लोक अदालतें : खट्टे-मीठे अनुभव

लोक अदालतों का मुख्य लक्ष्य विवाद के त्वरित निर्णय और दोस्ताना समझौते के साथ-साथ विवादित पक्ष तथा न्यायालय के समय और पैसे की बचत भी है। लेकिन राज्य के उद्देष्यों को पूरा करने में लोक अदालतों के लक्ष्यों की सफलता अभी भी विवादित ही है। फैजल ने लोक अदालतों के सार्थकता और प्रभाव की जानकारी के लिए कष्मीर के कानूनी मामलों से जुड़े कुछ लोगों से बात की। उनकी राय-विचारों का सारांष यहां प्रस्तुत है :

मीर सैयद लतीफ (कश्मीर बार एसोसिएशन के सदस्य)
जन अदालतों की स्थापना का उद्देष्य मुकदमों में लगनेवाले समय को कम करना तथा सुविधा में वृध्दि करना और जल्दी निपटारा करना था। लेकिन लोक अदालतों को लेकर आम लोगों में जागरूकता की कमी है जो इस उद्देष्य को हासिल करने में एक रूकावट है। इसके अलावा वकील अपने मुवक्किल से मामले को लोक अदालतों में ले जाने से पहले सलाह नहीं करते जिसके कारण मुकदमों के निपटारे की गति काफी धीमी है। वकीलों को चाहिए कि वे संबंधित पक्षों को एक सद्भावपूर्ण समझौते के लिए प्रेरित करें और मुकदमों के निपटारे को आसान बनाएं।

हालांकि लोक अदालतों ने भूकंप राहत के मामले में काफी सफल रही थीं लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग षिकायतें रह गयीं हैं कि उनकी मांगों की पर्याप्त रूप से पूर्ति नहीं की गई। जहां तक लोक अदालतों के कार्य के लिए बजट में आवंटित राषि की मंजूरी की बात है, जो विधि और न्याय मंत्रालय से संबंधित है, को यह देखने की आवष्यता है कि लोक अदालतों के वित्तीय पक्ष के बारे में अलग से विचार करके कि क्या इसका खर्च नियमित अदालतों के खर्च से ज्यादा जो नहीं है।

एजाज बदर (कश्मीर बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव)
लोक अदालत में विवाद को ले जाने से पहले संबंधित पक्षों को ंआपस में सलाह कर लेनी चाहिए। सामान्यतया लोक अदालतों में मामलों के निपटारे की उच्च दर ज्यादातर वाहन दुर्घटना में देखी जाती है, दरअसल इतने मात्र के लिए लोक अदालतों की आवष्यकता नहीं है। लोक अदालतों की वास्तविक सफलता तो महत्वपूर्ण मुकदमो के मुकदमेबाजीं के निपटारे में है जो वास्तव में होता नहीं है।


सबीर अहमद बट (कश्मीर बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव)
वकीलों को लोक अदालतों में करने के लिए कुछ विषेश होता नहीं है क्योंकि संबंधित पक्ष स्वयं ही कानूनी-बेंच की मदद से निर्णय पर पहुँच जाते हैं। यह जरूरतमंदोें के लिए षीघ्र और सस्ता रास्ता है, लेकिन जरूरत यह है कि लोक अदालत में विवादों के निर्णय में वरीश्ठ वकीलों को भी सहायता करनी चाहिए।

मो अयूब शेख (कार्यकर्ता)
विवादों के षीघ्र निर्णय और न्याय दिलाने में लोक अदालत एक सफल प्रयास सिध्द हुआ है। लोक अदालतों में आपराधिक मुकदमे को षामिल करने के लिए कानून में संसोधन की आवष्यकता है, जिससे आपराधिक मुकदमों के षीध्र निर्णय में भी मदद मिलेगी ।

राहिला (कानून अधिकारी, राज्य विधान सेवा प्राधिकरण)
राज्य विधान सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987(एसएलएसए) मुकदमें के पहले और मुकदमे के बाद के मामलों की सुनवाई करता है। लेकिन लोगों मे पर्याप्त जागरूकता के अभाव के कारण ज्यादातर विवादित मामले लोक अदालतों में ले जाये जाते हैं। ज्यादातर मामले जो कष्मीर जिले से संबंधित हैं वे वाहन दुर्घटना के हैं जिसमें क्षतिपूर्ति के रूप में करोड़ों रूपये का भुगतान हुआ है। इसके अलावा ढेरों आपराधिक और श्रम विवादों का निपटारा भी लोक अदालतों में किया जाता है। लोक अदालतें वैवाहिक मामलों से जुड़े विवादों में समझौते कराने, परिवरिष को सषक्त बनाने और निगरानी तथा अभिभावकत्व के समझौतों में काफी सफल रहा है। इसने ढेर सारी महिलाओं को उनके वैवाहिक अधिकारों को प्राप्त करने में कानूनकी लंबी प्रक्रिया से निजात दिलाया है। लोक अदालतों को भूकंप पीड़ित क्षेत्र में सहायता राषि के वितरण में भारी सफलता मिली है जहां क्षतिपूर्ति की राषि लोक अदालतों के माध्यम से षीघ्र वितरित हो गई । जबकि कष्मीर के हाल में आए बाढ़ में लोक अदालतों को नहीं बुलाया गया क्योकि कोई आवेदन नहीं था। नियमित कार्यों की तरह एसएलएसए महीने में दो बार लोक अदालत बुलाता है ।
लोक अदालतों में विवादों के निर्णय में वकीलों की भूमिका सराहनीय है, अगर वे थोड़ा और ज्यादा सहयोग करें तो निपटारे की गति और तेज हो जाएगी।

पुनीत (नगर मजिस्ट्रेट, श्रीनगर)
लोक अदालतों की वास्तविक सफलता न्यायालय को ठोस और गंभीर मुकदमों के बोझ को कम करने में है जो लोक अदालतों द्वारा किए जाने वाले कार्यों का मुख्य अंग है। वैवाहिक मामलों से संबंधित निर्णयों में निपटारे की दर 30 प्रतिषत से कम है। इन मामलों में लोक अदालतों की कम प्रभावषीलता इस बात का संकेत देता है कि मामलों को लोक अदालत में ले जाने से पहले आवष्यक जमीनी कार्य- जैसे संबंधित पक्षों से विस्तृत बातचीत तथा निपटारे की संभावना का विष्लेशण नहीं किया जाता है। इसके अलावा यह भी ज्यादा उपयुक्त होगा कि मामले की सुनवाई कोई वास्तविक न्यायाधीष करे जब मामले लोक अदालत में पुन: लाए जाएं ताकि उसे मामले की सुनवाई में प्रगति का ध्यान रहे और निर्णय की संभावना ज्यादा हो।

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