दुनिया का सबसे विकसित देश अमेरिका खुद में अराजकता का गढ़ बनता जा रहा है। अग्नेयास्त्रों का जखीरा बनता अमेरिका, क्या किसी युध्द की तैयारी कर रहा है? या फिर अमेरिका के लोग अपने आप को 'असुरक्षित' समझने लगे हैं।
हाल ही में ''जेनेवा स्थित ग्रेजुएट इन्स्टीटयूट ऑफ स्टडीज के 'स्माल आर्म्स सर्वे 2007' के अनुसार दुनिया के 875 मिलियन अग्नेयास्त्र में तकरीबन 270 मिलियन अग्नेयास्त्र अमेरिकी नागरिकों के पास हैं।'' ऐसा लगता है कि अमेरिकियों ने किसी विश्व-युध्द की तैयारी शुरू कर दी है दुनिया भर में दादागिरी करने वाले अमेरिका के प्रति 100 व्यक्तियों में 90 के पास बन्दूकें है जोकि इन्हें संसार में सबसे अधिक हथियार रखने वाला समाज बनाता है।
असल में अमेरिका ने कभी भी इस मुद्दें पर सोचा ही नहीं। पर यह नहीं भूलना चाहिए अन्य देशों को पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका अपनी ही सीमाओं को तोड़ रहा है। हथियारों के सिलसिलों में इराक पर किया गया युध्द क्या इस परिपेक्ष्य में उचित था? हथियारों में सबसे आगे रहने वाला यह देश क्या किसी को हथियार न रखने का पाठ पढ़ा सकता है? नैतिकता तो यही कहती है कि पहले स्वयंम को सुधारों फिर किसी और को। एक अनुमानत: दुनिया में प्रत्येक वर्ष 8 मिलियन नए शस्त्र बनाये जाते है जिसमें 4.5 मिलियन शस्त्र अकेले अमेरिका ही खरीद लेता है। इसके बाद यमन दूसरा देश है जोकि सबसे ज्यादा शस्त्र रखता है साथ ही साथ इनकी अन्य श्रेणियों में फिनलैण्ड, स्विटजरलैण्ड, इराक ,सरबिया, फ्रांस ,कनाडा, स्वीडन, आस्ट्रिया और जर्मनी आते हैं।
ऐसा नहीं कि इस बात से संयुक्त राष्ट्र परिषद् अनभिज्ञ होगा; वरन् विकसित देशों के खिलाफ कोई भी निर्णय लेना इनके लिये भी टेड़ी खीर हो जाती है। किन्तु आज के दौर में ऐसे गम्भीर मसले को हल्के में लेना शायद पूरी दुनिया के लिये मंहगा साबित हो सकता है। 'स्माल आर्म्स सर्वे 2007' के निर्देशक केथ क्राउस का कहना है कि ''अग्नेयास्त्र पूरे संसार में अनुचित रूप से फैला हुआ है जिसमें अफ्रीका और लैटिन अमेरिका इन हथियारों से पूर्णतया पटा हुआ है ऐसे में निश्चित ही इनकी छवि बिगड़ती जा रही है।'' संसार के विभिन्न भागों में अन्य लोगों के भविष्य की आवश्यकताओं के बारे में सोचने की जरूरत है क्योंकि आर्थिक प्रगति ने लोगों को आवश्यकता से अधिक पैसा उपलब्ध करा दिया है। शायद अमेरिकी यह भूल चुके हैं कि हथियारों से सुरक्षा नहीं होती, लोकतांत्रिक समाज ही सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। 'असहमति का सम्मान' को कायम रखना होगा- वरना पूरी दुनिया को इसका खमियाजा उठाना पड़ेगा।