आफशोर बैंकिंग में खेल रही हैं घातक खेल - पीटर जिलेप्सी

(जैसे-जैसे बड़ी कम्पनियाँ और अमीरजादे अपनी दौलत आफशोर बैंकों के कर स्वर्गों (टैक्स हैवन्स) में जमा कर रहे हैं वैसे-वैसे दुनिया भर के देशों को भारी राजस्व की हानि उठानी पड़ रही है। 500 अरब डॉलर की हानि प्रतिवर्ष होने का अनुमान है। यह राशि संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलेपमेंट लक्ष्यों को हासिल करने के लिये जरूरी धनराशि से भी ज्यादा है। दुनिया भर के नागरिक संगठन इस आफशोर वित्ताीय तन्त्र को चुनाती दे रहे हैं। इस वित्ताीय तन्त्र पर एक छोटा सा खोजपरक लेख ओटावा (कनाडा) स्थित इण्टरनेशनल सोशल जस्टिस आर्गेनाइजेशन से जुड़े शोधकर्ता पीटर जिलेप्सी ने लिखा है जो थर्ड वर्ल्ड इकानामिक्स के अंक नं.- 407, 16-31 अगस्त 07 में प्रकाशित हुआ है। इसी लेख का कुछ हिस्सा यहाँ हम दे रहे हैं- सम्पादक)
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बड़े पैमाने पर बड़ी कम्पनियों और अमीर लोगों द्वारा कर-चोरी और कर-परित्याग से उत्पन्न हुए खतरे के प्रति दुनिया भर के नागरिक चिंतित हैं। आफशोर टैक्स हैवन्स (कर स्वर्ग) इस समस्या की जड़ में हैं। इन टैक्स हैवन्स के कारण देशों में टैक्सों का बोझ अमीर आदमियों से उतर कर गरीब आदमियों पर चढ़ता जा रहा है। इन्टरनेशनल कन्फेडरेशन ऑफ फ्री ट्रेड यूनियन ने टैक्स हैवन्स में कम्पनियों द्वारा की जा रही टैक्स चोरी के कारण वैश्विक टैक्स संकट की चेतावनी दी है।
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ऑफशोर टैक्स हैवन्स- जिन्हें अब ज्यादा शालीन तरीके से आफशोर फाइनेन्शियल सेन्टर्स (ओ.एफ.सी.) कहा जा रहा है- आज वैश्विक वित्तीय व्यवस्था से गहराई से जुड़ चुके हैं। कैमान आइलैण्ड, बाहमास, वारबाडोस, जर्सी, द इसले ऑफ मैन, मोनाको, साइप्रस, लक्जमबर्ग, मकाओं, साउथ पैसिफिक आइलैण्ड्स में लगभग 70 इस तरह के सेन्टर काम कर रहे हैं। इन सेन्टरों में कुछ तो केवल एक कोठरी में रखे कम्प्यूटर द्वारा काम कर रहे हैं पर ज्यादातर लंदन ज्यूरिख, न्यूयार्क और टोरंटो स्थित मुख्यधारा के बैंकों की उपशाखाओं के तौर पर कार्यरत हैं।
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इन आफशोर फाइनेन्सियल सेन्टर्स (ओ.एफ.सी.) में जमा होने वाली आमदनी या सम्पत्ति पर किसी प्रकार का टैक्स नहीं लगता है और लाइसेंस तथा निगमन संबंधी कानून बहुत ही लचीले होते हैं। वित्ताीय संस्थाएं और बड़ी कम्पनियाँ बिना कोई दफ्तर खोले ही इन केन्द्रों से अपनी गतिविधियाँ संचालित कर सकती हैं। यहाँ कम्पनियों के नाम और पते ठिकाने गुमनाम रखने की गारंटी होती है जिसके कारण कम्पनियों के मातृ देशों की सरकारों को भी इन कम्पनियों की गतिविधियों का पता नहीं चल पाता।
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इन सुविधाओं के कारण कम्पनियाँ और अमीर लोग अपनी धन सम्पत्ति इन केन्द्रों में रखने के लिये आकर्षित होते हैं। 90 के दशक की शुरुआत में बैंक फॉर इन्टरनेशनल सेटलमैंट ने अनुमान लगाया कि ओ.एफ.सी. में जमा धन दुनिया के केन्द्रीय बैंकों के पास जमा धन से पाँच गुना है। 1998 में जारी मैरिल लिंच की वर्ल्ड वैल्थ रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे धानवान व्यक्तियों की लगभग एक तिहाई सम्पत्तिा जो 11 ट्रिलियन डॉलर (1 शंख 10 अरब डॉलर) बैठती है, ओ.एफ.सी. में रखी हुई थी। वैश्विक व्यापार का 50 से 60 प्रतिशत हिस्सा ओ.एफ.सी. के द्वारा संचालित हो रहा है और कुल वैश्विक मौद्रिक स्टॉक का आधा किसी न किसी समय ओ.एफ.सी. के माध्यम से जाता है।
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राजस्व का भारी नुकसान :
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिये ओ.एफ.सी. मुनाफे की हेरा-फेरी करने की सर्वोत्ताम जगह बनी है। यहाँ ऐसा लेन-देन चलता है जिसमें मुनाफे और घाटे को कागजों पर गुणाभाग करके इस तरह समायोजित किया जाता है कि जिससे कम से कम या न के बराबर टैक्स देना पड़े। मुनाफे की यह हेराफेरी उन कम्पनियों द्वारा की जाती है जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सम्पत्तिा की देखभाल के लिये बनायी जाती हैं।
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अपना मुनाफा छिपाने के लिये कम्पनी पेटेन्टों, कापीराइट एवं डिजाइन जैसी चीजों की मालकियत ओ.एफ.सी. स्थित कम्पनी को ट्रांसफर कर देती है और कम टैक्स वाले अधिकार क्षेत्रों में जाकर रायल्टी की रकमें वसूल कर लेती है। इसी वर्ष, दवा बहुराष्ट्रीय कम्पनी मर्क ने 2.3 अरब डॉलर के टैक्स की चोरी की। इसने अपने पेटेन्टों की मालकियत को बारामुडा स्थित अपनी ही कम्पनी को ट्रांसफर कर दिया और तब टैक्स बचा कर रायल्टी अपनी ही कम्पनी द्वारा अपने आप को दे दी। माइक्रो सॉफ्ट भी इस तरह की गतिविधियों में लिप्त है।
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ओ.एफ.सी. स्थित ये कम्पनियाँ अपनी मातृ कम्पनियों की कर्ज। देनदारियों को अधिकारियों और शेयर होल्डरों से छुपाती है। जालसाजी का कच्चा चिट्ठा खुलने से पहले एनरॉन कम्पनी ने इस तरह की नकली 3500 कम्पनियाँ बना रखी थी जिनमें से 600 तो कैमान आइलैण्ड में पंजीकृत थीं।
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कम्पनियों द्वारा आमदनी और मुनाफे को छिपाने के लिये ट्रांसफर प्राइसिंग का सबसे आसान तरीका अपनाया जाता है। आज, दुनिया का आधा व्यापार तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अन्दर उनकी अपनी उप शाखाओं के बीच ही होता है जो अपनी वस्तुओं की उल्टी-सीधाी कीमतें दर्ज करके मनमर्जी से मुनाफा और घाटा दिखा देती हैं।
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उदाहरण के लिये कोई कम्पनी ओ.एफ.सी. स्थित अपनी कम्पनी को बहुत ही कम मूल्य पर वस्तु निर्यात करती है जिसे ओ.एफ.सी. स्थित कम्पनी बाजार मूल्य पर दुनिया में कहीं भी बेच देती है और इस रास्ते प्राप्त मुनाफा ओ.एफ.सी. स्थित कम्पनी के खाते में रह जाता है। दूसरी तरफ, ओ.एफ.सी. स्थित कम्पनी से कोई वस्तु बाजार मूल्य पर आयात करती है और फिर उसे बहुत कम मूल्य पर अपनी मातृ कम्पनी को बेच देती है जिससे भारी मुनाफा उसके पास बचा रह जाता है। अभी हाल ही में अमरीका में एक अध्ययन से खुलासा हुआ कि एक कम्पनी ने बुलडोजर 527.94 डॉलर में और ट्रक 384.14 डॉलर में अमरीका को बेचा। जबकि जापान से फ्लैशलाइट 5000 डॉलर में और ब्रिटेन से टूथब्रश 5,655 डॉलर में खरीदा। इस अध्ययन के मुताबिक अमरीका के सरकारी कोषागार को वर्ष 2001 में 53.1 अरब डॉलर की राजस्व हानि हुई।
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टैक्स चोरी के मामलों के एक अमरीकी विशेषज्ञ ने गणना की है कि 1960 के बाद से अमरीकी सरकार को प्राप्त कम्पनियों का टैक्स 30 प्रतिशत से गिरकर 8 प्रतिशत रह गया है। कारण, आमदनी ओ.एफ.सी. में हस्तांतरित होती गयी है। 250 सबसे बड़ी अमरीकी कम्पनियों में से एक तिहाई ने 2001-2003 के बीच सरकार को कोई इनकम टैक्स नहीं चुकाना पड़ा जबकि उन्हें इन्हीं वर्षों में 1.1 ट्रिलियन डॉलर की टैक्स पूर्व आमदनी कम्पनियों ने अपने शेयरधारकों को दर्शायी।
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कम्पनियों की तरह अमीर लोग भी अपनी सम्पत्ति और आमदनी ओ.एफ.सी. में ट्रांसफर कर रहे हैं। 2006 में अमरीकी सीनेट की उपसमिति ने आकलन किया कि अमीर अमरीकियों द्वारा ओ.एफ.सी. को सम्पत्तिा हस्तांतरित करने से अमरीका को 40 से 70 अरब डॉलर के टैक्स राजस्व की हानि हुई। इंग्लैण्ड स्थित टैक्स जस्टिस नेटवर्क ने गणना की है कि ओ.एफ.सी. में जमा 11 ट्रिलियन डॉलर की निजी सम्पत्तिा के मुनाफे पर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स लगाया जाय तो प्रतिवर्ष 255 अरब डॉलर का वैश्विक कर राजस्व प्राप्त होगा।

विकासशील देशों से गैर कानूनी ढंग से भारी पूँजी पलायन :
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यदि विकसित देशों की हालत यह है तो विकासशील देशों और संक्रमण कालीन अर्थव्यवस्थाओं की दशा इस सम्बन्ध में और भी बुरी है। रूस और चीन जैसी संक्रमणकालीन अर्थव्यवस्थाओं तथा अन्य विकासशील देशों से भारी पूँजी गैर कानूनी रूप से ओ.एफ.सी. को चली गयी है। रेमण्ड बेकर के ऑंकड़ों के मुताबिक ओवर प्राइसिंग और अण्डर प्राइसिंग के द्वारा ही कम्पनियाँ प्रतिवर्ष लगभग 280 अरब डॉलर की पूंजी विकासशील देशों से ओ.एफ.सी. को हस्तांतरित कर रही है।
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1989 से 2004 के बीच रूस से 200 से 500 अरब डॉलर सम्पत्तिा का पलायन हुआ। अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक 1992 से 2001 के बीच चीन से 127 अरब डॉलर पूँजी का पलायन हो गया। रेमण्ड बेकर के अनुसार चीन का लगभग आधा विदेशी पूँजीनिवेश इसी पलायित पूँजी द्वारा हो रहा है।
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विकासशील देशों में लचर कानून व्यवस्था के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को पूंजी पलायन करने का अच्छा मौका हासिल रहता है। जून 2000 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक आक्सफैम के अनुसार ओ.ए.फ.सी. के कारण विकासशील देशों को प्रतिवर्ष 50 अरब डॉलर की कर-राजस्व की हानि हो रही है (यह कुल मिलाकर इन देशों के मिलने वाली विदेशी सहायता के बराबर बैठता है) यह रकम और भी ज्यादा होगी क्योंकि इसमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा ओवर प्राइसिंग और अण्डर प्राइसिंग को शामिल नहीं किया गया है।
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अफ्रीकन यूनियन ने बताया कि कम से कम 148 अरब डॉलर प्रतिवर्ष अफ्रीकी महाद्वीप से ओ.एफ.सी. को चला जाता है। गलत प्राइसिंग द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ 10-11 अरब डॉलर वार्षिक अलग से ले जाती हैं। कुछ आकलनों के मुताबिक अफ्रीकन अभिजात्य वर्गों और शासकों का 700 से 800 अरब डॉलर ओ.एफ.सी. खातों में रखा हुआ है।
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विकासशील देशों के भ्रष्ट शासकों का भारी धान ओ.एफ.सी. में जमा रहता है। इण्डोनेशिया के तानाशाह सुहार्तो ने वर्षों इण्डोनेशिया को लूटा और उनका लगभग 35 अरब डॉलर कैमान आइलैण्ड, बाहमास, पनामा, कुक आइलैण्ड, बनाऊतु, वेस्ट समोआ स्थित ओ.एफ.सी. में रखा है। मैक्सिको के पूर्व राष्ट्रपति के भाई राडल सालिनास को सिटीबैंक ने मदद करके आफशोर ट्रस्ट खुलवाया और वहाँ गुप्त खातों में इनकी रकम पहुँचवायी। रिगी बैंक ऑफ वाशिंगटन ने चिली के पिनोशेट के लिये ओ.एफ.सी. में डमी कार्पोरेशन और गुमनाम खाते खुलवाये। अफ्रीका के कुछ गरीबतम् देशों की लूट का धन भी ओ.एफ.सी. पहुँचा। 1993 से 1998 तक नाईजीरिया के तानाशाह सानी अबाचा ने स्विट्जरलैण्ड, लक्समबर्ग, लीटेस्टीन, लंदन के ओ.एफ.सी. में अरबों डॉलर पहुंचाये। जायरे के मोबुतु से से सेको और सेन्ट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के बादशाह ने अपने देशों को भूखे मार कर अरबों डॉलर लूटा और ओ.एफ.सी. में भेज दिया तथा उनके इस कार्य में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और बैंकों ने बड़ी मदद की।

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