पूंजीवाद में मालिक लोग जनसंख्या के लगभग पाँचवें हिस्से, जिनके पास निर्णय ले सकने के अधिकार वाला काम है, से मिल कर यह तय करते हैं कि किस चीज़ का उत्पादन किया जाए, किन माध्यमों से किया जाए, और उसका किस तरह से वितरण किया जाए। जनसंख्या का लगभग चार बटा पाँच हिस्सा मुख्यतः रटी रटाई मेहनत वाला काम करता है, उसकी आय कम होती है, आदेशों का पालन करता है, बोरियत झेलता है, और यह सब कुछ ऊपर से थोपा हुआ होता है। जॉन लेनन के शब्दों में कहें तो "पैदा होते ही तुम्हें छोटा महसूस कराया जाता है, सारा समय देने के बजाय कुछ समय न देकर। "
पूंजीवाद भाईचारे को खत्म कर देता है, विविधता को एकसार कर देता है, बराबरी को मिटा देता है, और सख़्त पदानुक्रम थोप देता है। ताकत और अवसर इस में ऊपर की तरफ केन्द्रित होते हैं। जबकि पीड़ा तथा प्रतिबंध का भार नीचे ही अधिक होता है। यहाँ तक कहा जा सकता है कि पूंजीवाद कामगारों पर जिस स्तर का अनुशासन थोपता है उतना तो किसी तानाशाह ने भी राजनीतिक तौर पर लागू करने का नहीं सोचा होगा। किसने सुना होगा कि नागरिकों को बाथरूम जाने के लिए अनुमति लेनी पड़े, जो कि कई निगमों, बड़ी कंपनियों में आम बात है।
पूंजीवाद की बुराइयाँ असामाजिक लोगों के कारण नहीं होतीं। बल्कि पूंजीवादी संस्थाएँ अपने सबसे सामाजिक नागरिकों तक पर भयानक किस्म का व्यवहार थोपती हैं। पूंजीवाद में, जैसी कि एक प्रसिद्ध अमरीकन बेसबॉल मैनेजर की टिप्पणी थी, "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं।" अधिक आक्रामक शब्दों में: "गंदगी ऊपर उठती है।" वॉशिंगटन के व्हाइट हाउस को देख लीजिए।
भागीदारी की अर्थव्यवस्था (पार्टिसिपेटरी इकोनॉमिक्स), या पैरिकॉन, आर्थिक जीवन को व्यवस्थित करने का एक वैकल्पिक तरीका है।
पैरिकॉन में सभी भागीदारों के लिए आय, परिस्थितियों, अवसरों तथा ज़िम्मेदारियों की समानता है। पैरिकॉन के हर भागीदार का अपने जीवन पर तथा सभी साझे सामाजिक परिणामों पर एक उचित हद तक नियंत्रण है। पैरिकॉन वर्ग विभाजन को मिटा देता है।
पैरिकॉन भाईचारा पैदा करता है। एक असामाजिक व्यक्ति के लिए भी पैरिकॉन में सामाजिक खुशहाली का ध्यान रखने के सिवाय कोई चारा नहीं है, अगर वह खुद संपन्न होना चाहता है तो।
पैरिकॉन परिणामों में विविधता लाता है और न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करता है जिसमें हर भागीदार को पारिश्रमिक इस हिसाब से मिलता है कि वह कितनी देर तथा कितने मुश्किल हालात में काम करता है।
क्या उत्पादित किया जाए, कौनसे साधन इस्तेमाल किए जाएँ, और बनाई गई चीज़ों को किस तरह बाँटा जाए, इन सब निर्णयों में पैरिकॉन हर व्यक्ति को भागीदार बनाता है।
दूसरे शब्दों में पैरिकॉन के मूल्य पूंजीवाद से एकदम अलग हैं और अपने उद्देश्यों को पाने के लिए पैरिकॉन बिल्कुल अलग संस्थाओं को स्थापित करता है।
पैरिकॉन में कामगार और उपभोक्ता समितियाँ होती हैं जहाँ कामगार और उपभोक्ता चर्चा के विभिन्न तरीके अपना कर वाद-विवाद करते हैं और जनतांत्रिक निर्णय लेते हैं। पैरिकॉन में ऊपर से परिणाम निर्धारित करने वाले निगमीय मालिक और प्रबंधक नहीं होते।
पैरिकॉन में "संतुलित कार्य सम्मिश्रण" (बैलेंस्ड जॉब कॉम्प्लेक्सेज़) होते हैं जिनमें हर कामगार रटी रटाई मेहनत ही नहीं, निर्णय के अधिकार वाले काम भी करते हैं, ताकि सभी भागीदारों की परिस्थितियाँ कुछ सशक्त करने वाली हों, बजाय इसके कि कामगार समुदाय का 20% तो सशक्त करने वाले सारे काम हथिया ले और बाकी 80% केवल दूसरों के अधीन मेहनत करे। पैरिकॉन में भी विशेषज्ञता के लिए जगह है। सहयोग भी है। निर्णय अब भी लिए जाते हैं। पर कोई छोटा सा समूह नहीं है जिसने सशक्त करने वाली सूचनाओं, गतिविधियों, और निर्णय लेने वाले पदों पर कब्ज़ा कर रखा हो, जबकि बहुसंख्य वर्ग से केवल निर्णय लेने की क्षमता से रहित नीरस रोज़मर्रा के काम लेकर उन्हें अधीन बना कर रखा जाए। पैरिकॉन में हर एक काम, जिसका मतलब है हर एक व्यक्ति का काम, इस तरह का सम्मिश्रण होगा कि प्रत्येक भागीदार की परिस्थितियाँ लगभग समान रूप से सशक्त करने वाली हों। पैरिकॉन में कोई मालिक वर्ग नहीं होता। इसमें कोई तकनीकी, प्रबंधक, या संयोजक वर्ग नहीं होता। पैरिकॉन में केवल कामगार और उपभोक्ता होते हैं जो रचनात्मक तथा सहकारी रूप से अपनी क्षमताओं का सुसंगत रूप से प्रयोग करते हैं, ऐसे कि हर भागीदार जायज़ तौर पर प्रभावशाली हो।
पैरिकॉन में मेहनत और बलिदान के लिए पारिश्रमिक मिलता है, जिसका मतलब है लोगों द्वारा किए गए कार्य में लगा समय, कार्य की तीव्रता और कठिनता या नीरसता के अनुसार परिश्रम। पैरिकॉन ताकत, संपत्ति, या कुल उत्पादन के आधार पर पारिश्रमिक देने को स्वीकार नहीं करता। आमदनी और जायदाद की विकराल गैर-बराबरी की जगह पैरिकॉन में सामाजिक उत्पाद का न्यायपूर्ण वितरण होता है।
पैरिकॉन में बाज़ार जैसी कोई चीज़ नहीं है जहाँ कि एक काम करने वाले को दूसरे से भिड़ा दिया जाता है, भाईचारे को नष्ट कर दिया जाता है, वर्ग विभाजन को थोप दिया जाता है, सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के गलत-सलत दाम लगाए जाते हैं, खरीदने और बेचने वालों को छोड़ के बाकी सब सामूहिक प्रभावों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संतुलन और उसे बनाए रखने का ध्यान नहीं रखा जाता, और इनके अलावा भी बहुत सी कमियाँ होती हैं। बाज़ारों की जगह पैरिकॉन कामगारों और उपभोक्ताओं की एक व्यवस्था का उपयोग करता है, उनकी स्व-प्रबंधन समितियों के माध्यम से, सभी फ़र्मों और कर्ताओं के बीच सहकारी तौर पर कच्चे माल तथा अंतिम उत्पाद के बारे में सच्ची और पूरी सामाजिक कीमत तथा अार्थिक गतिविधियों के फायदों के अनुसार बातचीत करके।
एक छोटे लेख में तो एक बिल्कुल अलग तरह की आर्थिक व्यवस्था के पक्ष में कायल करने वाला तो क्या एक संक्षिप्त सा विवरण भी दे पाना संभव नहीं है। मैं सिर्फ पैरिकॉन के मूल्यों तथा संस्थाओं की एक छोटी सी सूची दे सकता हूँ। मैं जानता हूँ कि संक्षिप्तता अस्पष्टता हो सकती है और अपरिचित पाठकों के लिए इसका कुछ ठोस मतलब निकालना मुश्किल हो सकता है। लेकिन यहाँ हमारे पास स्पष्टीकरण, तर्कों, या विस्तृत चर्चा के लिए जगह नहीं है। इसके लिए मैं माफी चाहूंगा।
फिर भी मैं उम्मीद करता हूँ कि पाठक जो अपने अनुभव से जानते हैं कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाएँ दैनिक रूप से हमें एक दूसरे से ठगवाती हैं, हमें अपने ही जीवन पर कुछ भी नियंत्रण से वंचित करती हैं या फिर हमें दूसरों के जीवन को अपने अधीन करने के लिए बाध्य करती हैं, उन लोगों को ढेर सारा लाभ बाँटती हैं जो सबसे ज़्यादा संतोषजनक और आनंददायी काम करते हैं या उनको भी जो कुछ नहीं करते, जबकि जो लोग सबसे नीरस और कम आनंददायी काम करते हैं तथा अधिकतर काम करते हैं उनको सबसे कम लाभ बाँटती हैं, उम्मीद करेंगे कि पैरिकॉन एक वास्तविक विकल्प है।
दूसरे शब्दों में मैं उम्मीद करता हूँ कि अमीर लोगों के निष्क्रियता पैदा करने वाले मंत्र "कोई विकल्प नहीं है" को चुपचाप मान लेने के बजाय हम कुछ बेहतर पाने की कोशिश करेंगे, पूंजीवाद से परे, और यह कि अपनी उम्मीदों से प्रेरित होकर पैरिकॉन को उसके फ़ायदों के आधार पर जाँचने की कोशिश करेंगे। अगर आप यह नहीं मानते कि मानवता पूंजीवादी मिल्कियत, निगमों, और बाज़ारों के माध्यम से हमेशा के लिए भारी असमानता और पदानुक्रम सहन करने के लिए अभिशप्त है, तो शुरुआत करने कि लिए एक जगह है: http://www.parecon.org
अनुवादक: अनिल एकलव्य साभार- जेडनेट
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