लुधियाना का साईकिल उद्योग……..खो रहा है - डॉ. कृष्ण स्वरूप आनन्दी

सस्ते आयात के कारण देश के औद्योगिक नगरों का अवसान हो रहा है, अनौद्योगीकरण की आत्मघाती प्रक्रिया चालू हो गयी है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, विस्थापन और बदहाली फैल रही है।
चूँकि विदेशी वस्तुओं के आयात पर किसी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबन्ध नही हैं, घरेलू उत्पादन इकाईयों की घरेलू बाजार में हिस्सेदारी तेजी से घटती जा रही है। उनका उत्पादन निर्यात मोर्चे पर भी सफल नहीं हो पा रहा है, जैसा कि प्रतियोगी देशों की इकाईयाँ कर रही हैं।
लुधियाना का साइकिल उद्योग इसी संकट के दौर से गुजर रहा है। यदि लुधियाना का यह उद्योग उजड़ जाता है तो पूरे देश के साइकिल उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जायेगा।
देश के साइकिल बाजार में चीनी फैन्सी साइकिलों ने 25 प्रतिशत बाजार पर कब्जा कर लिया है। भारत में बनी साइकिल चीनी साइकिल के मुकाबले 30 प्रतिशत महँगी हैं। इसका कारण है चीन में साइकिल बनाने के लिये कच्चा माल या जरूरी सामान सस्ते उपलब्ध हैं। जैसे एमएस राउंड, सीआरसीए शीट, एवं टयूब हावर की भारत में कीमत क्रमश: रु. 29,000, रु. 36,000 और रुपये 43,000 प्रतिटन है जबकि इन्हीं चीजों की चीन में कीम क्रमश: रु. 14,000, रु. 21,000 एवं रु. 25000 प्रति टन है। लुधियाना स्थित भारतीय बाइसिकिल मैनुफैक्चरर्स एसोसियेशन के उपाध्यक्ष और नीलम साइकिल के मालिक के.के. सेठ ने कहा ''पिछले वर्ष (2006) में हमने 760 करोड़ रुपये मूल्य की साइकिलें निर्यात की, जबकि इस वर्ष केवल 650 करोड़ रुपये की ही कर रहे हैं। ऐसा बाजार में चीनी साईकिलों के आ जाने से हुआ है।''
लुधियाना का साईकिल उद्योग 60 वर्ष पुराना है। यह दुनिया भर को साईकिलें और साईकिलों के कल-पुर्जे निर्यात करता रहा है। लुधियाना के विशाल साईकिल उद्योग के कारण ही भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा साईकिल उत्पादक देश है। लुधियाना में लगभग 3000 औद्योगिक इकाईयाँ हैं जो साईकिलों या साईकिल के कल-पुर्जों का निर्माण करती हैं।
चीन में साईकिल के कल-पुर्जे ज्यादातर स्वचालित मशीनों द्वारा बनाये जाते हैं। वे हमारे देश के बने कल-पुर्जों के मुकाबले काफी सस्ते पड़ते हैं, लुधियाना के धनधारी पोर्ट पर प्रति माह 100 कन्टेनर चीन से आते हैं जिनमें वहां के कल पुर्जे भरे रहते हैं। उम्मीद है कि इस वर्ष चीनी साईकिलों और पुर्जों के कारण लुधियाना का यह उद्योग 100 करोड़ रुपये मूल्य निर्यात खो देगा। हीरो, ईस्टमान, सफारी साईकिल्स, सदम साईकिल्स और ऐसे ही अन्य बड़े दसियों साईकिल निर्माताओं ने अभी हाल में ही चीन में अपने दफ्तर और केन्द्र खोल लिये हैं जहां से वे विकासशील देशों के बाजारों को सस्ते साईकिल पुर्जे निर्यात करेंगे।

साईकिल उद्योग की तरह ही, लुधियाना सिलाई मशीन उद्योग का भी पिछले 100 वर्षों से केन्द्र रहा है। देश की कुल सिलाई मशीन निर्माण का 75 प्रतिशत कारोबार लुधियाना में ही होता है। यह देश का सबसे बड़ा सिलाई मशीन उत्पादन केन्द्र है। परन्तु अब यह चीनी सिलाई मशीनों और उनके कल-पुर्र्जों, जो भारतीय मशीनों और कलपुर्जों से 40 से 60 प्रतिशत तक सस्ते हैं, के मुकाबले बाजार में पिछड़ रहा है। अब बड़ी रेडीमेड वस्त्र निर्माण कम्पनियों के सिलाई केन्द्रों में भी लुधियाना की बनी मशीनों के स्थान पर जगुआर, जुलसी, पैगासस् आदि नामों की आयातित सिलाई मशीनें इस्तेमाल की जा रही हैं। कढ़ाई मशीनों का भी 60 प्रतिशत बाजार चीनी कढ़ाई मशीनों के कब्जे में आ चुका है। सियुविंग मशीन डीलर्स एण्ड एसेम्बलर्स एसोसियेशन के प्रेसीडेंट वरिन्दर रखेजा के मुताबिक ''भारतीय बाजार में चीन की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है,क्योंकि सिलाई मशीनों में इस्तेमाल होने वाली सुई, सुई प्लेट, बाबिन्स और बाबिन केस जैसे जरूरी 95 प्रतिशत तक चीन से आयातित कल-पुर्जे ही इस्तेमाल हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण इनके मूल्य में भारी अन्तर होना है।''

लागत (Input) वस्तुओं के मूल्य में भी दोनों देशों में भारी अन्तर है। शीट मैटल (सिलाई मशीनों के निर्मण में इस्तेमाल होने वाला महत्वपूर्ण माल) की कीमत रु. 26,000 प्रतिटन से बढ़कर रु. 36,000 प्रतिटन हो गयी है, जबकि पिछले 6 महीनों में ही निकिल के दाम भी 4 प्रतिशत बढ़ गये हैं। सुई के दामों में भी भारी अंतर है। जापान की बनी एक सुई रु. 2.50, भारत की बनी रु. 1.50 और चीन की बनी मात्र 25 पैसे में पड़ती है।

120 वर्ष पहले लुधियाना के कुछ उत्साही और नए विचारों से ओत-प्रोत उद्यमियों ने सिलाई मशीन निर्माण का धन्धा शुरू किया था। ये सिलाई मशीनें लाहौर तक जाती थीं। अब लुधियाना का यह गौरवपूर्ण उद्योग ताइवानी, जापानी और चीनी मशीनों के कारण अवसान के दौर में हैं।

चीन के उद्यमी अपनी मशीनें बेचने के लिये सभी तरह के धतकरम कर रहे हैं जिसे हमारा बाजार उनके कब्जे में जा सके। लुधियाना के एक सिलाई मशीन निर्माता ने कहा ''मैं 30 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ चीन गया था और अपनी कम्पनी वी रतना एण्ड कम्पनी का ब्राण्ड नाम चीनी मशीनों पर देख कर हतप्रभ था।''
(30 जुलाई और 2 अगस्त के 'बिजिनेस स्टैण्डर्ड, अखबार के लखनऊ संस्करण में प्रकाशित लेखों के आधार पर)

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