उद्योग में बहार आई हुई है। गार्सिया को इस बात कि चिन्ता है कि लाभ कमाने की उत्प्रेरणा से हो रही गिरफ्तारियां तो आप्रवासियों में अपराधीकरण की वृत्ति को बढ़ाएगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर स्वदेश सुरक्षा विभाग ने निजी उद्योग की अगुवाई में ऐसी व्यवस्थाएं और प्रक्रिया लागू की हैं जिनके द्वारा यह आभास दिया जा रहा है कि इनसे अमेरिका को भविष्य में होने वाले आतंकी हमलों से सुरक्षा मिलेगी। फिर भी कई मामलों में ऐसे आप्रवासी और गैर-नागरिक इस जाल में फँस जाते हैं जिनका आतंकवाद से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। (पीएनएन)

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